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चैंपियन बनाने में कैसे काम आ रहा है मिस्टर परफेक्शनिस्ट का फॉर्मूला

वो कच्ची मिट्टी को सांचे में ढालकर उसे पका सकते हैं. लेकिन पकी हुई मिट्टी में तब्दीली बर्तन तोड़ सकती है, यह भी उन्हें पता है.

Shailesh Chaturvedi

कुछ साल पहले की बात है. दिल्ली के फिरोजशाह कोटला स्टेडियम में एक मैच के दौरान प्रेस बॉक्स में गपशप चल रही थी. अचानक बात शुरू हुई खिलाड़ियों के इंटरव्यू पर. किस खिलाड़ी का इंटरव्यू करना सबसे मुश्किल है. एक महिला पत्रकार ने सबसे ऊंचे सुर में जवाब दिया कि राहुल द्रविड़.

उस वक्त तक और अब भी द्रविड़ की इमेज जिस तरह की है, उसमें यही लगा कि मोहतरमा इसलिए द्रविड़ का नाम ले रही होंगी, क्योंकि उन्होंने इंटरव्यू देने से मना कर दिया होगा. लेकिन ऐसा था नहीं. हिंदी चैनल की पत्रकार ने वजह बताई.


उन्होंने कहा, ‘दिक्कत ये होती है कि द्रविड़ से इंटरव्यू शुरू होता है, तो पहला सवाल होता है कि हिंदी या इंग्लिश. हिंदी बताने के बाद वो जवाब देना शुरू करते हैं. जवाब में अगर कोई शब्द अंग्रेजी का इस्तेमाल कर लें, तो इंटरव्यू रुकवाते हैं. कहते हैं कि फिर से करेंगे. मैंने इंग्लिश में बोल दिया. उसके बाद फिर कोई शब्द इंग्लिश में निकल जाता है, तो इंटरव्यू फिर रुक जाता है.’

न्यूजीलैंड में अंडर 19 टीम पर दिख रहा है द्रविड़ का असर

इस हल्के-फुल्के किस्से का मकसद सिर्फ द्रविड़ की शख्सियत के एक पहलू को समझाना था. किसी भी छोटी बात पर कितनी तवज्जो वो देते हैं, यह इस किस्से से समझ आता है. तभी इस वक्त जब न्यूजीलैंड में भारतीय अंडर 19 टीम लगभग परफेक्ट क्रिकेट खेल रही है, तब भारतीय क्रिकेट के ‘मिस्टर परफेक्शनिस्ट’ की चर्चा होनी ही चाहिए.

सेमीफाइनल में 203 रन से बड़ी जीत उस परफेक्शन को ही दिखाती है, जो भारतीय टीम के प्रदर्शन में नजर आ रहा है. पाकिस्तान के खिलाफ वो मुकाबला जीतकर टीम इंडिया फाइनल में पहुंची है. अब उसे 3 फरवरी को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेलना है. वनडे में नहीं पता कि किस रोज क्या होगा. हो सकता है कि टीम इंडिया चैंपियन बनकर लौटे. हो सकता है, न लौटे. लेकिन दोनों सूरतों में राहुल द्रविड़ के असर पर बात किए बिना नहीं रहा जा सकता.

यह कहानी तबसे शुरू होती है, जब एक इंटरव्यू मे उस समय के बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने एक खास जानकारी दी थी. अनिल कुंबले के कोच बनने की कहानी के बीच उनका इंटरव्यू आया था. ठाकुर ने कहा था कि उन्होंने राहुल द्रविड़ से गुजारिश की थी कि वो सीनियर टीम के कोच बन जाएं. लेकिन द्रविड़ ने कहा कि उन्हें जूनियर टीम संभालने दीजिए.

कोई भी बता सकता है कि ज्यादा बड़ा कॉन्ट्रैक्ट हो या ज्यादा पब्लिसिटी, जूनियर टीम के मुकाबले सीनियर टीम का कोच होना बड़ी बात है. लेकिन द्रविड़ को युवाओं के साथ काम करना था. उन्हें तैयार हो चुके खिलाड़ियों के साथ वक्त नहीं बिताना था. ये  भारतीय क्रिकेट के लिए बहुत अच्छा रहा.

