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संडे स्पेशल: पिछले साल गुजरात की जीत एक अच्छी खबर थी वैसे ही इस बार विदर्भ की जीत है

घरेलू क्रिकेट के लिए भी यह अच्छा है कि अलग-अलग टीमें बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं

Rajendra Dhodapkar

सन 2017 की विदाई और सन 2018 की शुरुआत मेरे लिए रणजी ट्रॉफी का शानदार फाइनल देखते हुए हुई. आजकल टीवी पर लगातार अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट चलता रहता है इसलिए घरेलू क्रिकेट में दर्शकों की दिलचस्पी घटी है. क्रिकेट के जो नए दर्शक हैं, वे तो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट देखते हुए ही बड़े हुए हैं, उन्हें घरेलू क्रिकेट का अता पता ही नहीं है. आजकल अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट इतना ज्यादा होता है कि जो बड़े सितारे हैं वे कभी-कभार ही घरेलू क्रिकेट खेलते हैं, इसलिए भी इसका आकर्षण कम हुआ है. लेकिन क्रिकेट के अपेक्षाकृत गंभीर दर्शक जानते हैं कि इसकी संस्कृति घरेलू क्रिकेट से बनती है. मुझे घरेलू क्रिकेट में दिलचस्पी इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि इसमें तड़क-भड़क और ग्लैमर कम होता है. बल्कि इसमें खेल का सार तत्व ज्यादा होता है. इसलिए यह कुछ पुराने दिनों की याद दिलाता है.

इस बार रणजी ट्रॉफी फाइनल में मैं विदर्भ के साथ था. इसका अर्थ यह नहीं कि मेरी दिल्ली के साथ कोई दुश्मनी है. मैं पिछले तीस साल से दिल्ली और एनसीआर में ही रह रहा हूं इसलिए अपने को दिल्ली वाला ही मानता हूं. दिल्ली के अखबारों में इस बीच नौकरी की है और कुछ दिल्ली क्रिकेट से संबंधित लोगों से जान पहचान भी रही है. इसलिए दिल्ली क्रिकेट टीम से लगाव भी है और दिल्ली के इस साल के अच्छे प्रदर्शन से खुश भी हूं. लेकिन खेलों में या जिंदगी में हमारा सहज जुड़ाव ‘अंडरडॉग’ के साथ होता है. विदर्भ की टीम पहली बार फाइनल में पहुंची और जीत भी गई. यह एक बड़ी उपलब्धि है और क्रिकेट के लिए भी यह अच्छा है कि अलग-अलग टीमें बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं. भारतीय क्रिकेट के लिए यह एक अच्छा लक्षण है कि तमाम टीमों के खेल का स्तर सुधर रहा है और टीमों के प्रदर्शन के बीच फर्क कम हो रहा है. पिछले साल गुजरात की जीत एक अच्छी खबर थी वैसे ही इस बार विदर्भ की जीत है.


... जब फजल ने गेंदबाज को सराहा

घरेलू क्रिकेट देखने का फायदा यह भी है कि आपको कुछ ऐसी चीजें देखने को मिल जाती हैं जो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में नहीं दिखतीं. मसलन विदर्भ की पहली इनिंग में कप्तान फैज फजल बल्लेबाजी कर रहे थे तो शायद गेंदबाज नवदीप सैनी की एक गेंद उनके बल्ले को चकमा देकर विकेटकीपर के दस्तानों में समा गई. गेंद बहुत अच्छी थी. आखिरी वक्त तक यह लग रहा था कि वह अंदर आ रही है, लेकिन टप्पा पड़ने के बाद हल्के से बाहर मुड़ गई. बीट हो जाने के बाद फजल ने गेंदबाज को देखकर अपने बल्ले को हल्के से ताली बजाने के अंदाज में थपथपाया जैसे अच्छी गेंद के लिए उसकी तारीफ कर रहे हों.

बीच मैदान में अपने प्रतिस्पर्धी की तारीफ करना एक ऐसी बात है जो आजकल अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में देखने को नहीं मिलता. आजकल अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में दोनों टीमें एक दूसरे के साथ ऐसे पेश आती हैं जैसे कोई दुश्मन हों. दोनों टीमों के खिलाड़ी एक दूसरे को जैसे देखते हैं, गेंदबाज, बल्लेबाज को बीट करने के बाद जैसे उसे घूरता है या बल्लेबाज पचास, या सौ रन बनाने के बाद जैसा आदिम विजय नृत्य करता है,उससे यह लगता है कि ये लोग कोई खेल नहीं खेल रहे, युद्ध लड़ रहे हों. विकेट लेने के बाद गेंदबाज कुछ ऐसे आक्रामक हावभाव दिखाता है जैसे प्राचीन कबीलाई लड़ाके किसी शत्रु का वध करने के बाद दिखाते होंगे.

