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संडे स्पेशल: क्रिकेट के असली जेंटलमैन हैं वेस्टइंडीज के रोहन कन्हाई

सुनील गावस्कर ने रोहन कन्हाई से प्रभावित होकर अपने बेटे का नाम रोहन रखा

Rajendra Dhodapkar

पिछली बार हमने वेस्टइंडीज के क्रिकेट की चर्चा करते हुए कहा था कि वेस्टइंडियन खिलाड़ियों के लिए क्रिकेट उनकी पहचान और आजादी की भावना को अभिव्यक्त करने का खेल था.

ऐसे में यह स्वाभाविक है कि इस बार हम एक ऐसे खिलाड़ी की चर्चा करें जिसके बारे में सीएलआर जेम्स ने कुछ ऐसा लिखा है कि उसकी इनिंग्ज वेस्टइंडियन व्यक्ति की आजादी की घोषणा थी. यह खिलाड़ी है रोहन बाबूलाल कन्हाई.


कन्हाई की बात जब भी होती है तो एक शब्द निश्चित रूप से इस्तेमाल होता है "मौलिक " या अंग्रेजी में ओरीजनल. कन्हाई इस मायने में मौलिक थे कि कि उनके जैसी शैली किसी की नहीं थी ,वे उस जमाने जितने सारे अनोखे शॉट खेल सकते थे उतने शायद टी 20 के दौर के बल्लेबाज भी नहीं खेल सकते लेकिन उनकी इन मौलिकता में एक वेस्टइंडियन पहचान थी.

बकौल जेम्स वे मौलिक थे इसीलिए वेस्टइंडियन क्रिकेट के सच्चे प्रतिनिधि थे.  वेस्टइंडीज के ही एक लेखक ने लिखा है कि कन्हाई वेस्टइंडीज की नियति को अपने कंधों पर उदात्तता और गरिमा के साथ उठाए हुए थे. वॉरेल की कप्तानी ने वेस्टइंडीज की क्रिकेट टीम को कुछ इस तरह से पिरोया था कि हर खिलाड़ी अपने मौलिक अंदाज में भी एक बड़े उद्देश्य और नियति का हिस्सा होता था.

सर गैरी सोबर्स क्या कम मौलिक खिलाड़ी थे?. वे अपने आप में मुकम्मल टीम थे. जो खिलाड़ी तीन तरह से गेंदबाजी कर सकता हो, न जाने कितनी तरह से बल्लेबाजी कर सकता हो और जो कमाल का फील्डर हो , वह अपने बारे में क्या कहता है?

सोबर्स का एक इंटरव्यू मैं देख रहा था जिसमें उनसे वेस्टइंडीज के क्रिकेट को उनके योगदान के बारे में पूछा गया. वे कहते हैं कि कि मैंने अपना काम किया. मैंने जो कुछ किया अपनी टीम के लिए किया.  यह कहना गलत होगा अगर मैं कहूं कि मुझे अपने योगदान पर गर्व है , क्योंकि बिना टीम के आप कुछ नहीं कर सकते.

अगर आप पांच विकेट लेते हैं तो कोई कैच पकड़ने वाला होता है. अगर आप शतक लगाते हैं तो दूसरे छोर पर कोई आपका साथ देने वाला होता है. कई योगदान छोटे होते हैं कन्हाई सबसे पहले सन 1956 में वेस्टइंडीज टीम का हिस्सा बने. जिस टीम में तीन डब्ल्यू यानी वीक्स, वॉरेल और वॉलकॉट जैसे बल्लेबाज हों उसमें उन्होंने अपनी जगह बनाई यही उनकी प्रतिभा का प्रमाण है.

सोबर्स, कॉनरॉड हंट और जो सोलोमन उनके लगभग साथ ही टीम में आए. शुरु में सोबर्स और कन्हाई के बीच कुछ प्रतिस्पर्धा थी लेकिन सर फ़्रैंक वॉरेल ने दोनों को समझाया कि आप लोग वेस्टइंडीज क्रिकेट का भविष्य हो इसलिए आपको मिलकर इस टीम को आगे बढ़ाना है. दोनों ने यह काम वॉरेल के रिटायर होने के बाद भी बखूबी निभाया और लगभग एक दशक तक वेस्टइंडीज को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीम बनाए रखा.

