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संडे स्पेशल - ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहले टेस्ट में वेंकटराघवन को गलत आउट देने पर मैदान पर हिंसा और उपद्रव

1969 -70 की भारत ऑस्ट्रेलिया सीरीज खास तौर पर दर्शकों की हिंसा और उपद्रवों के लिए याद की जाती है

Rajendra Dhodapkar

लगभग पचास साल पहले का दौर बहुत उथलपुथल और हिंसा से भरा हुआ था. खास तौर पर यह दौर युवा असंतोष का दौर था. अमेरिका में वियतनाम युद्ध की वजह से युवा आंदोलित थेयह दौर हिप्पी आंदोलन के चरम का दौर था. यूरोप में छात्र आंदोलन उग्र हो रहे थे. भारत में नक्सल आंदोलन की चपेट में देश का बड़ा हिस्सा था और वो छात्र और युवा आंदोलन कुछ ही साल दूर था जिसकी परिणति इमरजेंसी के रूप में हुई. लगातार अस्थिरताउथलपुथल और हिंसा का प्रभाव क्रिकेट के मैदानों पर भी देखने में आया. इसी वजह से सन 1969 -70 की भारत ऑस्ट्रेलिया सीरीज खास तौर पर दर्शकों की हिंसा और उपद्रवों के लिए याद की जाती है.

हम पिछली बार जिक्र कर चुके हैं कि सीरीज के मुंबई में पहले टेस्ट मैच में वेंकटराघवन की जगह सुब्रत गुहा को लेने पर इतना बवाल हुआ कि मैच के पहले दिन गुहा की जगह वेंकट को टीम में लिया गया. टेस्ट मैच ठीक ठाक चल रहा था, लेकिन चौथे दिन ऑस्ट्रेलिया के स्पिनर ऐश्ले मैलेट और जॉन ग्लीसन के सामने भारत की दूसरी पारी चरमरा गई. दिन के आखिरी सत्र में अंपायर ने वेंकटराघवन को विकेटकीपर ब्रायन टेबर के हाथों कैच आउट घोषित कर दिया जबकि गेंद वास्तव में बल्ले से नहीं लगी थी. रेडियो पर कमेंट्री कर रहे देवराज पुरी ने भी अंपायर के फैसले पर तीखी टिप्पणी कर दी.


खिलाड़ियों को बाथरूम में छुपना पड़ा

वेंकट पवेलियन लौट ही रहे थे कि कुछ दर्शकों ने मैदान पर कुर्सियां और बोतलें फेंकना शुरू कर दिया. कुछ ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को चोट भी आई. कुछ दर्शकों ने आगजनी शुरू कर दी. हालत यह हुई कि एक स्कोरर मैदान में यह कहते हुए आ गए कि धुएं की वजह से उन्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा है. ग्लीसन को एक बोतल लग गई और ग्लेन मैकेंजी गेंद डालने के लिए दौड़ रहे थे तो एक पत्थर उनके ठीक सामने गिरा. पुलिस ने मैदान के चारों ओर घेरा डाल दिया और दिन के बचे खुचे ओवर खेले गए. खेल खत्म होने के बाद पुलिस ने लगभग बीस मिनट तक खिलाड़ियों को मैदान में ही रोके रखा ताकि दर्शकों का बवाल कम हो जाए. लेकिन पुलिस सुरक्षा में जब ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी ड्रेसिंग रूम में पहुंचे तो दर्शकों ने वहां हमला बोल दिया और खिलाड़ियों को बाथरूम में छुपना पड़ा. दर्शकों ने कुर्सियां फेंक कर ड्रेसिंग रूम के शीशे तोड़ दिए. कई पुलिस वाले और दर्शक इस दंगे में जख्मी हुए. अगले दिन बचा हुआ खेल पुलिस सुरक्षा में संपन्न हुआ और ऑस्ट्रेलिया ने दस विकेट से टेस्ट मैच जीत लिया.

विश्वनाथ ने लगाया पदार्पण टेस्ट में शतक

दूसरा टेस्ट मैच कानपुर में हुआ जो बराबरी पर खत्म हुआ और इसमें शांति रही. यह मैच गुंडप्पा विश्वनाथ के पहले टेस्ट के तौर पर याद किया जाता है, जिसमें उन्होंने दूसरी पारी में शतक लगाया. तीसरा टेस्ट मैच इसलिए याद रहता है क्योंकि यह भारत ने जीता. 

