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तो क्या ड्रेसिंग रूम के दो शेरों के बीच बलि का बकरा होंगे राहुल द्रविड़!

शास्त्री के पास टीम, मैन मैनजमेंट के सिवाय अगर कोई दूसरा रोल है तो वह है एक वक्ता का

Jasvinder Sidhu

जैसा अनुमान था, रवि शास्त्री को विराट कोहली की टीम का कोच बना दिया गया हैं. उनकी नियुक्ति ऐसे माहौल में हुई है जब जोर देकर कहा जा रहा है कि टीम का कंमाडर कप्तान ही होता है. शास्त्री की नियुक्ति से यह बात साबित भी हो गई है.

इस सब के बीच सबसे पहले अगले दो साल के लिए भारतीय टीम के ड्रेसिंग रूम के सेटअप को समझने की कोशिश करते हैं. जैसा कि साफ हो चुका है कि कप्तान ही सब कुछ है, ऐसे में कोच की भूमिका को परिभाषित किए जाने की जरूरत नहीं है.


सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण वाली क्रिकेट एडवाइजरी कमेटी ने शास्त्री के साथ जहीर खान को बॉलिंग कोच बनाया है. लेकिन सबसे रोचक नियुक्ति राहुल द्रविड़ की है.

पहले बात जहीर खान की. इसमें कोई दोराय नहीं है कि जहीर की मौजूदगी टीम इंडिया के लिए बहुत मददगार होगी. इस समय तेज गेंदबाज बेहतर कर रहे हैं और आने वाले अगले दौरे विदेश में हैं. वहां की पिचों पर गेंदबाजी करने का जहीर का अनुभव युवा गेंदबाजों के लिए एजुकेश का काम करेगा. जहीर के नाम 92 टेस्ट मैचों में 311 विकेट हैं और  200 वनडे में वह 282 बल्लेबाजों को अपने पूरे नियंत्रण वाली स्विंग गेंदबाजी का शिकार बना चुके हैं.

जहीर को अगले दो साल तक टीम के साथ काम करना है और अगले दो साल विदेशी दौरों के लिहाज से काफी अहम हैं. जैसा कि साफ हो चुका है कि यह एक स्पेशलिस्ट पोस्ट है, कप्तान और हेड कोच पिक्चर में नहीं आते.

यहां तक हेड कोच की भूमिका है, रवि शास्त्री के क्रिकेट रिकॉर्ड जहीर और राहुल द्रविड़ के मुकाबले कमजोर हैं लेकिन यहां वह टॉप पॉजीशन में हैं. तो ऐसा समझा जाए कि टीम के पास बॉलिंग कोच है, एक बैटिंग कोच भी. और विदेशी दौरों पर एक बैटिंग कोच अलग से. फील्डिंग कोच पहले से ही है.

ऐसे में रवि शास्त्री के पास टीम और मैनमैनजमेंट के सिवाय अगर कोई दूसरा रोल है तो वह है एक वक्ता को जो अपनी बातों से टीम में हर समय टीम में जोश भरने का काम करेगा.

अब बारी आती है राहुल द्रविड़ की. राहुल के पास 164 टेस्ट मैच खेलने और एशिया महाद्वीप से बाहर रन बनाने का मजबूत अनुभव है. चूंकि स्टार खिलाड़ियों से भरी टीम का ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका में रिकॉर्ड जिक्र करने लायक नहीं है, राहुल की नियुक्ति एक बेहद ही समझदारी वाला कदम है.

कमेटी ने जो तीन नियुक्तियां की हैं, उनमें से सबसे बड़ी चुनौती द्रविड़ को मिली है. टीम विदेशी दौरों पर हारती है. इसलिए ओवरसीज दौरों के लिए वह बल्लेबाजों पर काम करेंगे. यह सही है कि घरेलू सीरीज में किसी तहर टीम इंडिया खराब पिचों पर मेहमानों को घेर कर मारती है लेकिन विदेशी पिचों पर हालात बिलकुल अलग हैं.

टीम जब भी विदेशी दौरे पर हारती है, उसे कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है. जाहिर है कि विदेश में पिचें अच्छी होने के कारण स्पिनरों को छोड़ कर तेज गेंदबाज अपने हुनर से साथ न्याय कर लेते हैं. लेकिन बल्लेबाजों के पत्ते हर बार खुले हैं.

द्रविड़ को विदेशी दौरों पर बल्लेबाजों का रिकॉर्ड ठीक करने की जिम्मेदारी दी गई है जिसकी नाकामी या कामयाबी का मीटर पहली ही सीरीज से शुरु हो जाएगा.

अब चूंकि हेड कोच का काम जोश भरने का है. कप्तान किसी के प्रति जवाबदेय नहीं है, जहीर अभी नएं हैं, अगले दौरों पर बल्लेबाजों की नाकामी का ठिकरा द्रविड़ के ही सिर फूटने वाला है. यह देखना रोचक होगा कि द्रविड़ कितने समय तक इस भूमिका को निभा पाते हैं!