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संडे स्पेशल: सीमित ओवर के खेल में वेस्टइंडीज के बेहतर प्रदर्शन के लिए जरूरी है टेस्ट क्रिकेट

वेस्टइंडीज की टीम टेस्ट क्रिकेट के मुकाबले सीमित ओवरों के खेल में बेहतर है लेकिन उसके खेल में निरंतरता नहीं है

Rajendra Dhodapkar

वेस्टइंडीज के साथ एकदिवसीय सीरीज भी खत्म हो गई. टेस्ट मैचों में तो जैसे कि तय था वेस्टइंडीज की टीम बुरी तरह हारी. वनडे सीरीज में शुरू में उन्होंने जूझने का माद्दा दिखाया और तीन मैच पूरे होने के बाद सीरीज एक एक से बराबर थी. लेकिन चौथे और पांचवे वनडे मैच में वे बुरी तरह फिसल गए. वेस्टइंडीज की टीम कुछ अजीब हालात से गुजर रही है. टेस्ट रैंकिंग में वह आठवें नंबर पर है और वनडे रैंकिंग में वह नौवें नंबर पर है. इन दोनों रैंकिंग में बहुत फर्क नहीं है हालांकि यह दिखता है कि वनडे मैचों में वह बेहतर टीम है. रैंकिंग कम होने की वजह शायद यह है कि कई टीमें हैं जो टेस्ट की बहुत अच्छी टीमें नहीं हैं लेकिन वनडे क्रिकेट में बेहतर हैं. वेस्टइंडीज की रैंकिंग टी20 में भी जरा ही बेहतर यानी सात है लेकिन वह मौजूदा विश्व चैंपियन भी है.

टी20 में वेस्टइंडीज की यह स्थिति टी 20 क्रिकेट की अनिश्चितता को भी दिखाती है और रैंकिंग व्यवस्था की गड़बड़ी को भी रेखाकिंत करती है. हालांकि यह कह सकते हैं कि वेस्टइंडीज की टीम टी20 में बहुत अच्छी टीम है और उसके कई खिलाडी दुनिया भर में टी20 मुकाबलों के सितारे हैं. शायद यही उसके मुसीबत की जड़ भी है क्योंकि उन खिलाड़ियों को टी20 का ग्लैमर और पैसा इतना लुभाता है कि गंभीर क्रिकेट पीछे छूट जाता है.


गिरता जा रहा है टीम का स्तर

एक जमाने में वनडे क्रिकेट पर राज करने वाली वेस्टइंडीज टीम की यह हालत आ गई है कि उसे इस बार विश्व कप में खेलने का हक हासिल करने के लिए के लिए क्वालिफायर मुकाबलों में खेलना पड़ा और उनमें से भी वह मुश्किल से ही बाहर निकल पाई. फिर भी लोग यह उम्मीद कर रहे हैं कि वेस्टइंडीज़ की टीम अगले साल विश्व कप में अच्छा प्रदर्शन कर पाए क्योंकि उसके दिग्गज खिलाड़ी, क्रिस गेल , लुइस, ड्वायन और डैरेन ब्रावो, सुनील नारायण जैसे खिलाड़ी टीम में होंगे साथ में शाई होप, हेटमायर और केमार रोच जैसे खिलाड़ियों का भी साथ होगा. लेकिन विश्व कप के पहले इन खिलाड़ियों को एक टीम की तरह खेलने का कितना मौका मिलेगा और कोई नया विवाद नहीं खड़ा होगा, यह भी देखना होगा. ज्यादातर सितारा खिलाड़ियों की चमक आईपीएल जैसे मुक़ाबलों में ही देखने में आई है, गंभीर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट और वह भी विश्व कप जैसे मुकाबले में वे कितने चमकते हैं यह देखना होगा.