प्रसन्ना और बेदी की बेहतरीन गेंदबाजी की वजह से जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया को दूसरी पारी में 107 रनों पर निपटा दिया. इस मैच में बवाल इसलिए हुआ क्योंकि एक व्यक्ति भाग कर मैदान में पहुंच गया. उससे पुलिस अपने तरीके से पेश आई जिससे दर्शक भड़क उठे, लेकिन यह बवाल ज्यादा उग्र नहीं हुआ.

कोलकाता टेस्ट में टिकट ना मिलने पर भड़के लोग

अगला टेस्ट मैच कोलकाता में था. आजकल के लोग उस दौर के कोलकाता की कल्पना नहीं कर सकते. तब वहां तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से लाखों शरणार्थी आए हुए थे और नक्सलवादी आंदोलन पूरे जोर पर था. आगजनी और हिंसा वहां के रोजमर्रा के जीवन का अंग थी. कोलकाता टेस्ट के चौथे दिन ईडन गार्डंस के बाहर दंगा हो गया. उन दिनों टेस्ट मैचों में भी बड़ी संख्या में दर्शक जुटते थे. कोलकाता में चौथे दिन के टिकट पाने के लिए हजारों लोग रात भर लाइन लगा कर खड़े थे. सुबह जिन लोगों को टिकट नहीं मिले वे भड़क उठे. कहा जाता है कि टिकटों की कालाबाजारी की वजह से समस्या विकराल हो गई. लोगों को काबू में करने के लिए पुलिस ने बलप्रयोग किया, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई और कई जख़्मी हो गए. मैच में भी ऊपर बैठे दर्शकों ने नीचे बैठे दर्शकों पर पथराव किया जिससे वे भागकर मैदान में आ गए. यह मैच भारत हार गया.

दक्षिण क्षेत्र से मैच में भी हुआ उत्पात

इसके बाद बेंगलौर में ऑस्ट्रेलिया का दक्षिण क्षेत्र से मुकाबला था. मैच के आखिरी दिन ऑस्ट्रेलिया हार की कगार पर था जब 58 रन पर उसके आठ विकेट निकल गए थे. प्रसन्ना ने उनमें से छह विकेट सिर्फ ग्यारह रन देकर लिए थे. उसके बाद कप्तान बिल लॉरी और जॉन ग्लीसन बल्ले से कम और पैड से ज्यादा खेलते रहे. लगातार एलबीडब्ल्यू की अपील होती रही, लेकिन अंपायर टस से मस नहीं हुए. दक्षिण क्षेत्र की टीम में चार स्पिनर थेप्रसन्नावेंकटराघवनवीवी कुमार और चंद्रशेखर.

चारों ही अंतराष्ट्रीय स्तर के स्पिनर थे, लेकिन किसी की भी अपील सफल नहीं हो पाई. दर्शकों का गुस्सा बढ़ता गया और आखिरकार उन्होंने उत्पात मचाना शुरु कर दिया. मैदान पर पत्थर और बोतलें बरसने लगीं. ऑस्ट्रेलिया की टीम आखिरकार मैच ड्रॉ करवाने में कामयाब हो गई. उनका स्कोर था विकेट पर 90 रन.

ऑस्ट्रेलिया ने जीता मद्रास टेस्ट

तत्कालीन मद्रास में खेला गया आखिरी टेस्ट मैच ऑस्ट्रेलिया ने जीता, लेकिन इस दौरे के मुश्किल अनुभवों का असर उसके खिलाड़ियों पर जरूर पड़ा. इसके बाद वे दक्षिण अफ्रीका गए जहां वे चारों टेस्ट हार गए. यह दक्षिण अफ्रीका पर पाबंदी से पहले की आखिरी अंतरराष्ट्रीय सीरीज थी. अगला टेस्ट मैच उनकी टीम ने लगभग बीस साल बाद नस्लवाद के खात्मे के बाद खेला.

भारत में इसके बाद ही क्रिकेट में धीरे-धीरे सुरक्षा के इंतजाम ज्यादा सख्त होने लगे. दर्शकों और मैदान के बीच दूरियां बढ़ गईंबीच में जाली आ गई और पुलिस बंदोबस्त ज्यादा कड़ा होने लगा. यही वह दौर था जब हमारी पीढ़ी क्रिकेट देखना सीख रही थी और भारतीय टीम जीतना सीख रही थी.