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क्यों बोर्ड का मैथ पेपर देने जैसा है विराट कोहली का काउंटी में खेलना!

2014 का इंग्लैंड दौरा विराट के लिए ना केवल निराशाजनक रहा था, बल्कि उनकी तेज पिचों पर खड़े रहने की क्षमता भी शक के दायरे में आ गई थी

Jasvinder Sidhu

यह मार्च है और इस महीने बोर्ड के पेपर देने वाले छात्रों को गणित का भूत हर रोज तंग करता है. शायद यह कारण है कि होशियार बच्चों  के लिए भी मैथ की ट्यूशन लेना मजबूरी है. भारतीय कप्तान विराट कोहली का काउंटी टीम सर्रे के लिए खेलने का फैसला बोर्ड के मैथ के पेपर की तैयारी करने जैसा है. वैसे यह तारीफ के काबिल है.

इससे दो बातें साफ होती हैं. कोहली को बतौर कप्तान और बल्लेबाज अपने करियर के सबसे बेहतरीन साल (2017) को लेकर कोई गलतफहमी नहीं है. दूसरा, कप्तान को क्रिकेट का आसान गणित समझ आता है जिसका फॉर्मूला बिस्कुल सीधा है कि एक सीरीज या साल में बेहतरीन फॉर्म दूसरे में भी बनी रहेगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है.


2017 उनके करियर का बेहतरीन साल रहा. 2011 में वेस्टइंडीज के खिलाफ अपना पहला टेस्ट मैच खेलने वाले विराट ने अभी तक एक साल में पांच शतक नहीं लगाए थे और ना ही तीन दोहरे शतक. 10 टेस्ट मैचों की 16 पारियों में 76.24 के स्ट्राइक रेट से रन बनाना साबित करता है कि वह ऐसी फॉर्म में हैं जिसे खराब करने के लिए कि गेंदबाज को जीवन की श्रेष्ठ गेंदबाजी करनी होगी.

2014 का इंग्लैंड दौरा था विराट के लिए था बुरा सपना

विराट इस स्थिति को लेकर भी गलतफहमी में नहीं दिखाई देते, क्योंकि आंकड़े उन्हें ऐसा करने की इजाजत नहीं देते. 2014 में विराट साउथ अफ्रीका और न्यूजीलैंड में चार कामयाब टेस्ट मैच खेलने के बाद इंग्लैंड पहुंचे थे. जोहानसबर्ग टेस्ट मैच में 119 और 96 रन की पारियां उनके साथ थीं. फिर ऑकलैंड में 67 और वेलिंगटन में 105 रन की नाबाद पारी ने इंग्लैंड के टीम प्रबंधन को उनकी बल्लेबाजी के वीडियो देखने के लिए मजबूर कर दिया था.

लेकिन जब नॉटिंघम में इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज शुरू हुई और जब ओवल में पांचवें टेस्ट मैच के साथ इसका समापन हुआ तो विराट की मार्कशीट लाल रंग के गोलदारों से पटी पड़ी थी. पूरी सीरीज में विराट का स्कोर 1,8, 25,0,39,28,0,7,6 और 20 था.

उस इंग्लैंड दौरे पर विराट के 134 रन ही सवाल नहीं कर रहे थे, बल्कि उनकी तेज पिचों पर खड़े रहने की क्षमता भी शक के दायरे में आ गई. क्योंकि पांच टेस्ट मैच की दस पारियों में वह केवल 288 गेंदों का ही सामना कर पाए जिसमें वह छह बार दस रन से पहले आउट हुए.

इस पूरी गणित को समझने के बाद एहसास होता है कि विराट का इंग्लैंड दौरे से ठीक पहले काउंटी में जाकर वहां की परिस्थितियों और प्रतिस्पर्धी बॉलरों के सामने बल्लेबाजी करने का फैसला परिपक्वता भरा है. यह बेहद ही परिपक्व फैसला है, क्योंकि कप्तान अपनी मौजूदा फॉर्म को बेहतर मान कर अहम दौरे से पहले किसी गफलत में नहीं हैं.

इंग्लैंड के दौरे पर पास होना चाहते हैं कोहली

यकीनी तौर पर इंग्लैंड का दौरा विराट कोहली की मौजूदा जबरदस्त फॉर्म की असलियत का सर्टिफिकेट कहा जा सकता है. इंग्लैंड में रन बनने के बाद कोई भी समीक्षक कमजोर गेंदबाजी के सामने तुर्रमखां बनने के पुराने तर्क को नहीं दोहरा पाएगा.

वैसे विराट के लिए किसी के सामने कुछ साबित करना जरूरी नहीं है, क्योंकि साउथ अफ्रीका दौरे पर उन्होंने दिखा दिया है कि वह कहीं भी रन बना सकते हैं. लेकिन क्रिकेट में कहा जाता है कि श्रेष्ठ होने का पैमाना इंग्लैंड के दौरे पर रन बनाना और मैच जीतना है. इस लिहाज से इंग्लैंड का दौरा कप्तान के लिए बोर्ड के एग्जाम जैसा है.

मौजूदा फॉर्म को देखते हुए लगता नहीं कि तीन जुलाई से मैनचेस्टर में शुरू होने वाली तीन टेस्ट मैचों की सीरीज खत्म होने के बाद उनकी मार्कशीट पर इस बार भी लाल रंग के गोलदारे हावी होंगे. वैसे, फिर भी उनके लिए दुआ करने में कोई बुराई नहीं है.