लोगों को याद होगा कि रवि शास्त्री अपने खेल करियर के दौरान भारतीय जनता में बहुत अलोकप्रिय थे. उनकी तमाम ग्लैमरस छवि के बावजूद वे ऐसे खिलाड़ी थे, जिन्हें भारतीय मैदानों पर बाकायदा हूट किया जाता था. ऐसा इसलिए कतई नहीं था कि शास्त्री उपयोगी खिलाड़ी नहीं थे, बल्कि वे बहुत जुझारु और उपयोगी ऑलराउंडर थे. जिनका टीम के लिए योगदान बहुत कीमती हुआ करता था. शास्त्री की अलोकप्रियता की एक वजह शायद यह थी कि वे बहुत आकर्षक बल्लेबाज नहीं थे. उनके पास बहुत कम स्ट्रोक थे और वे प्रतिभा से ज्यादा अपने जुझारुपन और टिके रहने की लगन के सहारे रन बनाते थे.
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कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपनी क्षमता और प्रतिभा के साथ न्याय नहीं करते और कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपनी लगन के सहारे अपनी क्षमता से ज्यादा कर के दिखाते हैं. शास्त्री दूसरी तरह के खिलाड़ी थे, जिनमें चमक नहीं थी लेकिन टिकाऊपन था. जनता में आम तौर पर ऐसे खिलाड़ी लोकप्रिय होते हैं जिनमें चमक और स्टाइल हो, खासकर हमारे देश में हम ऐसे ही लोगों को नायक बनाते हैं. हम ऐसे लोगों को खास पसंद नहीं करते जो चमक से नहीं, मेहनत से कामयाब होते हैं. हमारे देश में अच्छे अभिनेता स्टार नहीं बनते और स्टार अक्सर अभिनय से ज्यादा स्टाइल और छवि पर कामयाब होते हैं.
जोरदार तरीके से बढ़ाते थे अपनी टीम का आत्मविश्वास
बतौर कप्तान शास्त्री काफी आक्रामक रहे हैं जो जीतने के लिए जान लगा देते थे. उन्होने एक ही टेस्ट में भारत की कप्तानी की और उसे जीता. यह टेस्ट मैच वेस्टइंडीज के खिलाफ था और शास्त्री ने चेन्नई में एक जबरदस्त स्पिन लेने वाली पिच बनवा कर वेस्टइंडीज़ को हराया था. अपना पहला टेस्ट मैच खेल रहे लेग स्पिनर नरेंद्र हिरवानी ने सोलह विकेट लेकर रिकॉर्ड बनाया था. कई लोग मानते हैं कि शास्त्री को अगर मौका मिलता तो वे देश के बेहतरीन कप्तानों में से होते. उनकी कप्तानी की एक खासियत यह थी कि वे अपने खिलाड़ियों का मनोबल और आत्मविश्वास जोरदार तरीक़े से बढाते थे , उन्हें यह यकीन दिलाते थे कि वे जरूर जीत सकते हैं.
वे अपनी टीम को “बैक “ करने वाले इसलिए टीम में लोकप्रिय कप्तान थे. शास्त्री के नेतृत्व के ये तत्व बतौर कोच उनकी पारी में भी दिखाई देते हैं. वे इस तरह के बयान देते रहते हैं कि यह भारतीय टीम पिछले दौर की टीमों से बेहतर टीम है या यह टीम कहीं भी जीत सकती है. विराट कोहली भी आक्रामक और जुझारु कप्तान है इसलिए शास्त्री के साथ उनकी अच्छी निभती है. दोनों की यह आक्रामकता भारतीय टीम के रवैये में भी दिखाई देती है. यह दिखाई देता है कि भारतीय टीम हर मैच में जीत का जज्बा लेकर ही उतरती है.
कभी कभी ज्यादा आक्रामकता बदल जाती है लापरवाही में
यहां तक तो ठीक है, लेकिन ख़ास तौर पर विदेशी दौरों पर भारतीय टीम का प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा है. जितनी उम्मीद रहती है और निश्चय ही शास्त्री और कोहली को भी इन नतीजों से खुशी नहीं हुई होगी. इसकी वजह आम तौर पर यह रही है कि टीम का जितना आक्रामक रवैया और आत्मविश्वास है उस स्तर का कौशल वह नहीं दिखा पाती. बल्कि अक्सर विपरीत परिस्थितियों में अतिरिक्त आक्रामकता एक किस्म की लापरवाही में बदल जाती है. जैसे एडिलेड में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहले टेस्ट की पहली इनिंग्ज में दिखाई दिया. जब बल्लेबाज बिना स्थिति का आकलन किए लापरवाही से शॉट लगाए जाते हैं तो उससे पारी के बनने की बजाय ढहने की आशंका ज्यादा हो जाती है.
यहां 'कप्तान शास्त्री' के साथ साथ 'बल्लेबाज शास्त्री' के रवैये की ज्यादा जरुरत है. जो किसी भी परिस्थिति में अड़कर अपनी क्षमता से ज्यादा प्रदर्शन करते थे. जिनका खेल देखने में बहुत आकर्षक नहीं था, लेकिन जो टीम के लिए बहुत उपयोगी था. शास्त्री ऐसे बल्लेबाज थे, जिन्होंने भारतीय टीम में नंबर ग्यारह से लेकर नंबर एक तक बल्लेबाजी की और हर ज़िम्मेदारी को मजबूती से निभाया. हर टीम को स्टाइल और आक्रामकता के साथ एक मज़बूत रीढ़ की हड्डी की जरुरत होती है, जिसके बूते स्टाइल और आक्रामकता चल सके.
हर बल्लेबाज में होना चाहिए पुजारा का थोड़ा बहुत अंश
भारतीय टीम में काफी हद तक यह जरुरत चेतेश्वर पुजारा निभाते हैं. अगर भारतीय टीम में पुजारा को नंबर तीन पर खिलाया जाता है तो इसका मतलब ही यह है कि हमें शुरु से ही एक छोर को पकड़े रहने वाले बल्लेबाज की दरकार है. अगर ऐसा है तो फिर चेतेश्वर पुजारा को ज्यादा महत्व देना होगा. ऐसा नहीं होना चाहिए कि उन्हें वैसे ही टीम से बाहर रखा जाए जैसे इंग्लैंड दौरे की शुरुआत में रखा गया था. इसके अलावा हर बल्लेबाज में थोड़ा चेतेश्वर पुजारा का अंश होना चाहिए कि वह टीम की जरुरत के हिसाब से खेलना सीखे. शास्त्री को अपनी कप्तानी के अंदाज के साथ अपना बल्लेबाजी का अंदाज भी अपनी टीम को देना चाहिए.
जो खिलाड़ी टीम की रीढ़ की हड्डी बनते हैं वे अक्सर हीरो नहीं होते , उनके पास विज्ञापनों के ऑफर नहीं होते. वे जनता के लाड़ले भी नहीं होते, लेकिन टीम उनके ही सहारे खड़ी होती है और स्टार खिलाडी उनके भरोसे अपना आक्रामक खेल दिखा पाते हैं. कामयाब टीम वही होती है जो खेल से इस अंदाज का महत्व समझती है और उसका सम्मान करती है.