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संडे स्‍पेशल: आज तक नहीं भर पाई कपिल देव की जगह, भारतीय टीम की तलाश जारी

संतुलन बनाने के लिए हर टीम की इच्छा यह होती है कि छठे नंबर पर ऐसा ऑलराउंडर मिल जाए जो बल्लेबाजी भी अच्छी कर सके और गेंदबाजी भी

Rajendra Dhodapkar

क्रिकेट टीम में ग्यारह खिलाड़ी होते हैं , एक और ग्यारह के ठीक बीच का अंक है छह. क्रिकेट टीम में सबसे कम चर्चा उस खिलाड़ी की होती है जो छठे क्रम पर बल्लेबाजी करता है. पहले पांंच खिलाड़ी टीम के स्टार बल्लेबाज होते हैं , नीचे के क्रम में वे गेंदबाज होते हैं जिनसे बीस विकेट निकालने की उम्मीद होती है, छठे क्रम पर ऐसा खिलाड़ी होता है जिससे न तो पांंच विकेट लेने की उम्मीद होती है न ही उससे शतक बनाने की कोई अपेक्षा करता है या तो यह जगह विकेटकीपर के लिए सुरक्षित होती है या कथित ऑलराउंडर के लिए.

कभी कभी जब टीम रक्षात्मक मोड़ में होती है तो वह छह बल्‍लेबाजों को खिला लेती है और एक गेंदबाज को कम कर देती है. वह बीस विकेट लेने का लक्ष्य छोड़कर ज्यादा से ज्यादा रन बनाने का रवैया अपनाती है ताकि हार से बचा जा सके.


भारतीय टीम अक्सर इसी तरह अपना क्रिकेट खेली है. संतुलन बनाने के लिए हर टीम की इच्छा यह होती है कि छठे नंबर पर ऐसा ऑलराउंडर मिल जाए जो बल्लेबाजी भी अच्छी कर सके और गेंदबाजी भी. ऐसे ऑलराउंडर का आदर्श रूप सर गैरी सोबर्स थे. उनसे जरा नीचे कीथ मिलर, इमरान खान, कपिल देव वगैरह आते हैं, लेकिन इस स्तर के ऑलराउंडर भी कभी कभी नसीब होते हैं.  ये लोग कितने महत्वपूर्ण थे इसका अंदाजा इसी बात से लगाता जा सकता है कि भारत में हर नए ऑलराउंडर में कपिल देव को खोजने की कोशिश होती है. अगर हम याद करें तो पिछले पचीस तीस सालों में दस पंद्रह तो ऐसे खिलाडी आए ही होंगे, जिनके बारे में एक उम्मीदवार सवाल पूछा गया कि क्या यह खिलाडी अगला कपिल देव साबित होगा और आज तक तो ऐसा हुआ नहीं.

सबसे नए उम्मीदवार हार्दिक पांड्या हैं जिनकी ओर हसरत भरी निगाह से देखा जा रहा है, यहांं तक कि माइकल होल्डिंग्स ने ऐसी टिप्पणी कर दी कि वे कपिल देव के मुकाबले नहीं ठहरते तो उनकी घनघोर आलोचना भारतीय क्रिकेट प्रेमियों ने कर दी. वास्तविकता यह है कि कम से कम अभी पांड्या कपिल देव के मुकाबले कहीं नहीं हैं. कपिल के शुरुआती करियर और पांड्या के शुरुआती करियर की तुलना करने से यह साफ हो जाएगा. इसका अर्थ यह नहीं कि पांड्या से भविष्य में भी उम्मीद नहीं है.

कई खिलाड़ियों का करियर वक्त के साथ निखरता गया. जहाँ कपिल का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन उनके करियर के पूर्वार्ध में है वहीं उनके समकालीन इमरान खान ने शुरुआत एक ठीक ठाक ऑलराउंडर की तरह की और वे वक्त के साथ निखरते गए.  इमरान का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन उनके करियर के अंत में है. अगर सोबर्स के बाद सर्वश्रेष्ठ ऑलराउंडर चुनना हो तो मुकाबला मिलर और इमरान के बीच होगा. आंंकड़ों के हिसाब से जैक कैलिस इन दोनों से बेहतर हो सकते हैं, लेकिन टीम के प्रदर्शन पर अपने असर के लिहाज से ये तीन सबसे ऊपर हैं. सर डॉन ब्रैडमैन की राय इस मायने में बिल्कुल अलग थी.  उनका मानना था कि टीम में पांंच शुद्ध बल्लेबाज हों और पाँच गेंदबाज, छठा विकेटकीपर हो, जो सिर्फ विकेटकीपिंग के आधार पर चुना जाए. वह बल्लेबाजी करे यह जरूरी नहीं. इसलिए ब्रैडमैन के पसंदीदा विकेटकीपर डॉन टैलोन थे, जो विकेटकीपर बहुत उमदा थे. बल्लेबाजी उनके बस का काम नहीं था. उनका मानना था कि अगर ऊपरी क्रम के पांंच बल्लेबाज रन न बना पाएंं तो छठे बल्लेबाज से क्या उम्मीद करना? खैर , यह ब्रैडमैन और उनकी टीम की बात है. आम टीमों का मामला अलग होता है.

जिसे लोअर मिडिल ऑर्डर कहते हैं , वहांं खेलना एक अलग तरह का कौशल होता है. जिन टीमों के पास इस क्रम पर एक या दो अच्छे खिलाड़ी होते हैं वे भाग्यशाली होती हैं. यह क्रम टीम की धुरी होता है. यहांं खेलने वाले बल्लेबाज में हर परिस्थिति के हिसाब से अपने को ढालने की क्षमता होनी चाहिए. अगर ऊपर के बल्लेबाजों ने अच्छे रन बनाए हैं तो उसे तेजी से रन बनाकर स्थिति को और बेहतर बनाना होता है. अगर ऊपर की बल्लेबाजी ढह गई है तो निचले क्रम के खिलाड़ियों के साथ खेलकर टीम की स्थिति सुधारनी होती है. निचले क्रम के खिलाड़ियों के साथ खेलना एक अलग कि‍स्म का कौशल है.

दुनिया की तमाम अच्छी टीमों में ऐसे खिलाड़ियों की मौजूदगी जरूर थी. सोबर्स की टीम में खुद सोबर्स थे , लॉयड की टीम में लैरी गोम्स थे जो बहुत भरोसेमंद थे. ऑस्ट्रेलिया की टीम में माइकल बेवन और माइकल हसी का योगदान बहुमूल्य था बल्कि वे निचले मध्य क्रम के आदर्श बल्लेबाज थे. पांंचवे छठे या सातवें क्रम पर खेलने वाले बल्लेबाजों के नाम बहुत सारे शतक नहीं होते , क्योंकि उन्हें शतक बनाने के इतने मौके नहीं मिलते. सोबर्स या धोनी जैसे अपवादों को छोड़कर अक्सर वे वैसे स्टार भी नहीं होते, जैसे ऊपरी क्रम के बल्लेबाज होते हैं,लेकिन उनका योगदान बहुत बडा होता है. भारत की पिछले कुछ वक्त से बडी कमजोरी लोअर मिडिल ऑर्डर है. कुछ वक्त पहले धोनी यह जि‍म्मेदारी निभाते थे. धोनी अब टेस्ट टीम में नहीं हैं और सीमित ओवरों में भी वे पहले वाले धोनी नहीं रहे. खासकर एक दिवसीय क्रिकेट में यह कमी भारतीय टीम की सबसे बडी कमजोरी बनती दिख रही है.