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संडे स्पेशल: रणजी ट्रॉफी का होना भारतीय क्रिकेट के लिए क्यों जरूरी है...

घरेलू क्रिकेट में ही हमें वे खिलाड़ी देखने को मिलते हैं जो खेल के आनंद के लिए खेलते हैं

Rajendra Dhodapkar

यह वक्त हर साल मेरे लिए खुशी का वक्त होता है क्योंकि रणजी ट्रॉफी का दौर शुरु हो जाता है. इस साल भी रणजी ट्रॉफी के पहले मैच अभी अभी खत्म हुए हैं और मैचों का सिलसिला मार्च तक चलेगा. टीवी पर एक साथ चल रहे सारे मैचों में से किसी एक का लाइव प्रसारण भी होता है जिसे में लगभग नियमित रूप से देखता हूं. ऐसा भी कई बार हुआ है कि अगर कोई रणजी ट्रॉफी मैच और अंतरराष्ट्रीय मैच साथ साथ चल रहे हों अंतरराष्ट्रीय मैच की जगह मैंने रणजी ट्रॉफी मैच को तरजीह दी है या मैं दोनों मैच बारी बारी से देखता रहता हूं. बाक़ी मैचों की अखबारों और वेबसाइट्स के जरिए खबरें भी मैं ध्यान से पढ़ता हूँ.

क्या अब रणजी ट्रॉफी के दर्शक खो गए हैं!


जब से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट काफी ज्यादा होने लगा है तब से घरेलू क्रिकेट में लोगों की दिलचस्पी बहुत कम हो गई है. बल्कि यह भी हुआ है कि पिछले दो तीन दशकों में जो नए क्रिकेटप्रेमी बने हैं उनके लिए क्रिकेट का मतलब ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट है. दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों को छोड़ भी दें तो छोटे छोटे शहरों में भी घरेलू क्रिकेट देखने के लिए मैदान में दर्शक नहीं जुटते. इससे यह हुआ है कि जो लोग किसी तरह से घरेलू क्रिकेट से जुड़े भी हैं वे भी यही मान लेते हैं कि घरेलू क्रिकेट से जुड़ना एक अनिवार्य कर्तव्य भर है, वरना उसका कोई मतलब नहीं है.

जो रिपोर्टर अखबारों के लिए घरेलू क्रिकेट कवर करते हैं वे भी यह मानते हैं कि उनकी ख़बरों को कोई नहीं पढ़ेगा. वे अक्सर यह सोच कर रिपोर्टिंग करते हैं कि इससे खिलाड़ियों और अधिकारियों से संपर्क बनेगा जो किसी अंतरराष्ट्रीय मैच के सिलसिले में काम आएगा या कोई खिलाडी बडा स्टार बन गया तब यह संपर्क काम आएगा.

एक बार मैंने अख़बार में रणजी ट्रॉफी पर ख़बरें करने वाले अपने एक मित्र रिपोर्टर से उनकी ख़बर पर बात की तो वे चकित हो कर बोले - मुझे पता नहीं था कि कोई ये खबरें पढ़ता भी है.

खो गए रणजी के कई स्टार

मैं अक्सर उन खिलाड़ियों के बारे में सोचता हूँ जो घरेलू क्रिकेट खेलते हैं. ज़ाहिर है जब वे प्रथम श्रेणी क्रिकेट में आए होंगे तो उनकी इच्छा भारतीय टीम में शामिल होने की होगी.  कुछ खिलाडी ऐसे भी हैं जिनसे दूसरों को भी उम्मीद होगी कि ये तो अंतरराष्ट्रीय स्टार बनेंगे, जरूरत बस कुछ अच्छे घरेलू प्रदर्शनों की है. ऐसे अनेक खिलाडी हैं जिनकी अंडर 19 स्तर पर बड़ी चर्चा हुई लेकिन सीनियर क्रिकेट में आकर वे उस स्तर का प्रदर्शन नहीं कर पाए. रितिंदर सोढ़ी से लेकर विजय जोल और उन्मुक्त चंद के नाम की कितनी चर्चा थी जब वे अंडर 19 स्तर पर खेल रहे थे.

