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करोड़पति क्रिकेटरों की भीड़ में रोकना मुश्किल होगा ‘चिल्लर’ में मुल्क बेचने वालों को

बीसीसीआई की तरफ से अच्छा वेतन ना मिलने पर बेहतर जिंदगी के लिए में अक्सर युवा घरेलू क्रिकेटर गलत तरीका अपना लेते हैं

Jasvinder Sidhu

सुप्रीम कोर्ट से भारतीय क्रिकेट का पाक-साफ करने की जिम्मेदारी मिली तो जस्टिस राजेंदर मल लोढ़ा की तीन सदस्यीय कमेटी ने हर उन पहलू को छूआ जो गंदगी के कारण थे. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि जिस तरह से इंडियन प्रीमियर लीग की टीमें युवा, औसत व गुमनाम क्रिकेटरों को करोड़ों रुपये दे रही हैं, उससे देश के लिए खेलने वाली प्रतिभाशाली खिलाड़ियों मे नाराजगी व हताशा की स्थिति पैदा हो गई है.

कमेटी का इशारा पैसे को लेकर बने असंतुलन की ओर ध्यान दिलाना था, जिसके कारण देश और क्लब की टीम के लिए खेल रहे खिलाड़ियों के बीच बड़ी खाई पैदा हो चुकी थी.


मामला सिर्फ आईपीएल के खिलाड़ियों या देश के लिए खेलने वालों की ही नहीं था. कमेटी ने पैसे के कारण बने वर्गों पर ध्यान देने और इस मसले के निदान पर जोर दिया. लेकिन दुखदाई यह है कि इस रिपोर्ट के आधार पर जिस प्रशासकों की कमेटी को सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई को चलाने की जिम्मेदारी सौंप रखी है, लगता है कि यह अहम बहस उसके सिर के ऊपर से निकल गई है.

प्रशासकों की कमेटी (सीओए) ने दो दिन पहले क्रिकेटरों के लिए नया वेतन करारनामा तैयार किया है. इस पर नजर डालने से कहीं नहीं लगेगा कि यह क्रिकेटरों को बेहतर जीवन देने के मद्देनजर बनाया गया है.

नए करारनामे में भी घरेलू क्रिकेटर को नहीं मिला कुछ खास 

असल में इसमें पहले से ही करोड़पति क्रिकेटरों के करोड़ों में और कई और करोड़ का इजाफा किया गया है. लेकिन जमीनी स्तर पर प्रथम श्रेणी के क्रिकेटरों को क्या रहा है मिला! चिल्लर!

घरेलू क्रिकेटरों की फीस में दो सौ गुना के इजाफे के बाद भी दैनिक भत्ता 35000 प्रतिदिन पहुंचा है. क्रिकेट बाहर चकाचौंध भरा नजर आता है लेकिन सच्चाई यह भी है कि प्रथम श्रेणी के अधिकतर क्रिकेटरों के पास अच्छी नौकरी नहीं हैं.

इस खेल में सब मिलता है लेकिन उसके लिए ऊपर तक पहुंचना ही शर्त है. अब किसी रणजी मैच में खेलने आया आईपीएल का स्टार क्रिकेटर किसी घरेलू खिलाड़ी की छोटी कार की बगल में अपनी लेटेस्ट हमर या बीएमडब्लू खड़ी करता है तो अंदर की कोफ्त बाहर आना लाजिमी है.

बेहतर जिंदगी के लिए बागी लीग खेलने पहुंचे थे रायडू

अंबाती रायडू सिर्फ 21 साल के थे जब उन्होंने भारत के लिए खेलने के सपने की हत्या करके बागी टूर्नामेंट इंडियन क्रिकेट लीग में शामिल हो जाने का फैसला किया. कारण साफ था, उन्हें बेहतर जिंदगी के लिए पैसे कमाने थे और घरेलू क्रिकेट में वह हो नहीं पा रहे थे. भारतीय टीम तक पहुंचने के लिए उन्हें न जाने कितना लंबा इंतजार करना था.

आईपीएल आने के बाद से क्रिकेट में जितने भी भ्रष्टाचार के मामले सामने आए हैं, उनमें साबित हुआ है कि समझदार, पेशेवर और देश के लिए खेलने का टैलेंट रखने वाले क्रिकेटर दसवीं या कॉलेज में अपनी पढ़ाई छोड़ चुके बुकीज के चंगुल में आसानी से ऐसे फंस गए जैसे चूहेदानी में चूहे.

हालत यह हो गई कि कभी करोड़ों में खेलने वाले क्रिकेटर चंद लाख के लिए भ्रष्ट होने को तैयार हो गए. भारतीय टीम में रहने के रुतबे और पैसे के बाद टीम के बाहर होने के बाद के अंतर ने बुकियों का काम आसान कर दिया.

महज 10 लाख के लिए फिक्स हुआ था 2013 आईपीएल

अब 2013 में आईपीएल में हुई स्पॉट फिक्सिंग की चार्जशीट पर नजर डालते हैं. इसमें टीम इंडिया के सदस्य रहे एस. श्रीसंत और उनके राजस्थान रॉयल्स के साथी अजीत चंदीला और अंकित चौहान पर पैसै लेकर बुकियों के लिए काम करने का आरोप लगा. चार्जशीट में जिस सबसे बड़ी रकम का जिक्र हुआ वह महज दस लाख थी.

लोढ़ा कमेटी ने जिस मुद्दे का जिक्र किया है, वह भारतीय टीम की समस्या बन चुकी है. करोड़पति, लखपति और हजारपति क्रिकेटरों के बीच एक बड़ी खाई है जो बाहर से दिखाई नहीं देती. जाहिर है कि करोड़पति से अरबपति हो चुका क्रिकेटर हताश होने वाला नहीं है. जबकि लखपति या हजारपति के लिए नाकामी दिखने की स्थिति में कोई दूसरा रास्ता नहीं है.  ऐसे में क्रिकेटरों की इस जमात में से कितने को भ्रष्टाचार की खाई में गिरने से रोका जा सकेगा, इस सवाल का जबाव तलाशना जरूरी है.