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बैकफुट पर होना किसकी देन है... क्या क्रिकेट की?

क्रिकेट में तो बैकफुट पर शॉट्स को आक्रामक अंदाज के लिए जाना जाता है

Rajendra Dhodapkar

अंग्रेजी का एक मुहावरा काफी दिलचस्प मालूम देता है- ‘ऑन द बैकफुट’. इसका अर्थ है रक्षात्मक होना या किसी परिस्थिति में कमजोर होना. पहली नजर में यह लगता है कि मुहावरा बहुत पुराना नहीं है या कम से कम इसका व्यापक प्रचलन पुराना नहीं है. पिछले कुछ दशकों में यह चल निकला है. इसे क्रिकेट से जोड़कर देखा जाता है. इसलिए ज्यादा संभावना यही है कि इसका उद्गम क्रिकेट से ही है.

हालाँकि अब अमेरिका और जर्मनी जैसे देशों में भी यह इस्तेमाल होने लगा है. अगर यह मुहावरा क्रिकेट से निकला है तो भी कुछ अजीब है. क्योंकि क्रिकेट में बैकफुट पर जाने का मतलब इतना सरल नहीं है. बैक फुट पर बल्लेबाजी क्या हो सकती है इसका एक किस्सा पचास के दशक के अंग्रेज विकेट कीपर जिम पार्क्स की किताब में मिलता है.


उस दौर में एक प्रमुख अंग्रेज ऑलराउंडर ट्रेवर बैली थे. बैली बल्लेबाज और मध्यम गति गेंदबाज थे. उनकी ख्याति बिना रन बनाए घंटों तक बल्लेबाजी करने और बिना रन दिए अचूक ओवर पर ओवर फेंकने की थी. क्रिकेट में ‘स्टोनवॉलर’ और ‘द वॉल’ जैसे विशेषण सबसे पहले व्यापक रूप से उन्हीं के लिए इस्तेमाल हुए थे. उनका मुख्य इस्तेमाल ज़ाहिर है, मैच ड्रॉ करवाने के लिए होता था.

हटन ने किया था मैच ड्रॉ कराने में बैली का इस्तेमाल

तबके अंग्रेज कप्तान लेन हटन ने उनका एक रचनात्मक इस्तेमाल ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक टेस्ट मैच में किया. उस टेस्ट मैच में जीतने के लिए ऑस्ट्रेलिया को बहुत कम रन बनाने थे. ऐसे में हटन के कहने पर बैली ने एक छोर से लगातार लेग स्टंप के बाहर अचूक गेंदबाजी की. इससे ऑस्ट्रेलिया के नील हार्वी जैसे बल्लेबाज भी रन नहीं बना सके. मैच ड्रॉ हो गया. टेस्ट क्रिकेट में लगातार रक्षात्मक और ‘नेगेटिव’ गेंदबाजी का शायद यह पहला उदाहरण था.

अगली सीरीज वेस्ट इंडीज के खिलाफ थी. एक और टेस्ट में हटन ने यही नुस्खा आजमाना चाहा. एवर्टन वीक्स को बैली ने कुछ गेंदें लेग स्टंप के बाहर फेंकी, जिन पर वीक्स कुछ नहीं कर पाए.

अगली गेंद पर वीक्स तीनों स्टंप छोड़ कर खड़े हो गए. बैली ने यह देख लिया और अगली अचूक गेंद ऑफ स्टंप पर यॉर्कर फेंकी. पार्क्स लिखते हैं कि वीक्स बैक फुट पर गए और गेंद को ऐसा स्क्वायर ड्राइव किया कि गेंद सीमा रेखा के पार अवरोधों से टकरा कर दस पन्द्ह गज अन्दर लौट आई. जाहिर है, हटन की रणनीति बेकार हो गयी .

सोबर्स के बैकफुट शॉट की यादें

सन 1971 में शेष विश्व टीम के कप्तान गैरी सोबर्स ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 253 रन की एक पारी खेली थी, जिसे डॉन ब्रैडमैन ने अपनी देखी हुई सर्वश्रेष्ठ पारी कहा था. पिछले दिनों सोबर्स के अस्सी साल पूरे होने पर तमाम पुराने खिलाड़ियों ने इस पारी को याद किया. जो खिलाड़ी उस टेस्ट में खेले थे सब ने सोबर्स के एक शॉट को ज़रूर याद किया. उन्होंने शायद डेनिस लिली की गेंद पर वह शॉट खेला था, जो वीक्स के इस शॉट जैसा ही था. दिलचस्प यह है कि सबने सोबर्स के शॉट के बारे में भी यही कहा था कि गेंद टकराकर 10 -15 गज अन्दर लौट आई थी. इसका अर्थ यही है कि वीक्स या सोबर्स के लिए बैक फुट का मतलब मुहावरे वाला नहीं है.

