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Sunday Special: भारत के खिलाफ इंग्लैंड की जीत में अहम है पुछल्ले बल्लेबाजों का रोल

इंग्लैंड इस तरह डेढ़ सौ के आसपास और कभी ज्यादा भी अतिरिक्त रन जोड़ लेता था तो भारतीय खिलाड़ियों का मनोबल पस्त हो जाता था

Rajendra Dhodapkar

कहा जाता है जीत से ज्यादा पराजित होना हमें ज्यादा अनुभवी और समझदार बना जाता है. लेकिन एक चीनी कहावत यह भी है कि अनुभव वह कंघी है जो इन्सान को गंजा होने के बाद मिलती है. शुक्र है भारतीय टीम के सिर पर अभी कुछ बाल बचे हैं और वह कंघी का कुछ तो इस्तेमाल कर सकती है.

भारत और इंग्लैंड के बीच यह सीरीज देखते हुए एक मायने में सत्तर के दशक की याद आती रही. तब भारत के खिलाफ लगभग हर इनिंग्ज में एक किस्सा दोहराया जाता था. भारत के महान स्पिनर इंग्लैंड के ऊपरी क्रम के बल्लेबाजों को सस्ते में निकाल देते थे लेकिन इंग्लैंड का असली स्कोर उसके बाद बनता था. निचले क्रम के बल्लेबाज, कभी जॉन प्राइस, कभी पीटर लीवर पिचहत्तर, अस्सी रन ठोक देते थे. अड़ियल एलन नॉट तो डटे ही रहते थे. इंग्लैंड इस तरह डेढ़ सौ के आसपास और कभी ज्यादा भी अतिरिक्त रन जोड़ लेता था तो भारतीय खिलाड़ियों का मनोबल पस्त हो जाता था.


तब यह माना जाता था कि निचले गेंदबाजों को आउट करने के लिए तेज गेंदबाज होने चाहिए , क्योंकि खुलकर हाथ चलाने वाले निचले क्रम के बल्लेबाजों के खिलाफ स्पिनर कारगर नहीं होते. लेकिन इस भारतीय टीम में तो एक ही स्पिनर है और बाकी चार में से कम से कम तीन गेंदबाज तो ऐसे हैं जो एक सौ चालीस किलोमीटर प्रति घंटा से ज्यादा की रफ्तार से गेंद डाल सकते हैं. लेकिन अब तक कहानी वही क्यों चल रही है.

इंग्लैंड के पुछल्ले बल्लेबाज कर रहे हैं कमाल

इसकी एक वजह तो यह है कि इंग्लैंड में बिल्कुल नीचे तक ऐसे खिलाडी हैं जो कायदे से टेलएंडर नहीं हैं. जिस टीम में स्टुअर्ट ब्रॉड दसवें नंबर पर बल्लेबाजी करें , उसके निचले क्रम को निपटाना आसान नहीं है . उसके बरक्स भारत में पांचवें नंबर पर अजिंक्य राहणे के बाद वास्तव में निचले क्रम शुरु हो जाता है. न दिनेश कार्तिक चले, न ऋषभ पंत से बल्लेबाजी हो रही है. पंत अभी बहुत युवा हैं और उनकी बल्लेबाजी की शैली कुछ सीमित ओवरों वाली है. मुश्किल विकेटों पर, मुश्किल हालात में बल्लेबाजी करना अभी उन्हें सीखना है.

पांड्या को ऑलराउंडर कहा जा रहा है लेकिन बल्लेबाजी वे कर नहीं पा रहे हैं और गेंदबाजी उनसे करवाई नहीं जा रही है. इन सब से इन परिस्थितियों में अश्विन सबसे उपयोगी बल्लेबाजी हो सकते थे लेकिन शायद उनकी बल्लेबाजी पर न टीम प्रबंधन को, न खुद उन्हें यकीन रहा है. सो भारतीय टीम का ऊपरी क्रम , मध्य क्रम और निचला क्रम एक सी रफ्तार से ढहता जाता है.

पुछल्ले बल्लेबाजों के लिए नहीं होती कोई योजना

जब विकेट मुश्किल हो और सामने वाले गेंदबाज विकेट. और परिस्थिति का अच्छा इस्तेमाल करने की कुव्वत रखते हों तो निचले क्रम की बल्लेबाजी बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है. इसकी वजह यह है कि गेंदबाजी की अनुकूल परिस्थितियों में ऊपरी क्रम के ढहने का अंदेशा बहुत होता है. जब तक चार पाँच विकेट निकलते हैं तब तक परिस्थितियाँ कुछ बदल जाती हैं. विकेट अक्सर आसान हो जाती है, गेंद की सख्ती और चमक घट जाती है और गेंदबाजों का दमखम भी कुछ कम हो जाता है. सबसे ज्यादा मुश्किल यह होती है कि पुछल्ले बल्लेबाजों के खिलाफ किसी टीम के पास कोई योजना नहीं होती क्योंकि उनके बारे में यही माना जाता है कि वे तो आसानी से निपट जाते हैं.

जब ऐसा नहीं होता तो कप्तान और गेंदबाज दिशाहीन नजर आते हैं. इसका असर गेंदबाजी कर रही टीम के मनोबल पर भी पड़ता है क्योंकि यह ऐसी मुसीबत होती है जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की होती. छह सात विकेट निकल जाने के बाद अक्सर मुकाबिल टीम के बल्लेबाज अपनी अगली इनिंग्ज के बारे में सोचने लगते हैं, वह इनिंग्ज जैसे जैसे दूर जाती नजर आती है बल्लेबाजों का उत्साह घटता जाता है.

निचले क्रम के बल्लेबाज तकनीक के सहारे नहीं आत्मविश्वास के सहारे बल्लेबाजी करते हैं. यह आत्मविश्वास अपनी टीम के अजेय होने और सामने वाली टीम से बेहतर होने के विश्वास से आता है. यह विश्वास पिछली बार ऑस्ट्रेलिया की अजेय टीम में दिखा था जब डेनियल फ़्लेमिंग जैसे 'बल्लेबाज' ने भी एक शतक जड़ दिया था. घरेलू मैदान पर खेलने वाली टीम के पुछल्ले बल्लेबाजों में यह आत्मविश्वास ज्यादा होता है , इसलिए विदेशी दौरों पर जाने वाली टीमों को पुछल्ले बल्लेबाजों के लिए भी कोई योजना जरूर बनानी चाहिए, और अपने गेंदबाज़ों को भी इस बात के लिए तैयार करना चाहिए कि उन्हें भी बतौर बल्लेबाज जूझने की जरूरत हो सकती है. यह उस हालत में बहुत जरूरी है जब हमारे लाड़ले ऊपरी क्रम के बल्लेबाज गेंद के जरा स्विंग होने पर हथियार डाल देते हों.