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क्यों नियम सरकार को क्रिकेटरों का नशा जांचने से रोकते हैं !

बीसीसीआई सरकार से किसी तरह ही वित्तीय सहायता नहीं लेती. ऐसे में खिलाड़ियों को नाडा के नियमों के दायरे में लाना कठिन

Jasvinder Sidhu

पिछले कुछ दिनों से भारतीय क्रिकेटरों की डोपिंग जांच को लेकर काफी कुछ लिखा जा चुका है. खबर है कि वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी ( वाडा) चाहती है कि भारत की नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी (नाडा) ही क्रिकेटरों के डोप टेस्ट करे.

इस बारे में वाडा ने इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल  (आईसीसी) को लिखा है कि वह बीसीसीआई को नाडा की जांच को स्वीकार करने के लिए राजी करे. ऐसी भी खबरें छपी हैं कि सरकार ने बीसीसीआई के कहा है कि वह नाडा के जांचकर्ताओं को क्रिकेटरों के डोप टेस्ट लेने दे.


बीसीसीआई अगले 48 घंटे में इस बारे में फैसला करेगी जो कि वाडा के खिलाफ ही होने की संभावना है. लेकिन इससे पहले इस पूरे प्रकरण का अहम पहलू समझ लेना जरूरी है.

नाडा के नियमों में आर्टिकल 1 के भाग 1.2.1 का तर्जुमा कुछ इस तरह है कि जो भी नेशनल स्पोर्टस फेडरेशन सरकार या नेशनल ओलिंपिक कमेटी से वित्तीय या किसी भी अन्य तरह की सहायता लेती है, नाडा के एंटी डोपिंग नियम ऐसी सभी फेडरेशनों पर लागू होंगे.

यह साफ है कि बीसीसीआई सरकार से किसी तरह ही वित्तीय सहायता नहीं लेती. ऐसे में बीसीसीआई के करारशुदा या जूनियर खिलाड़ियों को नाडा के नियमों के दायरे में किस तरह लाया जाएगा, यह एक यक्ष प्रशन है.

अन्य सहायताओं में सरकारी जमीं पर बने स्टेडियमों का इस्तेमाल वह क्रिकेट मैचों के आयोजनों के लिए करती है, वह भी बाजार भाव का किराया दे करे.

वैसे भी उसने कई शहरों में अपने खुद के नए स्टेडियम बना लिए हैं और किसी भी तरह का दबाव बनने की स्थिति में वह सरकारी जमीं से बाहर निकलने से नहीं हिचकेगी.

क्या बीसीसीआई नेशनल एसोसिएशन है?

दो साल पहले महाराष्ट्र से भारतीय जनता पार्टी के लोकसभा सांसद रावसाहेब पाटिल दानवे ने पूछा था कि आखिर क्रिकेट को इतना महत्व  क्यों दिया जा रहा है. इस सवाल पर उस समय के खेल मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने सदन को लिखित में जवाब दिया जो साबित करता था कि बीसीसीआई सरकार या इंडियन ओलिंपिक कमेटी से पंजीकृत नहीं है.

चूंकि आईसीसी बीसीसीआई को ही भारत में क्रिकेट चलाने वाली संस्था मानती है, इसलिए सरकार खेल के नजरिए से ‘नो कॉस्ट टु गवर्नमेंट’ (सरकार का कोई खर्च नहीं) आधार पर उसे बतौर भारतीय टीम अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में खेलने की मंजूरी देती है. इसके लिए सरकार बीसीसीआई को कोई पैसा नहीं देती.

आखिर दिक्कत कहां है!

यह भी सही है कि क्रिकेट में डोपिंग की समस्या बाकी खेलों की तुलना में न के बराबर है. बीसीसीआई आईपीएल सहित अपने सभी घरेलू टूर्नामेंटों में डोपिंग सैंपलों की जांच स्वीडन की नामी कंपनी आईटीडीएम से करवाता है.

जाहिर है कि अगर वह टेस्ट करवा रहा है तो उसे नाडा को स्वीकार करने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए. लेकिन ऐसा न करने का एक बड़ा कारण हैं.

नाडा को स्वीकार करने का मतलब है कि बोर्ड को सरकारी दायरे में ले आना. पहले ही सुप्रीम कोर्ट की मार झेल रही बीसीसीआई इस स्थिति में नहीं है कि वह खुद को एक नेशनल फेडरेशन मान ले और फिर उसके हर खाता, फैसला और काम सरकार की जांच के दायरे में आ जाए.

हां, यहां पर आईसीसी बीसीसीआई को नाडा को स्वीकार करने के लिए मजबूर कर सकती है क्योंकि आईसीसी और वाडा का करार है. और बीसीसीआई आईसीसी के दायरे में आती है. साफ है कि यह पूरा मामला काफी पेचीदा है.