view all

कौन है, जिसने किया बीसीसीआई में तख्तापलट

'पांच गांव नहीं दिए तो कौरव साम्राज्य का विनाश हो गया'

Shailesh Chaturvedi

कहानी 2013 से शुरू होती है. छपरा के एक शख्स ने एक पीआईएल दायर किया था. नाम था आदित्य वर्मा. बिजनेसमैन हैं 53 साल के वर्मा, जिन्होंने रणजी में बिहार का प्रतिनिधित्व किया है. वह बिहार क्रिकेट संघ के प्रतिनिधि, बल्कि सचिव थे. बॉम्बे हाई कोर्ट के सामने उन्होंने अपने पीआईएल में बीसीसीआई के एक पैनल को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की थी. पैनल आईपीएल फिक्सिंग मामले की जांच के लिए बनाया गया था.

यहां से आदित्य वर्मा की कहानी शुरू होती है. तरह-तरह के सवालों के साथ. आखिर कौन हैं आदित्य वर्मा? अदालत में केस लड़ने के पैसे कहां से आते हैं? आज वर्मा सुप्रीम कोर्ट के बाहर विजयी मुस्कान लिए दिखाई दे रहे हैं. आसपास लोगों की भीड़ उमड़ी है. हर कोई उनकी बाइट लेने की कोशिश में है. उन्हें स्टूडियो बुलाना चाहता है. उनके शुरू हुए केस का नतीजा यह हुआ है कि बीसीसीआई के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर और सचिव अजय शिर्के को हटा दिया गया है.


ज्यादा समय पहले की बात नहीं है, जब वर्मा लोगों को फोन करते थे. हर मीडिया हाउस में अपने परिचितों को. बताते थे कि बीसीसीआई का करप्शन वो दूर कर देंगे. इंटरव्यू देने को तैयार रहते थे. टीवी स्टूडियो आने की इच्छा उनमें हमेशा से थी. शुरुआत में ज्यादा लोगों ने उन्हें तवज्जो नहीं दी. लेकिन आज वर्मा ने अपनी बातें साबित कर दी हैं.

उनके पीआईएल के बाद ही बीसीसीआई सुप्रीमो एन. श्रीनिवासन की बोर्ड से विदाई तय हुई थी. आईपीएल की दो टीमों के खिलाफ एक्शन हुआ. उस दौरान भी वो दिल्ली आते थे. हाई प्रोफाइल जगहों पर रुकते थे. उनके पास एक गाड़ी हुआ करती थी, जो कहा जाता है कि बीसीसीआई से ही जुड़े एक हाई प्रोफाइल सदस्य की थी. जिनका करीबी आदित्य वर्मा को माना जाता रहा, उनमें शरद पवार भी शामिल थे. राजनीतिज्ञ और बिहार क्रिकेट संघ के अध्यक्ष सुबोध कांत सहाय के साथ नजदीकी आदित्य वर्मा खुद ही स्वीकार करते रहे हैं.

वर्मा ने श्रीनिवासन पर फैसला आने के बाद एक इंटरव्यू में कहा था, ‘हर हियरिंग से पहले मैं शशांक मनोहर को सारे कागजात भेजता था. वह मुझे सलाह देते थे. अनुराग ठाकुर मेरे साथ थे. उन्होंने मुझे अपने घर बुलाया था. निरंजन शाह विदेश से फोन करके पूछते थे कि कोर्ट में क्या हुआ.’

लेकिन फैसला आने के बाद सब  बदल गया. वर्मा के शब्दों में, ‘श्रीनिवासन पर फैसला आने के बाद लोगों ने मुझे धोखा दिया, क्योंकि मैं मुश्किल सवाल पूछता था. मैं चाहता था कि लोढ़ा पैनल की सारी सिफारिशें मानी जाएं, जो बीसीसीआई के लोग नहीं चाहते थे.’

श्रीनिवासन की विदाई के वक्त किसी ने नहीं सोचा होगा कि वर्मा यहां नहीं रुकेंगे. दरअसल, बीसीसीआई के जिन लोगों ने वर्मा के कंधे पर रखकर बंदूक चलाई, वो फैसला आने के बाद वर्मा को संतुष्ट करने में नाकाम रहे. बिहार क्रिकेट एसोसिएशन को लेकर उनकी मांगें नहीं मानी गईं. बल्कि वर्मा के शब्दों में, उन्हें मतलब निकल जाने के बाद पहचानना बंद कर दिया गया.

दरअसल, बीसीसीआई ने 2007 में बिहार क्रिकेट संघ को मान्यता देने से इनकार कर दिया था. बल्कि श्रीनिवासन ने हमेशा विपक्षी खेमे का साथ दिया. उसके बाद झारखंड को मान्यता मिल गई, लेकिन बिहार को नहीं. इसी के साथ वर्मा की लड़ाई जारी रही.

वर्मा बार-बार एक बात कहते हैं, ‘भगवान कृष्ण ने पांडवों के लिए पांच गांव मांगे थे. दुर्योधन ने मना कर दिया. उसके नतीजे में कौरवों का विनाश हुआ.’ वर्मा के मुताबिक उनकी मांग बिहार क्रिकेट संघ को मान्यता देने तक सीमित थी. लेकिन जिस तरह का व्यवहार हुआ, उसकी वजह से बीसीसीआई का साम्राज्य बिखर गया.