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संडे स्पेशल: नैतिकता की सीमा क्रिकेट में लगातार सिकुड़ती गई है जो खेल के लिए बुरा है

हर कोई जीतने के लिए खेलता है और जब हार-जीत की कीमत बहुत बड़ी हो, तो थोड़ी बहुत चालाकी करने से परहेज कम ही लोग करते हैं

Rajendra Dhodapkar

साउथ अफ्रीका में ऑस्ट्रेलियाई टीम ने गेंद से जो छेड़छाड़ की थी, वह मामला अब भावुक नाटक में तब्दील हो गया है. स्टीव स्मिथ और डेविड वॉर्नर दोनों रो पड़े, यह भी स्वाभाविक है. उन लोगों ने जो भी गड़बड़ी की हो, लेकिन दो बड़े खिलाड़ियों के करियर पर ऐसा दाग लगना सबको बुरा लगेगा. यह आशंका और ज्यादा बुरी है कि शायद ये लोग भविष्य में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट न खेल पाएं. लेकिन यह भी सही है कि क्रिकेट में ऐसी धोखाधड़ी चलती रहेगी और वक्त-वक्त पर हम ऐसे दुखद प्रसंगों को देखते रहेंगे.

इसकी एक वजह तो यह है हर कोई जीतने के लिए खेलता है. जब हार-जीत की कीमत बहुत बड़ी हो, तो थोड़ी बहुत चालाकी करने से परहेज कम ही लोग करते हैं. इस ”थोड़ी बहुत“ की परिभाषा हर किसी के लिए अलग होती है जो उसकी व्यक्तिगत नैतिकता और उसके आसपास की खेल संस्कृति पर निर्भर करती है. नैतिकता की यह सीमा क्रिकेट में लगातार सिकुड़ती गई है यह बुरा है. आधुनिक क्रिकेट खिलाड़ी एक वरिष्ठ खेल समीक्षक के मुताबिक “जीत के लिए प्रोग्राम्ड रोबोट“ में बदल गए हैं इसलिए नैतिकता का मतलब सिर्फ पकड़े नहीं जाना है.


स्मिथ और वॉर्नर के आंसू असली है. उनका और उनके प्रशंसकों का दुख भी असली है, लेकिन यह भी लगता है कि गेंद के साथ छेड़छाड़ इन लोगों ने पहली बार नहीं की थी और अगर पकड़े नहीं जाते तो शायद आगे भी करते. बल्कि हम यह कह सकते हैं कि रिवर्स स्विंग का इतिहास गेंद के साथ छेड़छाड़ से जुड़ा हुआ है. जहां कैमरा और अंपायरों की निगरानी होती है वहां नहीं या कम होती है, जहां पकड़े जाने का खतरा कम होता है वहां ज्यादा होती है.

कुछ तरीके खेल की भावना को लेकर सवाल खड़े करते हैं

शायद अब हमें सवाल कानूनी गैरकानूनी को लेकर नहीं, गलत और सही को लेकर पूछना चाहिए. हमें यह पूछना चाहिए कि “फेयर प्ले“ किसे कहते हैं और क्रिकेट खेलने का सही तरीका क्या है. यह सवाल इसलिए पूछना चाहिए क्योंकि बहुत सारे तरीके हैं जो गैरकानूनी नहीं कहे जा सकते, लेकिन वे खेल की भावना और मर्यादा को लेकर सवाल खड़े करते हैं. इन तरीकों का इस्तेमाल वे खिलाड़ी भी करते हैं जो मानते हैं कि वे ईमानदारी से खेल रहे हैं. हर खेल में ऐसे कई तरीके होते हैं जिनका इस्तेमाल सवाल खड़े करता है उन्हें हम खेल के हर स्तर पर सीखते हैं, लेकिन वहां से गैरकानूनी तरीकों के बीच फासला बहुत कम होता है. अब लोग यह कहने लगे हैं कि इस व्यावसायीकरण के दौर में क्रिकेट “जेंटलमैंस गेम“ नहीं रहा, लेकिन अगर हमने क्रिकेट की मूल भावना की बात नहीं की तो हम बार-बार ऐसे अप्रिय प्रसंग झेलते रहेंगे.

