अगले महीने अफगानिस्तान भारत के खिलाफ अपना पहला टेस्ट खेलने के साथ इतिहास के पन्नों पर नई इबारत लिखेगा. लेकिन क्या भारत हजारों संकटों से जूझ कर इस मुकाम तक पहुंचे अफगानिस्तान के साथ न्याय कर पाया है?
यह जानना भी जरूरी है कि इस दौर के सबसे बेहतरीन क्रिकेटर विराट कोहली ने यह मैच न खेल कर क्या गंवाया है! भारतीय क्रिकेट बोर्ड और उसके क्रिकेटरों को इस सवाल का सामना अभी बेशक न करना पड़े लेकिन भविष्य जरूर उनसे पूछेगा.
मार्च 2001 का वह मंजर इतिहास पर निगाह रखने वालों के जहन में आज भी गुजरी हुई शाम जैसा है. तालिबान कमांडर बामियान में 1700 साल से भी पुरानी आंखों को सुकून देने वाली महात्मा बुद्ध की दो विशाल मूर्तियों को एंटी-एयरक्रॉफ्ट गन और बारूद से नेस्तनाबूद करने में व्यस्त थे.
अफगानिस्तान में क्रिकेट क्यों है खास
पूरी दुनिया ने दुहाई दी लेकिन तालिबान ने धर्म का हवाला देकर उस ऐतिहासिक धरोहर को हमेशा के लिए नेस्तनाबूद कर दिया. तालिबान के लिए दूसरे धर्मों के अलावा संगीत, गाना बजाना और यहां तक कि फोटोग्राफी भी हराम थी. लेकिन जब भी कत्लोगारत से मौका मिलता तो उन्हें क्रिकेट खेलने से कभी परहेज नहीं था.
गृहयुद्ध के कारण शरणार्थी बन जब अफगान पाकिस्तान गए तो बेहतर भविष्य की तलाश कर रहे कई युवाओं के लिए इस खेल ने मायने बदल दिए. अफगानिस्तान के लोगों के लिए आज क्रिकेट हर दिन बम धमाकों के बाद लाशों के ढेरों के बीच चीखों और रोने-धोने से उबरने में मददगार साबित हो रहा है.
आईपीएल में अफगानिस्तान के दो ही क्रिकेटर खेल रहे हैं. लेकिन उनकी मौजूदगी ने देश को टीवी के सामने एक माला में पिरो दिया है. अब उसे इंतजार है अगले महीने 14 जून से बेंगलुरु में भारत से होने वाले टेस्ट मैच का.
कोहली का फैसला कितना वाजिब!
इस मैच में विराट कोहली नहीं होंगे क्योंकि वह इंग्लैंड के दौरे की तैयारियों के मद्देनजर सरे से काउंटी खेलने जा रहे हैं. यह फैसला सही है या गलत, इस पर पक्ष-विपक्ष में जाने कितने तर्कों के साथ बहस हो सकती है.
हां, यह तय है कि जब भी भविष्य में अफगानिस्तान के पहले टेस्ट मैच की बात होगी, यही कहा जाएगा कि उस दौर का भारत का सबसे बेहतरीन क्रिकेटर उस ऐतिहासिक मैच में नहीं खेला था. एक तर्क शायद यह भी हो कि अफगानिस्तान कमजोर टीम थी और उस मैच में विराट को उतारने का कोई तर्क नहीं था.
कभी भारत ने भी खेला था पहला टेस्ट
भारत 25 जून 1932 को इंग्लैंड के खिलाफ पहला टेस्ट मैच खेला था. पहले कप्तान सीके नायडू की टीम को महान डगलस जार्डिन की टीम का सामना करना पड़ा. नायडू की टीम ऐसी नहीं थी कि अंग्रेजों की चूलें हिला दे. लेकिन अंग्रेज हर मैच में मजबूत टीम से साथ उतरे.
उन्होंने भारत को कभी कमजोर नहीं आंका और शायद यही कारण रहा कि भारत ने भी बतौर टेस्ट मैच खेलने वाले देश के रूप में अपने खुद के साथ मैदान पर पूरा न्याय किया. भारत को अपना पहला टेस्ट मैच जीतने में 24 टेस्ट मैच और दो दशक लगे.
फरवरी 1952 में इंग्लैंड के खिलाफ चेन्नई में भारत वह ऐतिहासिक मैच भी 1947 में बतौर आजाद मुल्क 14 टेस्ट मैच खेलने के बाद जीता था.
इस दौरान इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज जैसी मजबूत टीमों ने किसी पेशेवर की तरह भारत का पूरा सम्मान करते हुई उसे प्रतिस्पर्धी क्रिकेट खेलने के लिए और जीतने के लिए जरूरी मुकाबला और माहौल दिया.
कोहली ने गंवाया 'विराट' मौका
अफगानिस्तान बुरे दौर से गुजर रहा है और अगर क्रिकेट उसे उबरने में मदद कर रहा है तो एक जिम्मेदार देश होने का नाते भारत की जिम्मेदारी अहम है.कल्पना कीजिए कि विराट उस मैच में खेलते. उन्हें शतक लगाने से शायद कोई रोक भी नहीं पाता. संभव है कि स्कोर बोर्ड पर इंडिया की टॉप बॉलिंग के सामने अफगानिस्तान के किसी बल्लेबाज के नाम के आगे 100 रन होते. या फिर सोचिए उन गेंदबाजों के बारे में जो संभवत: विराट को आउट करता!
पालने से उतर कर चलना सीखे अफगानिस्तान क्रिकेट को और मजबूत व अगली पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए विराट जैसे हीरो चाहिए और पहले मैच में खेल कर विराट खुद इसमें इस मुल्क की मदद कर सकते थे. ऐसे में भविष्य में जब भी अफगानिस्तान के पहले मैच की बात होती तो विराट का ही नाम पहले आता. लेकिन विराट ने यह ऐतिहासिक मौका गंवा दिया है.