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संडे स्पेशल : टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले नए देशों के साथ कुछ नयापन भी आएगा

बहुत दिनों बाद टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले देशों की संख्या में इजाफा हुआ और अब ऐसे देशों की संख्या बारह हो गई. आयरलैंड और अफगानिस्तान का क्रिकेट से जुड़ा इतिहास बिल्कुल अलग है

Rajendra Dhodapkar

इन दिनों क्रिकेट में एक अच्छी बात हुई. आयरलैंड और अफगानिस्तान को टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले देशों का दर्जा मिल गया. बहुत दिनों बाद टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले देशों की संख्या में इजाफा हुआ और अब ऐसे देशों की संख्या बारह हो गई. आयरलैंड और अफगानिस्तान का क्रिकेट से जुड़ा इतिहास बिल्कुल अलग है. आयरलैंड तो इंग्लैंड से जुड़ा हुआ ही है इसलिए आयरलैंड में क्रिकेट उन्नीसवीं सदी के शुरुआत में ही पहुंच गया था. बीसवीं सदी के शुरुआत में आयरलैंड की टीम इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट खेलती थी और अन्य अंतरराष्ट्रीय टीमों के खिलाफ भी वह मैच खेली है. उसने तब वेस्टइंडीज और साउथ अफ्रीका की टीम को हराया भी था. कायदे से उसे काफी पहले अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में जगह मिल जानी चाहिए थी, लेकिन बीच के दौर में इंग्लैंड से दुश्मनी के चलते वहां अंग्रेज खेलों पर पाबंदी लग गई. फिर से क्रिकेट शुरु होने पर कुछ ही वर्षों में वहां काफी तरक्की हो गई और अब वह बाकायदा टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले देशों में शुमार हो गया है. देर आयद, दुरुस्त आयद.

शरणार्थियों के जरिये क्रिकेट अफगानिस्तान पहुंचा


अफगानिस्तान में क्रिकेट की कहानी इसके बरक्स बहुत मुख्तसर है. यहां क्रिकेट बीसवीं सदी के आखिरी दौर में गृहयुद्ध के दौरान पाकिस्तान गए शरणार्थियों के जरिये पहुंचा. तालिबान के राज में वहां भी क्रिकेट पर पाबंदी लगी, लेकिन सन 2000 में पाबंदी हटा दी गई.

ख़ैर उसके कुछ दिनों बाद तालिबान का राज ही नहीं रहा. खास बात यह है कि देश में इतनी अशांति होते हुए भी वहां क्रिकेट की इतनी तरक्की हुई है कि सन 2013 में उसे सहयोगी संगठन का दर्जा मिला और अब वह बाकायदा टेस्ट खेलने वाला देश बनने वाला है.

अब आईसीसी कर रहा है क्रिकेट का विस्तार

क्रिकेट के लिए यह अच्छा है कि उसका विस्तार हो. क्रिकेट लंबे वक्त तक कुछ ही देशों का खेल बना रहा और आईसीसी ने भी उसका विस्तार करने की बहुत कोशिश नहीं की. अब आईसीसी ऐसा कर रहा है इसके नतीजे बेहतर होंगे. यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि क्रिकेट के कई पुराने शक्तिकेंद्र कमज़ोर हो रहे हैं. वेस्टइंडीज में क्रिकेट के कमजोर होने की वजह कैरिबियन द्वीप समूह में क्रिकेट की घटती लोकप्रियता है. इसकी वजहों पर बहुत कुछ कहा और लिखा गया है, लेकिन लगता यही है कि अब वेस्टइंडीज में क्रिकेट का जो सामाजिक आधार कमजोर हुआ है, वह फिर पुरानी हालत में नहीं लौटेगा. इसलिए वहां क्रिकेट के फिर से मजबूत होने की उम्मीद नहीं है.

भारत में अब भी जनता का खेल क्रिकेट है

इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में भी क्रिकेट उस तरह से सामाजिक पहचान का अंग नहीं रहा है जैसे बीसवीं सदी में था, बल्कि अब अंग्रेज ही उतने अंग्रेज नहीं रहे जितने पहले थे, अब जो ग्लोबल संस्कृति सारी दुनिया को घेर रही है, उसका असर वहां भी पड़ रहा है. दूसरे क्रिकेट एक दौर में पब्लिक स्कूलों और विश्वविद्यालयों के जरिये अंग्रेज साम्राज्य के लिए प्रशासक तैयार करने की प्रक्रिया का अंग था. अब साम्राज्य ही नहीं रहा तो प्रशासकों की जरूरत भी खत्म हो गई. अंग्रेज़ समाज भी अब बहुत मिलाजुला समाज हो गया है, जिसमें अंग्रेजी संस्कृति की पहचानें खत्म नहीं, पर कमजोर जरूर हुई हैं.

अब दुनिया की प्रभावशाली संस्कृति अंग्रेज नहीं, अमेरिकी है और इसका असर इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया पर दिखने लगा है. क्रिकेट का महत्व कम होने की प्रक्रिया धीमी है, लेकिन चल रही है. यहां तक कि भारत में भी अगर अंग्रेजी स्कूलों से पढ़े नौजवानों को देखें तो उनमें फुटबॉल की लोकप्रियता बढ़ रही है. वे आईपीएल से ज्यादा एमयू (मैनचेस्टर युनाइटेड) और बार्सिलोना से जुड़े नजर आते हैं, लेकिन भारत में अब भी जनता का खेल क्रिकेट और सिर्फ क्रिकेट है.

टेस्ट खेलने वाले बारह में से छह देश भारतीय उपमहाद्वीप के

समाजशास्त्री आशीष नंदी ने लिखा था कि क्रिकेट एक भारतीय खेल है, संयोगवश जिसका अविष्कार इंग्लैंड में हुआ. यह बात अब सच होती दिख रही है. अब टेस्ट खेलने वाले बारह में से छह देश भारतीय उपमहाद्वीप के देश हैं. बाकी छह देश दुनिया के बाकी महाद्वीपों में बिखरे हैं. क्रिकेट की लोकप्रियता भी सबसे ज्यादा भारतीय उपमहाद्वीप में है और पैसा भी यहीं है. क्रिकेट अब भविष्य में मुख्यत: भारतीय खेल की तरह ही प्रासंगिक रहेगा जिसे अंग्रेज और ऑस्ट्रेलियाई भी खेलते हैं.

फिर भी क्रिकेट का जितना विस्तार होगा उतनी खेल में विविधता आएगी और पुराने शक्तिकेंद्रों के कमजोर होने पर उनकी जगह लेने वाले नए केंद्र खड़े होंगे. कभी एक दिवसीय विश्वकप का फाइनल अफगानिस्तान और आयरलैंड के बीच भी हो सकता है. तब सोचिए कितना दिलचस्प खेल देखने को मिलेगा. जैसा कि माओ ने कहा था कि हजार फूलों को खिलने दो. माओ ने खुद इस बात पर अमल नहीं किया, लेकिन बात तो सौ टके की है.