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सौरव गांगुली, जन्मदिन विशेष : ऐसा कप्तान जिसकी 'दादागीरी' ने बदल दी टीम इंडिया की तस्वीर

सौरव की कप्तानी में भारत ने विदेशों में भी लड़कर जीतना सीखा

Sumit Kumar Dubey

साल 1996 में  इंग्लैंड दौरे के लिए जब टीम इंडिया का ऐलान हुआ तो उस टीम में एक ऐसा नाम भी था जिस पर बहुत लोगों को आपत्ति थी. उसी साल भारत में खेले गए वर्ल्डकप में अच्छा प्रदर्शन करने वाले विनोद कांबली को ड्रॉप करके बंगाल के बांए हाथ के बल्लेबाज सौरव गांगुली को चुना गया था. आरोप लगे कि उस वक्त के बोर्ड के सबसे ताकतवर पदाधिकारी जगमोहन डालमिया के प्रभाव के चलते गांगुली को टीम इंडिया में शामिल किया गया है.

उस दौरे में बर्मिंघम में उस सीरीज के पहले मुकाबले में टीम इंडिया को आठ विकेट से हार मिली. दूसरे टेस्ट की प्लेइंग इलेवन में सौरव गांगुली को जगह दी गई. क्रिकेट के मक्का कहे जाने वाले लॉर्ड्स के मैदान पर सौरव गांगुली ने अपने टेस्ट करियर का आगाज किया और ऐसा आगाज किया किया कि उनके आलोचकों के मुंह बंद हो गए. लॉर्ड्स के उस मुकाबले में सौरव ने 131 रन की पारी खेली और टेस्ट को ड्रॉ कराने में अहम भूमिका निभाई. उसके बाद  नॉटिंघम में अगले टेस्ट में सौरव ने और सेंचुरी जड़ी और वह मुकाबला भी टीम इंडिया हारने से बच गई.


लगातार दो टेस्ट शतकों के साथ अपने करियर की शुरूआत करने वाले दूसरे भारतीय बल्लेबाज सौरव गांगुली का जन्म आज ही के दिन यानी आठ जुलाई साल 1972 को कलकत्ता यानी आज के कोलकाता में हुआ था. बचपन में फुटबॉल के शौकीन सौरव ने अपने भाई स्नेहाशीष से प्रभावित होकर क्रिकेट खेलना शुरू किया था.

जब सौरव को मिला 'महाराज' का निकनेम

इंग्लैंड दौरा सौरव की पहली टेस्ट सीरीज थी. लेकिन उनके अंतर्राष्ट्रीय करियर की शुरूआत इससे चार साल पहले यानी वेस्टइंडीज में 1992 में हुई थी. इस दौरे में उन्हें एक ही वनडे  मुकाबला खेलने का मौका मिला मिला था, जिसमें वह मजह तीन रन ही बना सके थे. सौरव इस दौरे पर अपनी नाकामी की वजह से नहीं बल्कि अपने अड़ियल व्यवहार की वजह से चर्चित हुए थे. कहा जाता है कि उन्होंने बतौर एक्स्ट्रा खिलाड़ी मैदान पर ड्रिंक्स ले जाने से भी मना कर कर दिया था. सौरव ऐसे रवैये के चलते लोगों ने कटाक्ष के तौर पर उन्हें ‘महाराजा’ का निकनेम भी दे दिया था.

उस दौरे  के चार साल बाद साल 1996 में सौरव ने इंग्लैंड से एक ऐसे सफर की शुरूआत की जो एक दशक से भी ज्यादा वक्त तक चला. इस सफर के दौरान के सौरव ने क्रिकेट के मैदान पर कुछ ऐसी मिसालें कायम कीं कि वह क्रिकेट के मैदान और उसके बाहर भी ‘महाराज’ की बजाय  ‘दादा’  के नाम से मशहूर हो गए.और उनकी टीम यानी भारत विदेशी धरती पर भी जीतना सीख गया.

