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संडे स्पेशल: जब सोबर्स की विश्व विजेता वेस्टइंडीज टीम को मिली थी अभ्यास मैच में पारी की हार

कभी-कभी टेस्ट मैचों से ज्यादा यादगार हो जाते थे स्थानीय टीमों के साथ खेले गए मैच, मध्य और पूर्वी क्षेत्र की संयुक्त टीम ने हरा दिया था मेहमान टीम को

Rajendra Dhodapkar

भारतीय क्रिकेट टीम साउथ अफ्रीका में पहले दोनों टेस्ट मैच हार गई है. इस बात पर आम सहमति है कि दोनों टेस्ट खराब बल्लेबाजी की वजह से हारे गए. इस पर भी आम सहमति है कि बल्लेबाजों के नाकाम होने की वजह यह है कि वे टेस्ट मैचों के ठीक पहले साउथ अफ्रीका पहुंचे और इस वजह से वहां की परिस्थितियों में अपने को नहीं ढाल सके. उन्होंने एक भी अभ्यास मैच नहीं खेला जिसे वहां की उछाल और गति वाली पिचों पर बल्लेबाजी करने का उन्हें अभ्यास नहीं हो पाया. इसके लिए बल्लेबाजों को दोष देना गलत होगा. इस तरह की खबरें आ रही हैं कि भारतीय खिलाड़ी चाहते थे कि वे साउथ अफ्रीका दौरे के लिए ठीक से तैयारी करें, लेकिन बोर्ड की दिलचस्पी बेवजह की श्रीलंका के खिलाफ लंबी घरेलू सीरीज में थी. जाहिर है यहां पैसा, खेल पर हावी हो गया.

यूं भी इस तेजी के युग में क्रिकेट के दौरे छोटे होते जा रहे हैं. क्रिकेट एक ऐसे दौर का खेल है जब वक्त इतना कम सप्लाई में नहीं था. लोग चैन से दिनों दिन क्रिकेट खेल और देख सकते थे. शुरुआती दौरे में दौरे लंबे होना जरूरी भी था. तब हवाई जहाज तो होते नहीं थे, पानी के जहाज से हफ्तों या कभी-कभी महीनों लंबी यात्रा के बाद टीमें दूसरे देशों में पहुंचती थीं. इसलिए यह उम्मीद नहीं की जाती थी कि वे जल्दी-जल्दी मैच खेल कर लौट जाएंगी. ऑस्ट्रेलिया की टीम जब इंग्लैंड जाती थी तो महीने भर से ज्यादा लंबी यात्रा के बीच वे लोग श्रीलंका और भारत में रुक कर एकाध अभ्यास मैच भी खेल लेते थे.


स्थानीय टीमों के साथ प्रथम श्रेणी मैच खेलती थीं टीमें

कुछ वर्ष पहले तक खास कर सीमित ओवरों का क्रिकेट शुरू होने के पहले हर दौरे पर कोई भी टीम जितने टेस्ट मैच खेलती थी उससे लगभग दोगुने प्रथम श्रेणी मैच स्थानीय टीमों के साथ खेलती थी. इससे एक ओर विदेशी टीम के सभी सदस्यों को खेलने का मौका मिल जाता था, वहीं अच्छा खासा अभ्यास भी हो जाता था. दूसरी ओर स्थानीय टीमों के सदस्यों को विदेशी टेस्ट खिलाड़ियों के खिलाफ खेलने का मौका मिलता था. और कभी-कभी ये मैच टेस्ट मैचों से ज्यादा यादगार हो जाते थे.

हनुमंत सिंह के नेतृत्व वाली टीम ने रच दिया था इतिहास

ऐसा ही एक मैच वेस्टइंडीज के सन 1966-67 के दौरे पर 26 से 28 नवंबर 1966 को इंदौर में खेला गया था. सोबर्स की वह टीम विश्व विजेता मानी जाती थी. पहले टेस्ट मैच में भारत की हार के बाद एक मैच प्रधानमंत्री एकादश के साथ हुआ और उसके बाद यह मैच मध्य और पूर्वी क्षेत्र की संयुक्त टीमों के खिलाफ था. यह ऐतिहासिक मैच इसलिए था कि भारतीय टीम की तब तक नहीं कर पाई थी वो हनुमंत सिंह के नेतृत्व में इस टीम ने कर दिखाया. इस दौरे पर यह अकेला मैच था जो वेस्टइंडीज हारी थी और वह भी एक इनिंग से.