क्रिकेट में आमतौर पर फ्रंटफुट पर खेलने की परंपरा अंग्रेजों की है. अंग्रेजों के लिखे खासकर पुराने कोचिंग मैन्युअल पढ़ें तो यह लगता है कि बल्लेबाजी कुल मिलाकर फ्रंट फुट का खेल है. बैक फुट पर पर सिर्फ मजबूरी में जब गेंद बहुत छोटी लम्बाई की अब हो तो खेला जाता है.

इसकी वजह है इंग्लैंड में बारिश बहुत होती है. इसलिए विकेट पर घास और नमी ज्यादा होती है. इसलिए गेंद फिसलती (स्किड) है, स्विंग भी ज्यादा होती है और उछाल कम होता है. पुराने दौर में पिच को ढकने का रिवाज भी नहीं था. ऐसे में फ्रंट फुट पर खेलना ही समझदारी थी.

तब ऐसा भी सिखाया जाता था– ‘व्हेन एवर इन डाउट, प्ले ऑन द फ्रंट फुट’ यानी जब तक पक्का न हो कि गेंद बहुत शॉर्ट है तब तक बैक फुट नहीं. अब जमाना बदल गया है. अब न तो इंग्लैंड की पिचें वैसी हैं, न खिलाड़ी.

बैक फुट पर ज्यादातर होते हैं आक्रामक शॉट

ऑस्ट्रेलिया या वेस्ट इंडीज में मौसम सूखा होता है और धूप साफ होती है. वहां पिच पर उछाल भी ज्यादा और नियमित होता है. वहां खिलाड़ी ज्यादा बैक फुट पर खेलते हैं और उनके खेल में कट, हुक और पुल जैसे बैक फुट के आक्रामक शॉट ज्यादा होते हैं. जहां तक भारतीय उपमहाद्वीप का सवाल है वहां बल्लेबाज और गेंदबाज के हाथों में लोच ज्यादा होता है. इसलिए ज्यादा खेल कलाई से होता है, फ्रंट फुट हो या बैक फुट. गुंडप्पा विश्वनाथ कभी भी पीछे हटाकर गुड लेंग्थ गेंद को स्लिप्स के बगल से निकाल सकते थे .

एक और बात है. पहले थोड़ी जानदार पिच पर तेज गेंदबाज के खिलाफ बल्लेबाज ज्यादा आगे नहीं निकलते थे. तेज उछलती हुई गेंद पर क्रीज़ में पीछे रहने में ही समझदारी थी.

एकाध कोई विवियन रिचर्ड्स जैसा होता था जो बिना हेलमेट के बाहर पैर निकाल कर तेज गेंदबाज को चुनौती देता था. जिसने रिचर्ड्स को फ्रंट फुट पर बाउंसर को हुक करते देखा है, वही उसका रोमांच जानता है. अब विकेट वैसी जानदार बनती नहीं हैं. अंतरिक्ष यात्री की तरह बल्लेबाज सर से लेकर पैर तक कवच से ढका होता है. तरह तरह के नियमों ने तेज गेंदबाजों के नख, दंत सब निकल दिए हैं. अब आठवें नंबर का अनाड़ी बल्लेबाज भी तेज गेंदबाज के आगे ऐसे पैर निकाल कर खड़ा होता है, जैसे विवियन रिचर्ड्स का ताऊ हो. हो सकता है यह मुहावरा ऐसे ही किसी बल्लेबाज ने गढा हो.

अब के दौर में सामने वाला अगर बैक फुट पर हो तो आप उसे कमजोर मान कर खुश हो सकते हैं. फिर भी यह सुनिश्चित कर लें कि कहीं उसका नाम गैरी सोबर्स या गुंडप्पा विश्वनाथ तो नहीं. यहाँ तक कि सुनील गावस्कर या सचिन तेंदुलकर भी नहीं. वरना बाउंड्री से गेंद वापस लाने की जिम्मेदारी भी आपकी ही होगी.