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संडे स्पेशल: अपने अनुभवी खिलाड़ियों का सम्‍मान करें महिला क्रिकेट के लोग, तभी दूसरों से रखें उम्‍मीद

जो सम्मान सचिन तेंदुलकर को मिला उसकी हकदार मिताली राज भी हैं.

Rajendra Dhodapkar

मिताली राज और भारतीय महिला टीम के प्रबंधन के बीच विवाद में दो पक्ष हैं और ज्यादा संभावना यही है कि दोनों पक्ष कुछ कुछ गलत हों और कुछ कुछ गलत. यह हो सकता है कि कोई पक्ष ज्यादा गलत और कम सही हो और कोई पक्ष ज्यादा सही और कम गलत. लेकिन एक बाद निर्विवाद है कि कप्तान हरमनप्रीत कौर नेतृत्व की एक बड़ी कसौटी पर तो नाकाम साबित हुई. वह कसौटी है, अपने से सीनियर खिलाड़ियों को साथ रखने की क्षमता.


ऐसा न खेल में होता है न जीवन में कि सबसे वरिष्ठ व्यक्ति को ही नेतृत्व मिले, न ही ऐसा होता है कि नेतृत्व की सबसे ज्यादा क्षमता रखने वाले व्यक्ति को ही यह मौका मिले. अक्सर ही नेतृत्व करने वाले व्यक्ति को ऐसी टीम मिलती है जिसमें उससे वरिष्ठ कई लोग हों. वह नेता अपने वरिष्ठ सहयोगियों से कैसे व्यवहार करता है, यह उसके नेतृत्व की बड़ी कसौटी होती है. जो व्यक्ति अपने से सीनियर साथियों का सम्मान करता है और उनका सम्मान अर्जित करता है, वह अमूमन यह दिखाता है कि उसमें आत्मविश्वास की कमी नहीं है. कई नेता ऐसे होते हैं जो अपने से वरिष्ठ किसी सदस्य को टीम में बर्दाश्त नहीं कर पाते और उनकी पहली कोशिश यह होती है कि टीम में जो भी वरिष्ठ सदस्य हों उनकी विदाई हो जाए, भले ही वह विदाई कितनी ही असम्मानजनक हो. खेलों में और जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी ऐसे उदाहरण कई देखने में आते हैं.

क्रिकेट में नवाब पटौदी और ग्रैम स्मिथ जैसे कप्तान हुए हैं जो बहुत कम उम्र और अनुभव के साथ कप्तान बन गए. पटौदी जब कप्तान बने तो वे इक्कीस साल के थे और अपनी पहली ही टेस्ट सीरीज खेल रहे थे. स्मिथ जब साउथ अफ्रीका के कप्तान बने तो वे बाईस साल के थे. इन दोनों की टीम में कई सारे खिलाडी उनसे वरिष्ठ थे, लेकिन दोनों ने उनके साथ बहुत अच्छा रिश्ता निभाया और दोनों अपने अपने देश के सबसे कामयाब कप्तान साबित हुए.

कोहली खरे उतरे तो धोनी रह गए पीछे

एक ऐसा ताज़ा उदाहरण विराट कोहली हैं. कोहली ने वरिष्ठ खिलाडी और पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को जैसा सम्मान दिया और उनकी क्षमताओं और अनुभव का जैसे इस्तेमाल किया. वह कम से कम इस कसौटी पर विराट कोहली के नेतृत्व को कामयाब साबित करता है. इसके बरक्स धोनी कई अन्य मायनों में कामयाब होते हुए भी इस कसौटी पर खरे नहीं उतरे. राहुल द्रविड़ और और वीवीएस लक्ष्मण जैसे वरिष्ठ खिलाड़ियों के प्रति धोनी हमेशा असहज रहे. इन बड़े खिलाड़ियों को जिन परिस्थितियों में रिटायर होना पड़ा, वह उनके योगदान और उपलब्धियों के अनुकूल नहीं था. तेंदुलकर , तेंदुलकर थे इसलिए ही उनका रिटायरमेंट उतना बुरा नहीं रहा. द्रविड़ या लक्ष्मण जैसे खिलाड़ियों के बारे में हम यह भी नहीं कह सकते कि उनका व्यवहार खराब रहा होगा या उन्होंने कोई अनुशासनहीनता की होगी. कई अन्य वरिष्ठ खिलाड़ियों के साथ भी धोनी की असहजता को देखा जा सकता था.

बड़े खिलाड़ियों के योगदान का सम्‍मान करना चाहिए

ऐसा नहीं है कि वरिष्ठ खिलाड़ी भी हमेशा अपने से जूनियर कप्तान के साथ सहयोग करते हैं. कई वरिष्ठ खिलाड़ियों को अपने स्टारडम का गुमान भी होता है या उन्हें अपने से जूनियर व्यक्ति के नेतृत्व में दिक्‍कत हो सकती है. लेकिन नेतृत्व का अर्थ यह भी तो है कि तरह तरह के लोगों को साथ लेकर टीम की तरह कामयाब बनाया जाए. दूसरे बड़े खिलाड़ियों की उपलब्धियों और उनके योगदान का सम्मान किया जाना चाहिए. कप्तान को सिर्फ वरिष्ठ खिलाड़ियों से दिक्‍कत हो ऐसा नहीं है. बराबर के या जूनियर खिलाड़ियों से निभाना भी कभी कभी मुश्किल हो सकता है. आखिरकार ग्यारह लोगों की टीम में ग्यारह अलग अलग किस्म के इंसान होंगे ही, किसी भी कप्तान को रोबोट्स की टीम तो मिलने से रही.

ब्रैडमैन की टीम के अनिवार्य सदस्‍य थे मिलर

सर डॉन ब्रैडमैन की कभी कीथ मिलर से नहीं पटी. ब्रैडमैन इसे ज़ाहिर तौर पर न दिखाते हों तो भी मिलर जिस तरह के इंसान थे. वे ब्रैडमैन के प्रति अपनी नापसंदगी दर्शा देते थे. ब्रैडमैन जब चयनकर्ता बने तो उन्होने इसी वजह से मिलर को कप्तान नहीं बनने दिया , लेकिन मिलर कप्तान ब्रैडमैन की टीम के अनिवार्य सदस्य थे. ब्रैडमैन की विश्वविजेता टीम की मिलर के बिना कल्पना भी करना मुश्किल है. महान वेस्टइंडीज़ टीम में कप्तान सोबर्स और रोहन कन्हाई के बीच अहंकार की लड़ाई चलती रहती थी, लेकिन दोनों खूब साथ खेले. शेन वार्न और कप्तान स्टीव वॉ के बीच का झगड़ा काफी हद तक ब्रैडमैन- मिलर के झगड़े जैसा ही था. गिलक्रिस्ट और वार्न की भी नहीं पटी, लेकिन ये सभी खिलाड़ी साथ साथ खेले और एक दूसरे की कामयाबी के भी हिस्सेदार रहे.

मिताली से बेहतर विकल्‍प नहीं

मिताली राज के खेल पर कितनी भी बहस कर ली जाए, लेकिन यह साफ़ है कि उनका उनसे बेहतर विकल्प टीम में नहीं है, इसलिए उन्हें टीम से बाहर रखना सिर्फ अहंकार को टीम के हितों से ज्यादा बड़ा मानना है. दूसरे , जो सम्मान सचिन तेंदुलकर को मिला उसकी हकदार मिताली राज भी हैं. अगर महिला क्रिकेट के लोग ही अपने बड़े खिलाड़ियों का सम्मान नहीं करेंगे तो फिर दूसरों से वे क्या उम्मीद रख सकते हैं ?