...ऐसे में कितना जायज है बॉब विलिस का बयान

मसलन एक खबर एकाध दिन पहले ही आई है. विराट कोहली सरे से काउंटी क्रिकेट खेलना चाहते हैं. कोहली इंग्लैंड के पिछले दौरे पर बुरी तरह नाकाम रहे थे और वह चाह रहे होंगे कि काउंटी क्रिकेट खेल कर वह इंग्लैंड में बल्लेबाजी करने का अभ्यास कर लें ताकि आने वाले इंग्लैंड दौरे पर अच्छा प्रदर्शन कर सकें. इस सिलसिले में इंग्लैंड के पूर्व तेज गेंदबाज बॉब विलिस का बयान आया कि सरे को कोहली अपने यहां नहीं खेलने देना चाहिए, क्योंकि हम चाहते हैं कि कोहली उतना ही बुरा खेलें जितना पिछले दौरे में खेले थे.

क्रिकेट के किसी भी नियम का उल्लंघन विलिस के बयान से नहीं होता, लेकिन जीतने के लिए यह कोशिश करना कितनी जायज है कि सामने वाली टीम का सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज ठीक से नहीं खेल पाए. कोहली दुनिया के दो-तीन श्रेष्ठतम बल्लेबाजों में से हैं और शायद इंग्लैंड के भी बहुत सारे दर्शक उनकी बल्लेबाजी देखना चाहेंगे. कायदे से चाहा यह जाना चाहिए कि कोहली अपने सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में खेलें और इंग्लैंड उनका अपनी पूरी ताकत के साथ मुकाबला करे, तब वह शानदार क्रिकेट होगा और दर्शकों के साथ भी इंसाफ होगा. लेकिन यह उम्मीद करना कि कोहली ठीक से तैयारी ना कर पाएं, कितना जायज है?

विपक्षी टीम ठीक से तैयारी न कर पाए ये तो होता है

यह सिर्फ एक उदाहरण है, लेकिन ऐसा क्रिकेट में होता रहा है कि कोई टीम यह कोशिश करे या यह उम्मीद करे कि सामने वाली टीम ठीक से तैयारी न कर पाए. पिच पर सचमुच पानी फेर देना तो जरा अतिवादी कदम होता है. लेकिन इससे कम जो भी संभव है, अक्सर देखने में आता है और इसे गलत नहीं माना जाता. इसे जायज चतुराई माना जाता है. फिर यहां से नाजायज तरीकों तक पहुंचने में कितनी देर लगती है?

जब आप सीमारेखा तक जाते हैं तो पार करने की आशंका होती है

ऑस्ट्रेलियाई अपने बारे में यह प्रचारित करते हैं कि वे “टफ“ और जीजान से खेलने वाले लोग हैं इसलिए वे जो जायज है उसकी सीमारेखा तक जाते हैं, लेकिन वे सच्चे खिलाड़ी हैं इसलिए सीमारेखा पार नहीं करते. जब आप सीमारेखा तक जाते हैं तो पार करने की आशंका बहुत होती है और जैसे कि ताजा प्रसंग ने दिखा दिया कि वे सीमा पार भी टहल आते हैं.

इन खिलाड़ियों की आलोचना इसलिए क्योंकि ये पकड़े गए

बुनियादी मुद्दा यह है कि सीमा तक पहुंचना भी गलत माना जाना चाहिए. यह मानना गलत है कि पेशेवर क्रिकेट के दौर में नैतिकता की बात करना बेमानी है. अगर बात सिर्फ कानूनी गैरकानूनी की होगी तो जिसमें कोई नैतिकता या परंपरा का सवाल नहीं होगा तो अपराध होंगे और पाखंड भी होगा. जितने खिलाड़ी स्मिथ और वॉर्नर की आलोचना कर रहे हैं वे ईमानदारी से बताएं कि उन्होंने खुद कितनी बार सीमा पार नहीं की. वे इन खिलाड़ियों की सिर्फ इसलिए आलोचना कर रहे हैं क्योंकि ये पकड़े गए. यह पाखंड नहीं तो क्या है? ऑस्ट्रेलियाई मीडिया इन खिलाड़ियों की आलोचना कर रहा है जो अक्सर विरोधी टीम का मनोबल गिराने के लिए प्रचार युद्ध में शामिल होता है.

बेईमानी खेल का जरूरी अंग नहीं है. ब्रैडमैन स्लेजिंग नहीं करते थे और कीथ मिलर अगर गाली देते थे तो वह उनकी सच्ची अभिव्यक्ति होती थी, सामने वाले खिलाड़ी को आउट करने की रणनीति नहीं और ये लोग आज के खिलाड़ियों से बेहतर और ज्यादा कामयाब खिलाड़ी थे. जरूरत यह है कि “इट्स नॉट क्रिकेट“ मुहावरे को फिर चलन में लाया जाए. कोचिंग में क्रिकेट की परंपरा और मर्यादा को भी जगह दी जाए क्योंकि इनके बिना क्रिकेट, क्रिकेट नहीं है.