क्रिकेट को शो बिजनेस बना दिया है टीवी ने

मेरा खयाल है कि यह आक्रामकता टीवी पर प्रदर्शन की वजह से ज्यादा है. टीवी ने क्रिकेट को शो बिजनेस बना दिया है और खिलाड़ी भी जाने-अनजाने अभिनय कर रहे होते हैं. जहां व्यापार और प्रदर्शन का दबाव नहीं होता वहां खिलाड़ी चाहे दोस्ताना हों या कभी-कभी आक्रामक भी हो जाते हों, ज्यादा स्वाभाविक होते हैं. आजकल भारत के दक्षिण अफ्रीका दौरे का जैसा विज्ञापन टीवी पर आ रहा है उसे देखकर भी ऐसा लगता है जैसे नफरत और प्रतिशोध का प्रचार हो रहा है, अपना माल बेचने और मुनाफा कमाने के लिए. भारत और पाकिस्तान के बीच जब क्रिकेट खेला जाता था तब क्रिकेट दोस्ती बढ़ाने का जरिया क्या बनता, दोनों देशों के बीच कड़वाहट को मार्केटिंग का औजार बना दिया गया था. जैसे खबरिया चैनल वाले रोज भारत-पाकिस्तान के बीच जंग करवाने पर आमादा रहते हैं, वैसे ही तब खेल चैनल वाले होते थे. जो अब भारत-दक्षिण अफ्रीका सीरीज को मूंछ और न जाने किस किस की लड़ाई बनाने पर आमादा हैं. ऐसे में खिलाड़ी चाहकर भी दोस्ताना रवैया दिखा नहीं सकते.

घरेलू क्रिकेट में ज्यादा सहज होते हैं खिलाड़ी

घरेलू क्रिकेट व्यावसायिक और आर्थिक दबावों से अपेक्षाकृत मुक्त होता है. उसमें खिलाड़ियों पर टीवी के सामने प्रदर्शन का भी दबाव नहीं होता इसलिए उसमें खिलाड़ी ज्यादा सहज होते हैं. ऐसा नहीं कि उसमें सब बड़ी खेल भावना से ही खेलते हैं या उसमें दुष्टताएं नहीं होतीं, लेकिन उसमें दोस्तियां और दोस्ताना व्यवहार अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से ज्यादा होता है. खिलाड़ियों के बीच जैसी दोस्तियां रणजी ट्रॉफी खेलने के दौरान होती हैं वैसी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के दौरान नहीं होती.

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भी अक्सर दिख जाता है दोस्ताना माहौल

पहले अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भी ज्यादा दोस्ताना और गर्मजोशी भरा माहौल अक्सर दिख जाता था. ऐसा भी होता था कि विरोधी टीम का कोई सीनियर खिलाड़ी सामने वाली टीम के खिलाड़ी को कोई सलाह दे डाले.

हनीफ मोहम्मद ने जब वेस्टइंडीज टीम के खिलाफ तीन सौ रन बनाए थे उस सीरीज में क्लाइड वॉलकॉट ने हनीफ को सलाह दी थी कि गिलक्रिस्ट की बाउंसरों पर वह डक करने की बजाय उसकी लाइन से हटने की कोशिश करें. ऐसे कई किस्से हैं खास कर वेस्टइंडीज़ टीम के. जब वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाज सामने वाली टीम को ध्वस्त करते थे तब भी वे जबान या हावभाव से आक्रामक दिखने की कोशिश नहीं करते थे. विकेट लेने पर भी ज्यादा से ज्यादा अपनी टीम के सदस्यों से हाई फाइव तक उनकी खुशी का प्रदर्शन सीमित होता था, चीखने या रौद्र नृत्य करने जैसा काम वे कभी नहीं करते थे.

ऐसा नहीं है कि क्रिकेट में पैसा या ग्लैमर नहीं होना चाहिए. अगर है तो बहुत अच्छा है, लेकिन थोड़ी सादगी और सहजता भी हो, तो उसके रंग ज्यादा खूबसूरत हो जाएंगे.