कुछ ऐसे खिलाड़ियों को भी मैं जानता हूँ जिन्हें जब यह लगा कि वे ज्यादा आगे नहीं जा सकते तो उन्होंने क्रिकेट छोड़ दिया और किसी और पेशे में लग गए. लेकिन बहुत बडी तादाद ऐसे खिलाड़ियों की है जो लंबे वक्त तक घरेलू क्रिकेट खेलते रहते हैं जबकि यह उन्हे मालूम होता है कि वे कभी भारत की टीम में नहीं खेल सकते.

जबसे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का कैलेंडर बहुत व्यस्त हुआ है तब से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट और घरेलू क्रिकेट के बीच फर्क और ज्यादा बढ़ गया है क्योंकि जो खिलाडी भारतीय टीम में आ जाते हैं वे घरेलू क्रिकेट नहीं खेल पाते. पहले ऐसा नहीं था, पहले अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट इतना कम था कि लगभग सभी अंतरराष्ट्रीय खिलाडी भी नियमित घरेलू क्रिकेट खेलते हैं , अब तो वे किसी मेहमान कलाकार की तरह कभी कभार किसी मैच में हाजिरी लगाते हैं. पुराने खिलाड़ियों के रिकॉर्ड देखें तो उनमें प्रथम श्रेणी मैचों की तादाद टेस्ट मैचों के मुकाबले बहुत ज्यादा होती थी.

अब के सफल टेस्ट खिलाड़ियों के रिकॉर्ड में अंतरराष्ट्रीय मैचों की तादाद प्रथम श्रेणी मैचों से बहुत ज्यादा होती है. ऐसे खिलाडी अक्सर टेस्ट टीम में चयन के पहले प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलते हैं और अगर देश की टीम में नियमित जगह बनाने मे वे कामयाब होते हैं तो फिर इक्का दुक्का घरेलू मैचों में ही दिख पाते हैं.

इसलिए हमें उन खिलाड़ियों का सम्मान करना चाहिए जो गंभीरता से घरेलू क्रिकेट खेलते हैं जबकि यह उनके लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट तक जाने का जरिया नहीं होता. यह ठीक है कि आजकल प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलने वालों को भी ठीक ठाक पैसा मिल जाता है लेकिन देश की टीम में आ जाने वाले खिलाड़ियों के मुकाबले वह काफी कम होता है.

हम जैसे क्रिकेटप्रेमियों के लिए घरेलू क्रिकेट इसलिए नियमित है कि उसके ज़रिये हमें ग्लैमर और पैसे की चकाचौंध के बगैर सादगी भरा और क्रिकेट देखने को मिलता है. बिना विज्ञापनों का क्रिकेट प्रसारण देखने का जो मज़ा है वह रणजी ट्रॉफी मैचों में ही मिल सकता है.  इसमें ही हमें अमोल मुजुमदार, सीतांशु कोटक जैसे खिलाडी देखने को मिलते हैं जो अपने लंबे करियर में प्रथम श्रेणी क्रिकेट ही खेलते रहे हमारे लिए ये लोग या सरकार तलवार , हरी गिडवानी , पद्माकर शिवलकर , कैलाश गट्टानी और अब्दुल इस्माइल जैसे लोग टेस्ट सितारों से कम नहीं रहे हैं.

हर देश के घरेलू क्रिकेट का अपना एक चरित्र है चाहे वह भारत की रणजी ट्रॉफी हो , इंग्लैंड की काउंटी चैंपियनशिप हो या आस्ट्रेलिया की शेफ़ील्ड शील्ड हो , बल्कि किसी देश के खेल का असला चरित्र तो वहां के घरेलू क्रिकेट में ही दिखता है. घरेलू क्रिकेट में ही हमें वे खिलाड़ी देखने को मिलते हैं जो खेल के आनंद के लिए खेलते हैं.घरेलू क्रिकेट को अक्सर लोग अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के लिए कच्चा माल सप्लाई करने का तंत्र भर मानते हैं. लेकिन असली क्रिकेटप्रेमी वे ही हैं जो जानते हैं कि यहीं सौ प्रतिशत शुद्ध क्रिकेट मिलने की ज्यादा संभावना है, अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में तो अक्सर चमकदार पैकिंग में मिलावटी माल भी मिल जाता है.