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कुंबले-कोहली विवाद: क्या वाकई इतने बड़े बल्लेबाज हैं कोहली?

'करो या मरो ' वाले मुकाबलों में फ्लॉप हैं विराट

Sumit Kumar Dubey

टीम इंडिया का किंग कौन ?  जवाब है विराट कोहली. चैंपियंस ट्रॉफी के पहले अचानक से शुरू हुई इस बहस पर कोच अनिल कुंबले के इस्तीफे के बाद पूर्ण विराम लग गया है. भले ही कुंबले ने अपने क्रिकेटी करियर में तमाम मील के पत्थर स्थापित किए हों. भले ही बतौर कोच अपने एक साल के कार्यकाल में कुंबले टीम इंडिया की तमाम जीतों के भागीदार बने हों, लेकिन कप्तान–कोच विवाद में कोच की बलि देकर बीसीसीआई ने जाहिर कर दिया है उसके लिए विराट कोहली कितने अहम हैं.

विराट कोहली पिछले दो-तीन सालों से सुपर फॉर्म में चल रहे हैं. भारतीय क्रिकेट का वर्तमान चेहरा विराट कोहली ही हैं. भारतीय क्रिकेट विराट कोहली के इर्द-गिर्द ही घूमती है. टीवी विज्ञापन हो या फिर फैंस की दीवानगी, हर जगह विराट का ही बोलबाला है. ऐसा लगता है जैसे सचिन तेंदुलकर के रिटायर होने के बाद क्रिकेट के भगवान की जगह विराट ने ले ली हो.


क्या सच में विराट महान खिलाड़ी हैं?

लेकिन क्या विराट वाकई इतने बड़े खिलाड़ी हैं?. क्या विराट वाकई भारतीय क्रिकेट के लिए जीत की गारंटी हैं ? मोटे तौर पर अगर देखें तो लगता है कि मौजूदा दौर में भारतीय क्रिकेट में जीत की पटकथा विराट के बल्ले के बिना लिखना मुमकिन ही नहीं है, लेकिन अगर आंकड़ों का बारीक विश्लेषण करें तो पता चलता है कि ‘करो या मरो’ वाले मुकाबलों में कोहली के रिकॉर्ड कतई ‘विराट’ नहीं हैं.

बड़े मुकाबलों में तगड़ी टीमों के खिलाफ विराट के आंकड़े बेहद सामान्य हैं. जब हमने  नॉक- आउट मुकाबलों में मजबूत टीमों के खिलाफ विराट के प्रदर्शन का आकलन किया तो यकीन नहीं हुआ कि यह वही विराट हैं,जिन्हें मौजूदा दौर का सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज माना जाता है. या जिनकी जिद के आगे नतमस्तक होकर बीसीसीआई ने कुंबले जैसे कोच की कुर्बानी दे दी है. आइए अब आपको कुछ ऐसे आंकड़ों से रूबरू कराते हैं.

नॉक-आउट मुकाबलों बुरी तरह फ्लॉप विराट

बात करते हैं नॉक-आउट मुकाबलों की. नॉक- आउट मुकाबले, यानी वो मुकाबले जिनमें हार के बाद टीम की उस टूर्नामेंट से छुट्टी हो जाती है, यानी ‘करो या मरो’ वाले मुकाबले. वनडे क्रिकेट में विराट कोहली का करियर औसत 54.14 रन प्रति मैच का है.

वनडे क्रिकेट में यह एक बेहतरीन औसत है, लेकिन 'करो या मरो’ वाले मुकाबलों में यही औसत घटकर 31.36 रन प्रति मैच का हो जाता है. अब हम इसमें से बांग्लादेश जैसी कमजोर टीम के खिलाफ कोहली के रनों को हटा दें तो यह औसत और ज्यादा घटकर महज 24.60 रन प्रति मैच का हो जाता है.

रन औसत के ये आंकड़े साफ- साफ दिखाते हैं कि ‘करो या मरो’ वाले मुकाबलों में बांग्लादेश जैसी छोटी टीम के अलावा दुनिया की बाकी सारी टीमों के सामने कोहली एक मामूली से बल्लेबाज हैं.

नॉक आउट मैचों में कोहली की नाकामी यहीं नहीं रुकती है. अपने वनडे करियर की लगभग 40 फीसदी पारियों में कोहली 50 से ज्यादा रन बनाते हैं, लेकिन नॉक- आउट मुकाबलों की 14 पारियों में कोहली महज दो बार ही 50 रन का आंकड़ा छू सके हैं. एक बार श्रीलंका के खिलाफ और दूसरी बार इसी चैंपियंस ट्रॉफी में बांग्लादेश के खिलाफ.

नॉक-आउट मुकाबलों में कोहली की नाकामी के किस्से और भी हैं. श्रीलंका एक ऐसी टीम है जिसके खिलाफ कोहली का बल्ला खूब रन उगलता है. श्रीलंका के खिलाफ कोहली ने 40 मुकाबलों में 54.58 की औसत से रन बनाए हैं, लेकिन जब बात ‘करो या मरो’ वाले मुकाबलों की आती है तो कोहली वहां भी फेल हो जाते हैं. श्रीलंका के खिलाफ सात नॉक- आउट मुकाबलों में कोहली महज 32.80 की औसत से ही रन बना सके हैं.

कोहली की बल्लेबाजी का लगभग यही आलम ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भी हैं. कंगारू टीम के खिलाफ 21 मुकाबलों में कोहली का औसत 55.66 रन प्रति मैच का है,लेकिन उसके खिलाफ खेले दो नॉक- आउट मुकाबलों में कोहली महज 12.50 की औसत से ही रन बना सके हैं.

अनिल कुंबले ने अपने इस्तीफे में कोच की भूमिका को कप्तान के लिए एक आईने के समान बताया है. आंकड़े भी एक तरह से आईना ही हैं. आंकड़े कभी झूठ नहीं बोलते. कोहली को तो कोच के रूप में आईना पसंद नहीं आया और शायद कोहली को एक सामान्य सा बल्लेबाज बताने वाले आंकड़ों का यह आईना बीसीसीआई को भी दिखाई नहीं दे रहा है, तभी तो बोर्ड ने कप्तान को संस्थान से भी ऊपर बना दिया है.