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संडे स्पेशल: दिनों दिन कठिन होती जा रही है तेज गेंदबाजी, क्योंकि उन्हें फायदा पहुंचाने वाली पिचें गायब हो रही हैं

जैसे-जैसे बल्लेबाज गेंद की मूवमेंट खेलने के मामले में अनाड़ी होते जा रहे हैं वैसे-वैसे एकदम पटरा पिचें बनाने का चलन बढ़ता जा रहा है

Rajendra Dhodapkar

क्रिकेट में सबसे मुश्किल और थकाने वाला काम तेज गेंदबाजी है. दिन भर के खेल में जितनी मेहनत तेज गेंदबाज करते हैं उतनी कोई नहीं करता. भारत जैसे देश में पैंतीस-चालीस डिग्री सेल्सियस तापमान में लंबे रनअप के साथ तेज गेंदबाजी करना कितना थकाने वाला काम हो सकता है इसकी हम जैसे लोग कल्पना ही कर सकते हैं, जिन्होंने यह काम नहीं किया. यह काम दिनों दिन कठिन इसलिए भी होता जा रहा है, क्योंकि दुनिया भर में तेज गेंदबाजों को फायदा पहुंचाने वाली पिचें गायब हो रही हैं. साउथ अफ्रीका में तेज विकेट्स मिल जाती हैं वरना न वेस्टइंडीज, न ऑस्ट्रेलिया की पिचों में वह तेजी बची है. न इंग्लैंड की पिचों में वह नमी, जिससे गेंद स्विंग होती है.

ताबड़तोड़ रन बनते देखना चाहते हैं दर्शक और प्रायोजक


जैसे-जैसे बल्लेबाज गेंद की मूवमेंट खेलने के मामले में अनाड़ी होते जा रहे हैं वैसे-वैसे एकदम पटरा पिचें बनाने का चलन बढ़ता जा रहा है. सीमित ओवरों के क्रिकेट में तो गेंदबाज को कुछ प्रोत्साहित करने वाली विकेट बनाने पर तो पूरी तरह पाबंदी है, क्योंकि इन मैचों में तो यह माना जाता है कि दर्शक और प्रायोजक ताबड़तोड़ रन बनते देखना चाहते हैं. टेस्ट क्रिकेट में भी जोर सुरक्षित और बेजान विकेट बनाने पर ही होता है.

घरेलू गेंदबाजों को प्रोत्साहित करने वाली विकेट बनाना भी अक्सर गले पड़ जाता है, क्योंकि उसका फायदा बाहरी गेंदबाजों को भी मिलता है और कभी-कभी वे ज्यादा फायदा उठा लेते हैं. ऐसा कई बार हुआ है विदेशी स्पिनरों ने भारतीय मैदानों में भारतीय टीम को ढेर कर दिया. ऐश्ले मैलेट से लेकर ग्रीम स्वान जैसे स्पिनरों के पास भारतीय दौरों की बड़ी सुखद यादें होंगी. वैसे ही भारतीय तेज गेंदबाजों ने पिछले साउथ दक्षिण अफ्रीका दौरे पर कम तबाही नहीं मचाई थी.

हेलमेट ने कम किया तेज गेंदबाजों का खौफ

तेज गेंदबाजों के हथियारों को कुंद करने का एक बड़ा काम हेलमेट और तमाम कवच कुंडलों ने किया है. तेज गेंदबाजी का एक बड़ा असर तो उस डर की वजह से होता है जो बल्लेबाज के मन में पैदा होता है. इन सुरक्षा साधनों ने यह डर खत्म नहीं तो बहुत कम कर दिया है. हेलमेट के आने के बाद क्रिकेट वह नहीं रहा जो पहले था. सीमित ओवरों के क्रिकेट, खास कर टी20 ने और मुसीबत कर दी है, क्योंकि इनमें निचले क्रम के बल्लेबाज भी तेज गेंदबाज को सामने उठाकर मारने की हिमाकत करने लगे हैं. पहले यह साहस सिर्फ कोई कन्हाई या ग्रीनिज ही कर सकते थे. टी-ट्वेंटी में तो मैदान भी छोटे होते हैं, इससे तेज गेंद पर लगा बाहरी किनारा भी छह रन दे देता है. इसलिए तेज गेंदबाज कभी-कभी अपने कोटे की चौबीस गेंदों में से आधी से ज्यादा धीमी गेंदे डालता है.

