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जन्मदिन विशेष: ऐसा खिलाड़ी, जिसके बल्ले से संगीत सुनाई देता था

स्विंग और स्पिन दोनों के ही बेहतरीन खिलाड़ी थे ज़हीर अब्बास

Rajendra Dhodapkar

भारतीय क्रिकेट प्रेमियों का पाकिस्तानी क्रिकेट के साथ रिश्ता बहुत मधुर नहीं रहा है. राजनैतिक दुश्मनी का कुछ असर इस रिश्ते पर हमेशा ही पड़ता रहा है. इन दोनों देशों के बीच खेल के रिश्ते नहीं थे. ऐसी ही स्थिति 1965 की लड़ाई के बाद भी थी. सन 1962 में पाकिस्तानी क्रिकेट टीम ने भारत का दौरा किया था. उसके बाद सन 1979 में भारत की टीम पाकिस्तान के दौरे पर गई. बीच के दौर में दोनों देशों के बीच खेल के रिश्ते नहीं थे.

रिश्तों की इस कड़वाहट का असर सबसे ज्यादा संतुलित इंसान पर भी कुछ न कुछ होता जरूर है. अपनी किताब ‘वन डे वंडर्स’ में सुनील गावस्कर ने लिखा है कि ऑस्ट्रेलिया में बेंसन एंड हेजेस कप के दौरान पाकिस्तान के खिलाफ मैच में गावस्कर की इनिंग्स के शुरू में ही एक गेंद उनके बल्ले का बाहरी किनारा हल्के से छूते हुए विकेटकीपर के दस्ताने में चली गई.


दुश्मन मुल्क को लेकर गावस्कर का कदम

गावस्कर लिखते हैं कि अगर और कोई मौका होता तो मैं अंपायर के फैसले का इंतजार किए बगैर वापस चला जाता. लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ मैच था. इसलिए मैं विकेट पर खड़ा रहा. अंपायर गेंद का बल्ले से छूना नहीं देख पाए और उन्होंने गावस्कर को नॉटआउट करार दिया.

फिर भी पाकिस्तान में कुछ ऐसे खिलाड़ी हुए, जिनसे दुश्मनी का यह रिश्ता निभाना जरा मुश्किल लगता है. जैसे अगर आप ज़हीर अब्बास को दुश्मनी की नजर से देखें तो यह आपका नुकसान है, क्योंकि इससे आप ही उनके खूबसूरत कवर ड्राइव का आनंद लेने से वंचित रह जाएंगे. जिन लोगों के लिए खेल सिर्फ हार-जीत की जंग है, उनकी बात अलग है. जो भी खेल का सच्चा प्रेमी है, वह दुश्मनी के चक्कर में ज़हीर अब्बास के खेल के आनंद को नहीं छोड़ना चाहेगा. जो मेहदी हसन के गाने का सिर्फ इसलिए विरोधी हो जाए कि वे पाकिस्तानी हैं, उसके कानों का होना या न होना एक ही है.

बड़ी समानताएं हैं ज़हीर अब्बास और मेहदी हसन में

ज़हीर अब्बास की बल्लेबाजी और मेहदी हसन की गायकी में बड़ी समानताएं हैं. दोनों की कला में एक रेशमी नफासत है. कहीं सख्ती का कण भी नहीं हैं. मेहदी हसन के गाने की ही तरह ज़हीर अब्बास की बल्लेबाजी में भी एक ठहराव था. उनका बल्ला जब गेंद को छूता था तो उसके पहले जैसे उन्हें सोचने के लिए एक क्षण अतिरिक्त मिलता था. यह किसी भी बड़े बल्लेबाज़ की निशानी है कि उसे कभी हड़बड़ी नहीं होती. फिर भी ज़हीर अब्बास कि कलाइयों में वह जादू था कि बिल्कुल आखिर में वे गेंद की दिशा को अप्रत्याशित कोण में मोड़ सकते थे.

यह कौशल उनके हर शॉट में नजर आता था और वे विकेट के चारों ओर शॉट खेल सकते थे. लेकिन मिड ऑन से लेकर पॉइंट तक के क्षेत्र में तो उनका राज होता था. वहां दो फील्डर्स के बीच छोटे से छोटे कोण से वे गेंद को सीमारेखा के पार पहुंचा सकते थे. अब भी यूट्यूब पर मौजूद उनके वीडियो देखकर इस बात प्रमाण मिल सकता है.

