view all

जब टीम इंडिया के फाइन ट्यूनिंग कोच ने कहा- यह एक हुनर है. इसलिए मैं यहां हूं और तुम वहां

टीम इंडिया के कोचिंग स्टाफ में अपनी भूमिका के सवाल को टाल गए रवि शास्त्री

Jasvinder Sidhu

दीवार फिल्म का वह डायलॉग तो याद होगा आपको. ताकत और पैसे के नशे में पागल अमिताभ बच्चन अपने भाई से पूछते हैं कि मेरे पास बंगला हैं, गाड़ी है, पैसा है, तेरे पास क्या है? थोड़ी हैरानी हो रही होगी कि भारत और श्रीलंका के बीच टेस्ट सीरीज में आखिर दीवार का वह डायलॉग क्या कर रहा है!

चलो समझाने की कोशिश करते हैं. मामला भारतीय टीम के हेड कोच रवि शास्त्री का है. शास्त्री को भारतीय क्रिकेट बोर्ड सालाना साढ़े सात करोड़ रुपये से अधिक का वेतन मिलता हैं. ऐसे में एक सवाल काफी समय से जेहन में घूम रहा था. आखिर हर दिन सवा दो लाख या हर महीने 55-60 लाख रुपये की सेलरी पाने वाले कोच की टीम में भूमिका क्या है!


आखिर टीम की ट्रेनिंग कैसे योगदान करते हैं शास्त्री?

यह सवाल इसलिए भी उत्साहित करता है क्योंकि टीम में एक बल्लेबाजी कोच है और दूसरा यानी राहुल द्रविड़ वेटिंग में हैं. एक फील्डिंग कोच है, बॉलिंग कोच शास्त्री खुद अपने साथ लाए हैं. ट्रेनर भी है और दो मालशिये भी. खेल के हर पहलू पर काम करने के लिए विशेषज्ञ हैं.

जाहिर है कि शास्त्री को कुछ ऐसा काम सौंपा गया है जो इन सब विशेषज्ञों से अलग होगा. यह सवाल किसी को तो पूछना था. मंगलवार की दोपहर सिंहलीज स्पोर्टस क्लब में 33 डिग्री का तापमान था. उमस का असर टीम इंडिया के खिलाड़ियों पर देखा जा सकता था. कप्तान विराट कोहली पसीने के निपटने के लिए टीम होटल के ब्राउन कलर का एक तौलिया साथ लाए थे.

शास्त्री को तीखे सवाल पसंद नही

इस सब के बीच शास्त्री प्रेस कांफ्रेस के लिए आए. फ्रेश शास्त्री के चेहर पर ओकली का चश्मा और टोपी थी. वह काफी खुश थे. गॉल में टीम ने मेहमानों को बुरी तरह धोया है. वैसे एडवांस में बताना जरूरी है कि उन्होंने कहा है कि वह वर्तमान में जीते हैं. इसलिए वह दक्षिण अफ्रीका के आगामी दौर के बारे में नहीं सोच रहे हैं.

लगता है कि मुद्दे पर आ जाना चाहिए.

तो.. इस लेखक ने शास्त्री से सवाल किया, ‘कोच टीम में बतौर हेड कोच आपका रोल क्या है! आपकी भूमिका क्या है!.’

कुछ सेकेंड सोचने के बाद उन्होंने जवाब देना शुरू किया, ‘मेरा रोल पूरे सपोर्ट स्टाफ के इंचार्ज का है. मेरा काम है कि मैं खिलाड़ियों को अपनी बात रखने की जेहनी आजादी दूं. मेरा काम यही है कि जब वे मैदान पर खेलने उतरें, उनके जेहन पर कोई भार न हो. वह पिछले तीन साल से टीम इंडिया के बेखौफ और सकारात्मक क्रिकेट खेलें जो भारत का ब्रांड है.’

हेड कोच का जवाब सुनने में अच्छा लगा तो हिम्मत करके पूछ लिया कि आखिर वह यह सब करते कैसे हैं!

जिज्ञासा यह जानने कि थी कि क्या हेड कोच खिलाड़ियों को क्लासरूम के बच्चों की तरह बिठा कर लेक्चर देते हैं या फिर वह एक आजाद खयालों वाले कोच की तरह इस बात के हामी हैं कि मौज करो मस्ती करो, लेकिन मैच जीतो और कर लो दुनिया मुठ्ठी में.

लेकिन कोच को यह सवाल पसंद नहीं आया कि आखिर वह खिलाड़ियों में बेखौफ क्रिकेट या अपनी बात खुल कर रखने के लिए कैसे तैयार करते हैं! अपसेट नजर आए शास्त्री ने इस लेखक की तरफ मुखातिब हो कर कहा,  ‘यह एक हुनर है. इसलिए मैं यहां हूं और तुम वहां.’

वह सब ठीक है कि कौन कहां है, लेकिन उन्होंने साफ नहीं किया कि उनका रोल क्या है. फिर एक और संवाददाता ने ऐसा ही सवाल थोड़ा शहद लगा कर पूछा.

शास्त्री ने अच्छी तरह जवाब दिया, ‘मैं टीम का मैनेजर भी रह चुका हूं और टीम डायरेक्टर भी. यह दोनों भूमिकाएं एक सी हैं. मेरा मानना है कि इस स्तर पर कोचिंग नहीं, बल्कि फाइन ट्यूनिंग की जरूरत पड़ती है.’

सवाल का जवाब नहीं मिला लेकिन साफ हो गया कि फाइन ट्यूनिंग के लिए इतनी मोटी तनख्वाह बहुत ज्यादा है.