यह बात पहले ही की जा चुकी है कि वे बहुत मौलिक खिलाड़ी थे और ऐसे शॉट ईजाद करने में उनकी महारत थी जो किसी कोचिंग मैन्युअल का हिस्सा न हैं , न बन सकते हैं.

उनका 'स्लीपिंग स्वीप' तो क्रिकेट इतिहास के सबसे ज्यादा मशहूर शॉट्स में से होगा जिसे मारते हुए वे पूरे लेट जाते थे और जो उनके मुताबिक एकदम सुरक्षित शॉट था.

कन्हाई की कई इनिंग्ज की चर्चा होती है जिसमें उन्होंने पहली गेंद से गेंदबाज़ों की पिटाई शुरु की और बेहद तेजी से रन बनाए. लेकिन उनकी बल्लेबाज़ी धुंआधार भले ही हो, अंधाधुंध नहीं होती थी. वे बहुत सोचसमझकर ,अक्लमंदी से आक्रामक खेलने वाले खिलाड़ी थे.

क्रिकेट की उनकी समझ बहुत अच्छी थी और तकनीक लाजवाब. उनकी क्रिकेट की समझ और तकनीकी श्रेष्ठता का इससे बडा प्रमाण क्या होगा कि तकनीक और समझ के उस्ताद सुनील गावस्कर का कहना है कि 1971 के वेस्टइंडीज दौरे के दौरान उन्होंने कन्हाई को खेलते देखकर बहुत कुछ सीखा. गावस्कर उनसे कितने प्रभावित थे यह इस बात से जाहिर होता है कि उन्होंने अपने इकलौते बेटे का नाम रोहन रखा.

गावस्कर के प्रभावित होने की एकमात्र वजह सिर्फ कन्हाई की बल्लेबाजी नहीं रही होगी. मैदान पर वेस्टइंडीज़ के इन महान खिलाड़ियों का बर्ताव भी आदर्श होता था, जिससे नौजवान खिलाड़ी बहुत कुछ सीख सकते थे. वे लोग पूरी शिद्दत से खेलते थे लेकिन पूरी सच्चाई और ईमानदारी के साथ.

न वे अपने विरोधी खिलाड़ी को गाली देते थे,न ही किसी गलत तरीके का इस्तेमाल करते थे. उनका बर्ताव खेल भावना की मिसाल होता था क्योंकि वे सिर्फ अपने लिए नहीं,पूरे वेस्टइंडीज के लिए बल्कि समूचे अश्वेत समुदाय के लिए खेल रहे होते थे. कन्हाई के बडप्पन का एक उदाहरण पेश है.

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सब जानते हैं कि 1971 में पहली बार भारत ने वेस्टइंडीज के खिलाफ सीरीज जीती थी और भारत की इस जीत में पहली बार टेस्ट क्रिकेट खेल रहे गावस्कर की सबसे बड़ी भूमिका थी अपनी पहली ही सीरीज में गावस्कर ने चार टेस्ट में तीन शतक और एक दोहरे शतक के साथ लगभग डेढ़ सौ के औसत से करीबन साढ़े सात सौ रन बनाए थे. जाहिर है गावस्कर को आउट करना वेस्टइंडीज़ के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी.

गावस्कर ने कहीं बताया था कि एक टेस्ट मैच में वे लगातार दो तीन गेंदों पर बीट हुए , तब कन्हाई उनके पास आए और उनकी पीठ थपथपाकर बोले - कंसंट्रेट , सनी, कंसंट्रेट. अपने लिए सबसे बड़ी चुनौती बने खिलाड़ी के साथ ऐसा व्यवहार सिर्फ कोई बहुत बड़े दिल वाला इंसान ही कर सकता है.

कन्हाई बहुत लोकप्रिय खिलाड़ी थे और इस लोकप्रियता के साथ आई जिम्मेदारी को भी वे समझते थे. बयासी साल की उम्र में वे अब भी उतने ही जिंदादिल और लोकप्रिय हैं. इस व्यावसायीकरण और और गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर में हम उनसे यह सीख सकते हैं कि बडे दिल और गरिमायुक्त आचरण के साथ कैसे खेला जाता है.