1971 में करियर का आगाज किया

ज़हीर अब्बास पहली बार चर्चा में तब आए जब सन 1971 में उन्होंने अपने दूसरे और इंग्लैंड की धरती पर पहले टेस्ट मैच में दोहरा शतक जमाया. भारत तब पाकिस्तान के साथ खेलता नहीं था, इसलिए पाकिस्तान बड़ी दूर का देश लगता था. ज़हीर अब्बास की तब अंग्रेजी मीडिया में ऐसी चर्चा थी कि वे अंग्रेज क्रिकेटर ज्यादा लगते थे.

वैसे भी तमाम बड़े पाकिस्तानी खिलाड़ी माजिद खान, इंतख़ाब आलम नियमित रूप से इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट खेलते ही थे. इस सीरीज के बाद ज़हीर भी ग्लूस्टरशायर से खेलने लगे और करियर के अंत तक खेलते रहे. वे वहां बहुत सफल हुए इसका प्रमाण यह है कि वे उन चंद बल्लेबाजों में हैं जिन्होंने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में सौ से ज्यादा शतक जमाए हैं.

जैसे कि हम कह चुके हैं कि ज़हीर खिलाड़ी कम, कलाकार ज्यादा थे. वे लगते भी खिलाड़ी नहीं, कलाकार या लेखक थे. लंबे, दुबले, चश्मा लगाए. उनके साथी खिलाड़ी जो बताते हैं उससे यह लगता है कि खिलाड़ियों वाले गुण या दिलचस्पियां भी उनमें कम थी. फिटनेस, चुस्ती, तेजी जैसी चीजें उनके स्वभाव के अनुकूल नहीं थी.

तेजी से वे एक ही काम कर सकते थे, रन बनाना. उनकी दिलचस्पी भी सिर्फ एक थी, बल्लेबाजी. वे बस विकेट पर बने रहना और ढेरों रन बनाना और रिकॉर्ड बनाना चाहते थे. जाहिर है, इससे उनकी टीम को भी फायदा हो जाता था. वे नर्म मिज़ाज और अपने फन में डूबे हुए इंसान थे. प्रथम श्रेणी क्रिकेट में उन्होंने आठ बार मैच की दोनों इनिंग्स में शतक बनाए हैं. उनमें से चार बार एक इनिंग्स में शतक और दूसरी में दोहरा शतक है.

करीब-करीब हर देश के खिलाफ अच्छा रहा रिकॉर्ड

इंग्लैंड उनका दूसरा घर था. वहां की भी विकेट्स उन्हें घरेलू विकेट्स की ही तरह रास आती थीं. पाकिस्तान में और इंग्लैंड में उनके बल्लेबाजी औसत में बहुत कम फर्क है. ऑस्ट्रेलिया में भी उनका प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है. लेकिन न जाने क्यों न्यूजीलैंड में उनका प्रदर्शन कमज़ोर रहा है.

उस दौर की वेस्टइंडीज के सामने रन बनाना तो किसी भी बल्लेबाज के लिए मुश्किल था. भारत के पाकिस्तान दौरों पर उन्होंने टनों रन बनाए, बल्कि टेस्ट क्रिकेट में उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन भारत के खिलाफ ही है. लेकिन भारत के एकमात्र दौरे पर उनका प्रदर्शन उनकी प्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं रहा. वे एकदिवसीय क्रिकेट मे भी कामयाब रहे. स्विंग और स्पिन दोनों के वे बेहतरीन खिलाड़ी थे.

वे एकाध बार पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के मैनेजर भी रहे, जो दुनिया के सबसे मुश्किल कामों में से गिना जाना चाहिए. जाहिर है, वे कामयाब नहीं हुए. वे आईसीसी के अध्यक्ष भी हुए, जो कम से कम कुछ साल पहले तक अपेक्षाकृत आसान काम था और उनके मिज़ाज के अनुकूल था. लोग उनके कवर ड्राइव की तुलना महान वॉली हैमंड के कवर ड्राइव से करते हैं. मैंने हैमंड को तो नहीं देखा, लेकिन खुशकिस्मती है कि ज़हीर अब्बास को हमने देखा है.