शरीर की मांसपेशियों के लिए अस्वाभाविक है गेंदबाजी का एक्शन

हम खेलों को फिटनेस से जोड़ते हैं जो सही भी है. खिलाड़ी सुपरफिट लोग होते हैं, लेकिन खेलों खास तौर पर पेशेवर स्तर के खेलों से शरीर पर बहुत ज्यादा जोर पड़ता है. अगर सारे खेलों में शरीर के लिए सबसे ज्यादा अस्वाभाविक गतिविधि खोजी जाए तो वह तेज गेंदबाजी है. गेंदबाजी का ही एक्शन शरीर की मांसपेशियों के लिए अस्वाभाविक है, लेकिन तेज गेंदबाजी में तो यह एक्शन इतनी ताकत के साथ होता है कि वह खतरनाक हो जाता है.

गेंद डालने के लिए जैसे हाथ को घुमाकर गेंद को फेंका जाता है वह शरीर रचना के लिहाज से बहुत अस्वाभाविक है. ऐसा एक्शन ईजाद करने के पीछे नजरिया ही यह था कि गेंद डालना आसान न रह जाए और ज्यादा तेज या घुमावदार गेंद डालना मुश्किल हो जाए. इसीलिए ‘चक’ करने वाले या संदेहास्पद एक्शन वाले गेंदबाज ज्यादा तेज गेंद डाल पाते हैं या ज्यादा स्पिन कर पाते हैं, क्योंकि वह ज्यादा स्वाभाविक एक्शन है. गेंदबाजी करना इसीलिए कंधों की मांसपेशियों के लिए नुकसानदेह हो सकता है.

रीढ़ की हड्डी का फ्रैक्चर होने की आशंका रहती है

इससे भी ज्यादा नुकसान कमर और पीठ को होने की आशंका होती है. आप एक सामान्य साइड न एक्शन के बारे में सोचिए. गेंद डालने के आखिरी कदम पर गेंदबाज के शरीर का रुख अपने बगल के स्टंप्स की ओर होता है. गेंद डालने की प्रक्रिया में उसकी रीढ़ की हड्डी एक सौ अस्सी डिग्री घूम जाती है और उसके शरीर का रुख पिच के बाहर की ओर हो जाता है. इन्सान की रीढ़ की हड्डी ऐसे एक सौ अस्सी डिग्री घुमाव के लिए नहीं बनी है. तेज गेंदबाजों में यह घुमाव बहुत तेज़ी से होता है, इसलिए अक्सर तेज गेंदबाजों को रीढ़ की हड्डी का फ्रैक्चर होने की आशंका रहती है.

यह घुमाव शास्त्रीय साइड ऑन एक्शन वाले गेंदबाजों में ज्यादा होता है, इसलिए उन्हें यह आशंका ज्यादा होती है जैसे डेनिस लिली लंबे वक्त तक रीढ़ के फ्रैक्चर की वजह से खेल के बाहर रहे. मैल्कम मार्शल जैसे गेंदबाज जिनका एक्शन अपेक्षाकृत साइड ऑन होता है उनकी रीढ़ की हड्डी पर उतना जोर नहीं पड़ता. इसलिए उन्हें पीठ और कमर की चोट लगने का खतरा कम होता है. वैसे ही तेज गेंदबाज गेंद डालने के लिए जब उछलकर लैंड करते हैं तब उनके पैर पर असाधारण दबाव आता है जो चोट और फ्रैक्चर की वजह बन सकता है.इन दिनों चल रहे आईपीएल में जब आप चालीस डिग्री तापमान में गेंद डालते तेज गेंदबाज पर किसी सामान्य बल्लेबाज को छक्का लगाते देखें तो इन बातों पर जरूर सोचिए.