द्रविड़ अगर उस वक्त सीनियर टीम के कोच हो गए होते तो शायद आज कुंबले की तरह बाहर बैठे होते. उनका पूरा रवैया इस तरह का है, जो जूनियर टीम के साथ उनके जुड़ने को कामयाब बनाता है. वो कच्ची मिट्टी को सांचे में ढालकर उसे पका सकते हैं. लेकिन पकी हुई मिट्टी में तब्दीली बर्तन तोड़ सकती है, यह भी उन्हें पता है.

कप्तान के तौर पर नहीं मिली थी ज्यादा कामयाबी

यही वजह है कि जब द्रविड़ टीम इंडिया के कप्तान बने थे, तब उन्हें पसंद करने वाले बहुत ज्यादा लोग नहीं थे. 194 रन पर पारी घोषित करने के मामले में सचिन तेंदुलकर की नाराजगी हम सभी जानते हैं. लेकिन द्रविड़ ऐसे ही हैं. वो कीपिंग नहीं करना चाहते थे, लेकिन टीम की जरूरत का हवाला देकर सौरव गांगुली ने उन्हें मना लिया. टीम की जरूरत के लिए उन्होंने लगातार काम किया. अब भी वो टीम की जरूरत के लिए काम कर रहे हैं.

पिछले साल जब द्रविड़ आईपीएल में दिल्ली डेयरडेविल्स के कोच थे, तब एक मजाक किया जाता था. उन्होंने युवाओं को इतने मौके दिए कि कहा जाता था कि द्रविड़ डेयरडेविल्स के पैसों से भारत की युवा टीम तैयार कर रहे हैं. लेकिन यही वो बात है, जहां द्रविड़ एंजॉय करते हैं.

दो साल पहले भी वो वर्ल्ड कप में कोच थे. तब भी टीम कामयाब हुई थी. हालांकि फाइनल गंवा दिया था. उस वक्त भी द्रविड़ ने टीम से कहा था- मेरे लिए आप चैंपियन हैं.

उस टीम में एक खिलाड़ी था, जिसमें टैलेंट दिखता था. लेकिन उसके साथ जरूरी अनुशासन नहीं. उस खिलाड़ी का नाम ऋषभ पंत है. इन दो सालों में पंत में अनुशासन दिखा है. इसीलिए वो टीम इंडिया के आसपास नजर आते हैं. यही किसी कोच का असर होना चाहिए. यही असर लेकर भारतीय क्रिकेट में द्रविड़ आए हैं.

अपनी स्पीच में दिया था कामयाबी का फॉर्मूला

कुछ समय पहले उन्होंने अपनी एक स्पीच में कहा था कि जूनियर स्तर पर जरूरी है कि खिलाड़ियों को सिर्फ मजा लेने दिया जाए. खेल का मजा लेना खेल सीखने का सबसे जरूरी कदम है. बाकी सारी बातें उसके आसपास आती हैं. उनका यह भी कहना था कि हमें किसी भी स्तर पर टैलेंट को जाया नहीं जाने देना चाहिए.

यही काम वो कर रहे हैं. पिछले कुछ सालों में वो जिस टीम के साथ जुड़े हैं, उसके युवा खिलाड़ी लगातार यह बताते रहे हैं कि ‘राहुल भाई’ की वजह से उनके खेल में कितना सुधार हुआ है. वो टीम चाहे आईपीएल की राजस्थान रॉयल्स हो, जहां वो मेंटॉर थे. चाहे वो दिल्ली डेयरडेविल्स हो, जहां वो कोच थे. या भारत की युवा, अंडर 19 या कोई जूनियर टीम हो, जिसके वो पिछले कई साल से कोच हैं. यहां खिलाड़ी अनुशासन के साथ क्रिकेट के मजे लेने के सांचे में ढल रहा है, जिसका फॉर्मूला राहुल द्रविड़ ने तैयार किया है. टीम का अभी वर्ल्ड कप में चैंपियन बनना तो तय नहीं. हां, इसके कई खिलाड़ी अगले कई साल तक भारतीय क्रिकेट में चमकते रहेंगे, यह तय है.