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संडे स्पेशल: रवि शास्त्री को लंबे समय तक कप्तान होना चाहिए था पर ऐसा हुआ नहीं

शास्त्री सिर्फ एक टेस्ट मैच में कप्तान रहे जिसमें भारत वेस्टइंडीज के खिलाफ जीता और नरेंद्र हिरवानी ने सोलह विकेट लेकर रिकॉर्ड बनाया

Rajendra Dhodapkar

पिछली बार हमने कहा था कि जिंदगी की तरह ही क्रिकेट में भी सबसे अच्छे कप्तान सब से ज्यादा सफल हों, ऐसा नहीं होता. बल्कि यह भी होता है कि अक्सर काबिल लोगों को नेतृत्व करने का मौका ही नहीं मिलता. एक मुक्केबाज थे सैम लैंगफोर्ड, जिनका नाम कम ही लोग जानते होंगे. जानकार उन्हें एक ऐसा महान मुक्केबाज बताते हैं जिसे विश्व चैंपियन होने का मौका नहीं मिला. इसके कई कारण थे, लेकिन यहां उनकी काबिलियत के बारे में यह बताना काफी होगा कि वह मिडिलवेट मुक्केबाज थे और हैवीवेट विश्व चैंपियन को भी चुनौती दे चुके थे.

वास्तविकता यह थी कि उस दौर के नामी हैवीवेट मुक्केबाज भी उनसे मुकाबला करने से बचते थे. यहां तक कि तत्कालीन हैवीवेट चैंपियन महान मुक्केबाज जैक डेंपसी भी उनकी चुनौती स्वीकार करने को तैयार नहीं हुए. यह हम किसी और मुक्केबाज के बारे में नहीं कह सकते. जैसे लैंगफोर्ड को किसी भी भारवर्ग में विश्व चैंपियन होने का मौका नहीं मिला वैसे ही कई लोग होंगे, जिन्हें बहुत काबिल होने के बावजूद नेतृत्व का मौका नहीं मिला.


पैसे और रसूख के दम पर कप्तान बने विज्जी

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें काबिल न होने के बावजूद नेतृत्व करने का मौका मिल जाता है. भारत में निर्विवाद रूप से सहमति होगी कि महाराजा विजयनगरम ऐसे ही कप्तान थे. सन 1936 के इंग्लैंड दौरे पर उन्होंने भारतीय टीम का नेतृत्व किया था. विज्जी के नाम से परिचित महाराजा विजयनगरम ज्यादा से ज्यादा क्लब स्तर के क्रिकेटर हो सकते थे, लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा भारत का नेतृत्व करने की थी. अपने पैसे और रसूख के दम पर वह कप्तान हो तो गए, लेकिन उन्हें यह मालूम था कि उनकी काबिलियत की वजह से तो उनकी इज्जत होने से रही. इसलिए वह तिकड़मों और षड्यंत्रों के जरिए अपना राज कायम करने की कोशिश करते रहे जिससे स्थिति और बिगड़ गई.

उनके षड्यंत्रों का नतीजा था कि लाला अमरनाथ को बीच दौरे में भारत वापस भेजने का फैसला किया गया. लेकिन अमरनाथ के भारत लौटने पर उनके समर्थन में इतना जन आक्रोश पैदा हो गया कि बोर्ड और सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा. विज्जी दौरे के मैचों में विरोधी कप्तानों को महंगे उपहार देते थे ताकि वे जब बल्लेबाजी करें तो उन्हें फुलटॉस और लॉंग हॉप गेंदें डाली जाएं. टेस्ट मैचों में तो यह संभव नहीं था सो तीन टेस्ट में वह कुल 33 रन बना पाए. इस दौरे के साथ ही उनका क्रिकेट करियर भी खत्म हो गया.

योग्यता का लिहाज करते थे लाला अमरनाथ

लाला अमरनाथ, जो विज्जी से भिड़ गए थे एक ऐसे कप्तान थे जिनकी काबिलियत बहुत बड़ी थी, लेकिन उनकी कामयाबी उतनी बड़ी नहीं दिखती. अमरनाथ जुझारू खिलाड़ी थे, क्रिकेट की बारीकियों और दांवपेचों की उनकी समझ जैसी थी वैसी कम ही लोगों की होगी. सबसे बड़ी बात क्रिकेट की तत्कालीन क्षेत्रीय राजनीति में वह निष्पक्ष थे. यह उन्हें जानने वाले सभी लोग मानते थे कि वह योग्यता के अलावा किसी और बात का लिहाज नहीं करते थे. लेकिन ये सभी बातें और साथ में साफगोई उनके लिए मुसीबत भी बन गई. अपनी कप्तानी के दौरान वह खिलाड़ियों के हकों के लिए बोर्ड से भिड़ गए और उसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा.