वैसे भी वेस्टइंडीज के बड़े सितारों का करियर अब बहुत लंबा नहीं खिंचने वाला है इसलिए यह विश्व कप भले ही निकल जाए लेकिन उम्मीद के लिए हमें नए प्रतिभावान खिलाड़ियों को देखना चाहिए. भारत में खास कर वनडे मैचों में उनके कई खिलाड़ियों की चमक काफी आकर्षक थी, और केमार रोच, गैब्रियल, कप्तान जैसन होल्डर जैसे खिलाड़ियों ने भी मजबूती दिखाई. लेकिन इन नए खिलाड़ियों के खेल में जो ठहराव और स्थिरता की कमी है, वह ठीक नहीं है. तीन वनडे मैचों में बढ़िया प्रदर्शन के बाद वे अचानक ढह गए. कई मायनों में वेस्टइंडीज का यह प्रदर्शन बांग्लादेश के शुरुआती दिनों की याद दिलाता है जब वह टीम टेस्ट में फिसड्डी थी और वनडे क्रिकेट में अपेक्षाकृत मजबूत थी. लेकिन यह कमी उसमें भी थी कि अच्छा खेलते खेलते वह ढह जाती थी. अब धीरे धीरे बांग्लादेश इस कमी से उबरती नजर आ रही है.

वेस्टइंडीज की टीम में सीमित ओवरों के खेल में नहीं है निरंतरता 

वेस्टइंडीज की टीम टेस्ट क्रिकेट के मुकाबले सीमित ओवरों के खेल में बेहतर है लेकिन उसके खेल में निरंतरता नहीं है, वह कभी भी बहुत अच्छा और कभी भी बहुत बुरा खेल सकती है, जो कि उसकी रैंकिंग से समझ में आता है. इससे एक निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जो टीमें लंबे दौर के क्रिकेट में अच्छा नहीं खेलतीं वे सीमित ओवरों के क्रिकेट में भी निरंतर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाती. तकनीक, धीरज और परिस्थितियों के हिसाब से अपने खेल को बदलने का जो प्रशिक्षण लंबे दौर के क्रिकेट में मिलता है वह सीमित ओवरों के क्रिकेट में भी जरूरी होता है. जो टीमें टेस्ट रैंकिंग में बेहतर हैं वे ही सीमित ओवरों के क्रिकेट की रैंकिंग में भी बेहतर हैं. यही बात खिलाड़ियों के बारे में भी सच है कि जो खिलाडी टेस्ट क्रिकेट में सबसे ऊपर हैं वे ही सीमित ओवरों के खेल में भी अव्वल हैं.

एक दौर में यह सोचा गया था कि टेस्ट और सीमित ओवरों के अलग अलग विशेषज्ञ खिलाड़ी होने चाहिए लेकिन यह बात कुछ हद तक ही सही है. कुछ खिलाड़ी खेल के किसी विशेष प्रारूप के लिए ज्यादा बेहतर हो सकते हैं, लेकिन ऐसा शायद ही हो कि कोई खिलाड़ी एक प्रारूप में शिखर पर हो और दूसरे में पाताल में. वेस्टइंडीज के खिलाड़ियों का सीमित ओवरों के क्रिकेट में और टेस्ट क्रिकेट में औसत देखा जाए तो तो यह बात साफ हो सकती है.

यह सबक वेस्टइंडीज के लिए ही नहीं, सारी टीमों के लिए और सारे खिलाड़ियों के लिए है. अगर वे सीमित ओवरों के क्रिकेट को जरूरत से ज्यादा तरजीह देंगे तो उनका प्रदर्शन सीमित ओवरों के क्रिकेट में भी खराब होने लगेगा. जो युवा खिलाड़ी सिर्फ आईपीएल का कॉन्ट्रैक्ट पाने के उद्देश्य से खेलते हैं, वे आईपीएल में भी ज्यादा दिन नहीं टिकेंगे. लंबे दौर का क्रिकेट इसलिए भी जरूरी है कि उससे ही सीमित ओवरों के खेल में निरंतरता और गुणवत्ता आती है.