'ऑफ साइड का गॉड' कहा जाता था सौरव को

टीम इंडिया आज क्रिकेट के मैदान पर जिस आक्रामकता का प्रदर्शन करती है उसकी शुरूआत सौरव की कप्तानी के दौरान हई थी. आज दुनिया सौरव को भारत के सबसे कामयाब कप्तानो में से एक के तौर पर जानती है. लेकिन बतौर खिलाड़ी भी सौरव की उपलब्धियां कम नहीं हैं. साल 1997 में सौरव ने कनाडा के शहर टोरंटो में भारत पाकिस्तान के बीच खेले जाने वाले टूर्नामेंट में बेहतरीन आलराउंडर प्रदर्शन करके मैन ऑफ द सीरीज का खिताब अपने नाम किया था . साल 1999 के वर्ल्डकप में सौरव ने श्रीलंका के खिलाफ 183 रन की पारी खेलकर कपिल देव की 175 रन की पारी का रिकॉर्ड भी तोड़ा. उस वक्त यह किसी भी भारतीय बल्लेबाज का वनडे में सर्वश्रेष्ठ स्कोर था. ऑफ साइड में सौरव के शानदार स्ट्रोक प्ले की वजह से कई कमेंटेटर तो उन्हें ‘ ऑफ साइड का भगवान’ भी कहते थे.

नाजुक वक्त पर संभाली टीम इंडिया की कमान

बतौर बल्लेबाज टीम इंडिया का अहम हिस्सा बनने के बाद सौरव के करियर में सबसे अहम पड़ाव साल 2000 में आया. लगातार मिल रही नाकामी के बाद सचिन तेंदुलकर कप्तानी छोड़ चुके थे. मैच फिक्सिंग के आरोपों के बाद टीम इंडिया का मनोबल गिरा हुआ था और फैंस का भरोसा भी टूटने के कगार पर था. ऐसी नाजुक स्थिति में सौरव ने टीम इंडिया की कमान संभाली और उसे एक ऐसे मुकाम पर पहुंचाया जो देश ही नहीं बल्कि देश के बाहर भी लड़कर जीतना जानती थी. उस साल 2001 में उस वक्त के कंगारू कप्तान स्टीव वॉ को टॉस के लिए इंतजार कराना हो या फिर इंग्लैंड में ट्राइ सीरीज में भारत की जीत पर शर्ट उतार कर लहराने का वाकिया हो, सौरव ने दिखा दिया कि टीम इंडिया का यह कप्तान भारत के अब तक के कप्तानों से कितना ज्यादा आक्रामक और अलग है.

सौरव की कप्तानी में ही भारतीय टीम साल 1983 के बाद पहली बार साल 2003 में वर्ल्डकप के फाइनल में पहुंची थी. मैदान पर अपने खिलाड़ियों पर गुस्सा दिखाने और विरोधी खिलाड़ियों से झगड़ने के चलते वह हमेशा चर्चा में रहते थे. सौरव की कप्तानी में ही युवराज सिंह, वीरेंद्र सहवाग और हरभजन सिंह जैसे क्रिकेटरों को भारतीय क्रिकेट में स्थापित होने का मौका मिला.

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साल 2005 में खराब फॉर्म और कोच ग्रेप चैपल के साथ मतभेदों के चलते सौरव टीम इंडिया से बाहर भी हुए लेकिन जुझारू स्वभाव वाले सौरव ने एक बार फिर टीम इंडिया में वापसी की और साल 2008 में क्रिकेट को अलविदा कहा. अपने आखिरी टेस्ट में सौरव ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 85 रन की पारी खेली.

टीम इंडिया का यह 'दादा' यानी सौरव आज 45 साल के हो चुके है. क्रिकेट से संन्यास लेने का बाद भी सौरव इस खेल के साथ जुड़े हुए हैं. बतौर कमेंटेर सौरव की बेबाक राय आज भी बहुत मायने रखती है. और बतौर क्रिकेट प्रशासक सौरव बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं और बीसीसीआई के अहम फैसलों में भागीदारी निभा रहे हैं.