टीम में लोकप्रिय होने की जबर्दस्त क्षमता है शास्त्री में

अगर भारत के खिलाड़ियों और खेल प्रेमियों से एक ऐसे खिलाड़ी का नाम पूछा जाए जिसे भारत का कप्तान होना चाहिए था और जो नहीं हुआ तो मेरा खयाल है सब से ज्यादा मत रवि शास्त्री को मिलेंगे. पिछले दिनों भारतीय टीम के कोच को लेकर जो विवाद हुआ उसमें आपकी राय कुछ भी हो, आप यह तो मानेंगे कि शास्त्री में टीम में लोकप्रिय होने की जबर्दस्त सिफत है. अगर यह गुण किसी खिलाड़ी में है तो उसने अच्छा कप्तान होने के आधे से ज्यादा नंबर शुरू में ही पा लिए. क्योंकि इसका मतलब है कि उसकी टीम में माहौल अच्छा बना रहेगा और उस टीम के सदस्य अपने नेता के लिए जी जान से मेहनत करने को तैयार रहेंगे. शास्त्री सिर्फ एक टेस्ट मैच में भारत के कप्तान रहे जिसमें भारत वेस्टइंडीज के खिलाफ जीता. यह नरेंद्र हिरवानी का पहला टेस्ट मैच था, जिसमें उन्होंने सोलह विकेट लेकर रिकॉर्ड बनाया.

हिरवानी मानते हैं शास्त्री को सर्वश्रेष्ठ कप्तान

हिरवानी का करियर फिर कभी ऐसी ऊंचाइयों तक नहीं पहुंच पाया. कोई आश्चर्य नहीं कि हिरवानी, शास्त्री को सर्वश्रेष्ठ कप्तान मानते हैं और यह भी मानते हैं कि अगर शास्त्री ज्यादा मैचों में कप्तान रहते तो उनका करियर भी बेहतर होता. शास्त्री के नेतृत्व में या उनके साथ घरेलू क्रिकेट में खेले तमाम खिलाड़ी भी मानते हैं कि शास्त्री बेहतरीन कप्तान थे. वह अपनी टीम के खिलाड़ियों को जबर्दस्त प्रोत्साहन देते थे. क्रिकेट की समझ उनकी बहुत अच्छी है और वह आक्रामक कप्तान हैं जो जीत के लिए खेलते हैं, इसलिए वह साथी गेंदबाजों में लोकप्रिय थे.

गेंदबाजों पर पड़ता है कप्तानी की गुणवत्ता का असर

किसी कप्तान का सही आकलन करना हो तो उसके नेतृत्व में खेले हुए गेंदबाजों से पूछना चाहिए. कप्तानी की गुणवत्ता का सीधा असर गेंदबाजों पर ज्यादा पड़ता है, बल्लेबाजों पर कम. क्योंकि कप्तान के फैसले किसी गेंदबाज को सीधे प्रभावित करते हैं. कप्तान किसी गेंदबाज को कैसे इस्तेमाल करता है, उसे कितना प्रोत्साहित करता है और उसे कितनी आजादी देता है. इससे गेंदबाज का प्रदर्शन बहुत हद तक तय होता है. अच्छा कप्तान किसी सामान्य गेंदबाज को प्रभावशाली बना सकता है और खराब कप्तान अच्छे गेंदबाज को बेअसर बना सकता है. गेंदबाजों को शुरू के वर्षों में तराशने और मार्गदर्शन की जरूरत भी होती है.

पटौदी की वजह से बना स्पिन चौकड़ी का आतंक

गेंदबाजों को हमेशा आक्रामक कप्तान पसंद होते हैं. गेंदबाज स्वाभाविक रूप से विकेट निकालना चाहते हैं और आक्रामक कप्तान उन्हें भी आक्रामक गेंदबाजी करने की छूट देते हैं. जो कप्तान नकारात्मक गेंदबाजी चाहते हैं और जरा भी अतिरिक्त रन जाने पर त्योरियां चढ़ा लेते हैं वे गेंदबाजों को पसंद नहीं होते. भारत के श्रेष्ठतम गेंदबाज प्रसन्ना और बेदी इसीलिए नवाब पटौदी को अपना श्रेष्ठतम कप्तान मानते हैं. भारत की स्पिन चौकड़ी का जो आतंक बना था, उसे बनाने में पटौदी का बड़ा योगदान था.

हालांकि नतीजों के रूप में उसका काफी बड़ा फायदा वाडेकर की कप्तानी में मिला. वाडेकर में कई गुण थे, लेकिन वह रक्षात्मक कप्तान थे इसलिए गेंदबाजों को खास पसंद नहीं थे. वैसे भी पटौदी के नेतृत्व में प्रसन्ना और बेदी का जैसा प्रदर्शन था, वैसा बाद में कभी नहीं हो पाया. बेदी की अपनी कप्तानी में भी नहीं.

वैसे जो बात रवि शास्त्री के बारे में सच है वह बात काफी हद तक अनिल कुंबले के बारे में भी सच है. उन्होंने सिर्फ एक चुनौती भरी सीरीज में भारत की कप्तानी की, लेकिन जैसा नेतृत्व उन्होंने किया उससे यह लगता है कि वह बहुत अच्छे कप्तान थे और उन्हें ज्यादा मौके मिलने चाहिए थे.