सुब्रतो गुहा और चुन्नी गोस्वामी ने किया कमाल

भारत की इस जीत का सूत्रधार कोई स्पिनर नहीं, पश्चिम बंगाल के युवा मध्यम तेज गेंदबाज सुब्रतो गुहा थे. गुहा की उम्र तब बीस की थी और उनका साथ दिया पश्चिम बंगाल के ही उनसे वरिष्ठ मध्यम तेज गेंदबाज चुन्नी गोस्वामी ने. भारत के सर्वश्रेष्ठ फुटबॉल खिलाड़ियों में से एक चुन्नी गोस्वामी अच्छे ऑलराउंडर थे जिनके नेतृत्व में बंगाल की टीम एक बार रणजी ट्रॉफी फाइनल में भी पहुंची थी. इन दोनों ने मिलकर वेस्टइंडीज के उन्नीस विकेट सस्ते में उड़ा दिए. गुहा ने ग्यारह और गोस्वामी ने आठ, एक विकेट लेग स्पिनर चंद्रशेखर जोशी को मिला. वेस्टइंडीज की टीम से सोबर्स और ओपनर हंट नहीं खेले.

नेतृत्व की ज़िम्मेदारी तेज गेंदबाज वेस्ली हॉल के कंधे पर थी. बगैर सोबर्स के भी वेस्टइंडीज की टीम बहुत मजबूत थी. बायनो, कन्हाई, सेम्योर नर्स, लॉयड जैसे बल्लेबाज थे. हॉल, ग्रिफिथ और किंग जैसे गेंदबाज थे. संक्षेप में पहली इनिंग में गोस्वामी ने 47 रन पर 5 विकेट लिए और गुहा ने 64 रन देकर 4 विकेट झटके और वेस्टइंडीज को सिर्फ 136 रन पर ऑल आउट कर दिया. इसके पहले गुहा ने संयुक्त विश्वविद्यालय की टीम से खेलते हुए भी वेस्टइंडीज टीम के ख़िलाफ अच्छा प्रदर्शन किया था. जवाब में पूर्वी क्षेत्र और मध्य क्षेत्र की संयुक्त टीम ने 283 रन बनाए, जिसमें गोस्वामी ने 25 और गुहा ने 46 रन बनाए. वेस्टइंडीज की दूसरी इनिंग और भी बुरी रही. सारी टीम सिर्फ 103 रन पर आउट हो गई. गुहा ने 49 रन पर 7 विकेट लिए और बाकी तीन विकेट गोस्वामी को मिले.

हार के बाद सोबर्स को आया गुस्सा

इस हार के बाद सोबर्स को इतना ग़ुस्सा आया कि वह बल्ला लेकर बिना पैड्स और ग्लवज के मैदान पर आए और प्रैक्टिस पिच पर अपने सारे गेंदबाज़ों को गेंद डालने के लिए कहा. प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि उन्होंने तमाम गेंदबाजों की गेंदों की जमकर धुनाई की. स्वाभाविक था कि इस मैच की बहुत चर्चा होती. गुहा घरेलू मैचों में लगातार अच्छा प्रदर्शन कर ही रहे थे, लेकिन इस मैच के बाद वह हीरो बन गए. वह वेस्टइंडीज के इस दौरे के आखिरी मैच में भी बोर्ड अध्यक्ष एकादश टीम से खेले.

गोस्वामी तो कभी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट नहीं खेल पाए, गुहा को अगले साल इंग्लैंड दौरे के लिए चुना गया. वह एक टेस्ट भी खेले, लेकिन उनका प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा. उनका अंतरराष्ट्रीय करियर कुल चार टेस्ट मैचों तक सीमित रहा, जिसमें उन्होंने तीन विकेट लिए. घरेलू क्रिकेट में अलबत्ता वह बहुत कामयाब गेंदबाज थे, जिन्होंने रणजी ट्रॉफी में 14.61 की औसत से 209 विकेट लिए. बहरहाल, इंदौर की वह हार वेस्टइंडीज की उस महान टीम के सदस्य कभी नहीं भूले होंगे.