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इसलिए हमें फीफा U-17 विश्व कप की अपनी 22 कैरेट टीम के लिए दुआ करनी चाहिए

इस टीम का अच्छा प्रदर्शन वरदान साबित हो सकता है देश की अगली पीढ़ी के लिए

Jasvinder Sidhu

अभी तीन साल पहले की बात है. विबंलडन में एक रिपोर्टर ने टेनिस स्टार मारिया शारापोवा से पूछ लिया कि क्या वह सचिन तेंदुलकर को जानती हैं क्योंकि हिंदुस्तान का गॉड उस दिन मैच देखने पहुंचा था. रूसी की इस खूबसूरत खिलाड़ी ने जवाब दिया, ‘नहीं’.

अगर आज विराट कोहली स्पेन या जर्मनी के शहर की सड़कों पर चप्पलों और निक्कर में घूमने निकल जाए तो शायद ही उन्हें कोई पहचाने.


लेकिन अगर कल ब्राजील की नई खुदाई नेमार या अर्जेटीना की सनसनी मैसी देश के किसी भी हिस्से में तफरीह करने निकलेंगे तो उन्हें उनके चाहने वालों से एक की चीज बचा सकती है और वह है रॉयट पुलिस.

क्रिकेट और फुटबॉल में यही सबसे बड़ा फर्क है

आप उंगलियों पर गिन सकते हैं कि कितने देश क्रिकेट खेलते हैं. इसके विपरीत पूरे विश्व में 200 से भी ज्यादा देशों में फुटबॉल खेल प्रेमियों के सिर चढ़ कर बोलता है. फीफा के 2013 के सर्वे के मुताबिक दुनिया में 2.65 अरब रजिस्टर्ड फुटबॉलर हैं. भारत में क्रिकेट को लेकर जुनून है, लेकिन सच यह है कि खेलने के लिहाज से फुटबॉल क्रिकेट से कहीं बड़ा है.

6 अक्टूबर को रात आठ बजे दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम में फीफा अंडर-17 विश्व कप में मुल्क की युवा टीम इंडिया अमेरिका के खिलाफ आगाज करेगी. यह साफ है कि विश्व कप की बाकी टीमों के मुकाबले इस युवा टीम का चांस न के बराबर है, लेकिन इसका अच्छा प्रदर्शन देश की अगली पीढ़ी के लिए वरदान साबित हो सकता है.

फीफा विश्व कप का आयोजन ऐसे समय में हो रहा है, जब देश की नई नस्ल खेल के मैदान को अपनी जिंदगियों से बेदखल करके इंटरनेट और एंड्राइड के हाथों खेल रही है. फीफा विश्व कप में चंद मैचों में जीत नई पीढ़ी को मैदान पर जाकर खेलने के लिए प्रेरित करने में मददगार हो सकती है.

देश के लिए यह ऐतिहासिक टूर्नामेंट खेलने जा रही इस टीम इंडिया के सदस्यों के हालात पर निगाह मारने से पता लगता है कि वे भी किसी दूसरे को देख कर फुटबॉल मैदान में उतरे और गरीबी, दुश्वारियों और संकटों के बीच इस खेल के लिए अपना सब कुछ झोंक दिया.

संघर्ष वाला रहा है खिलाड़ियों का जीवन

टीम के स्ट्राइकर अनिकेत जाधव के पिता अनिल महाराष्ट्र के कोल्हापुर में ऑटो ड्राइवर हैं. अनिकेत 9 साल के थे जब उन्होंने बड़े लड़कों को फुटबॉल खेलते हुए देखते थे. फिर कुछ ऐसा हुआ कि खेल के लिए घर छोड़ कर पुणे के बालीवाड़ी स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण केंद्र में फुटबॉल कैंप ज्वाइन कर लिया. पिता कई बार घर आने को कहते ,लेकिन फुटबॉल उनकी जिंदगी हो चुकी थी.

टीम के मिडफील्डर जैक्सन सिंह मणिपुर से हैं. पिता किसान थे, लेकिन एक हादसे में हाथ चोटिल होने के कारण वह ज्यादा काम नहीं कर सकते. इस कारण मां को बाजार में सब्जी बेचनी पड़ती है. हर दिन के संघर्ष में फुटबॉल खेलना सुकून पाने का एकमात्र जरिया था.

टीम की प्रतिष्ठित 10 नंबर की जर्सी मिडफील्डर कोमल थताल के पास है. पिता छोटी सी टेलरिंग की दुकान चलाते हैं. सिक्किम छोटे से गांव में फुटबॉल खेलने का सिलसिला देश का प्रतिनिधित्व करने तक बरकरार है.

टीम के अन्य मिडफील्डर अभिजीत सरकार को फुटबॉल विरासत में मिला है. पिता बंगाल में वैन ड्राइवर हैं जो खुद भी कभी खेलते थे. दादा, पिता और चाचा सभी फुटबॉलर रहे हैं और भाई भी कोलकाता लीग में खेलता है.

मणिपुर के मिडफील्डर निथोईनगांन्बा मैती के पिता की मौत दो महीने पहले ही  हुई है. परिवार मां ही चलाती हैं. पैसा नहीं था, लिहाजा स्कूल जाने की बजाय वह फुटबॉल मैदान पर ज्यादा समय बिताते थे.

लेफ्ट बैक संजीव स्टालिन की मां बेंगलुरु में फुटपाथ पर कपड़े बेचती हैं. लेकिन इस विश्व कप के बाद शायद उनकी जिंदगी बदल जाए.

भारतीय टीम के कमान मिली है अमरजीत सिंह कयम को. उनकी मां बाजार में मछली बेचती हैं.

डिफेंडर जितेंद्र सिंह के पिता एक चौकीदार हैं और मां टेलरिंग करके परिवार चलाने में साथ देती हैं. गरीबी और संघर्ष के बीच फुटबॉल ही था हौसला बढ़ाने को.

टीम के बाकी खिलाड़ियों के कहानियां भी कम रोचक नहीं हैं. वे भी बड़ी होंगी, यह निर्भर करेगा कि टीम कैसा खेलती है.

कुल मिला कर यह पूरी टीम सोने की तरह तप कर यहां तक पहुंची है और अगले कुछ दिन विराट कोहली की टीम को भूल कर इस 22 कैरेट टीम इंडिया के लिए दुआ सभी को करनी चाहिए.