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संडे स्पेशल : शुक्र है कि अब नहीं होते उस तरह के टेस्ट मैच

अब टेस्ट मैच के एक दिन में बन जाते हैं 400 रन, तब ये सोचा भी नहीं जा सकता था

Rajendra Dhodapkar

श्रीलंका के खिलाफ पहले टेस्ट मैच के पहले दिन भारत ने 399 रन  बनाए. यह शिखर धवन की ताबड़तोड़ बल्लेबाजी की वजह से हुआ अजूबा था. लेकिन इन दिनों टेस्ट मैच में एक दिन में तीन सौ के आसपास रन बनना आम बात है. यह हम जैसे पुराने क्रिकेट दर्शकों के लिए बहुत बड़ी राहत है, जिन्होंने क्रिकेट देखना उस दौर में शुरू किया था, जिसे क्रिकेट का सबसे उबाऊ दौर कहा जा सकता है.

वह दौर, जब टेस्ट क्रिकेट की लोकप्रियता तेजी से गिरने लगी थी. क्रिकेट को इस उबाऊ दौर से निकाला एकदिवसीय क्रिकेट ने और इसकी वजह से टेस्ट क्रिकेट भी बेहतर और तेज हुआ है. नए जमाने के लोग उस दौर की कल्पना नहीं कर सकते जिसमें एक दिन में दो सौ रन बनना मुहाल होता था. 


यह दौर शुरू हुआ था पचास के दशक में और धीमा क्रिकेट खेलने का यह रिवाज अंग्रेजों ने शुरू किया था. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद क्रिकेट कुछ ज्यादा पेशेवर हो गया था और ऐसे कप्तान आ गए जो हार से बचने के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे.

इंग्लैंड में चल रहे रोजाना काउंटी क्रिकेट ने खिलाड़ियों की ऐसी पीढ़ी तैयार कर दी जिनके खेल में रोमांच या मजे का तत्व बिल्कुल नहीं था, जो लगभग नौकरी की तरह क्रिकेट खेलते थे. अंग्रेजों के इस रिवाज का अनुकरण बाकी टीमें भी करने लगीं और टेस्ट क्रिकेट उबाऊ से और उबाऊ होता गया. साठ के दस दशक में वेस्टइंडीज और ऑस्ट्रेलिया की टीमों ने माहौल कुछ बदला. लेकिन असली बदलाव तो एकदिवसीय क्रिकेट के आने के बाद ही हुआ.

प्रति सौ गेंद बने थे 23 रन 

सन 1958 में ऑस्ट्रेलिया का दौरा करने वाली अंग्रेज टीम एक ऐसी टीम थी जिसके खराब प्रदर्शन की तो आलोचना होती ही है, उसकी मंदगति बल्लेबाजी की भी उस दौर में बड़ी खिंचाई हुई. दरअसल यह अंग्रेज टीम कागजों पर बहुत मजबूत लग रही थी और बड़े गाजे-बाजे के साथ ऑस्ट्रेलिया पहुंची थी लेकिन पहले टेस्ट मैच से ही वह बिखरने लगी. पहला टेस्ट मैच वे आठ विकेट से हारे जिसमें ज्यादा आलोचना इस बात की हुई कि अंग्रेजों ने तेईस रन प्रति सौ गेंदों के हिसाब से बनाए. ट्रैवर बैली ने दूसरी इनिंग्ज में साढ़े सात घंटे में 68 रन बनाए और खेल के आखिरी दो दिनों में दर्शक नदारद थे.

बापू नादकर्णी की कंजूस गेंदबाजी

बहरहाल इस सिलसिले में एक खिलाड़ी का सम्मान से जिक्र करना होगा, जिन्होंने विपक्षी टीमों के लिए रन बनाना  मुश्किल कर दिया था. ये थे भारत के ऑलराउंडर बापू नादकर्णी, जिनकी खासियत थी लगातार मेडन ओवर डालते रहना. नादकर्णी ने अपने टेस्ट करियर में औसतन प्रति ओवर 1.62  रन दिए हैं. 1962 में भारत आई पाकिस्तानी टीम के खिलाफ दो टेस्ट मैचों में उनके आंकड़े 32-24-23-0 और 34-24-24 -1 थे.

बापू नादकर्णी.

उनके सर्वश्रेष्ठ आंकड़े हालांकि इंग्लैंड के खिलाफ 1964 में पहले टेस्ट में थे 32-27-5-0. इस मैच मे इंग्लैंड ने मैच ड्रॉ करने के लिए भीषण धीमी गेंदबाजी की थी. इसी इनिंग्ज में बापू नादकर्णी ने लगातार 21 मेडन ओवर डाले थे. दिलचस्प यह है कि जब बाइसवें ओवर में एक रन बना तो उन्हें कप्तान ने हटा दिया.

सबसे उबाऊ सीरीज

मेरी याददाश्त में सबसे उबाऊ सीरीज भारत में इंग्लैंड के सन 1976-77 के दौरे की है. हालांकि इस सीरीज में एक ही टेस्ट ड्रॉ हुआ और इंग्लैंड ने भारत को 3-1 से हराया. लेकिन इस सीरीज में दोनों ही टीमों ने बहुत धीमी बल्लेबाजी की, बल्कि भारत की बल्लेबाजी ज्यादा बुरी थी. इसीलिए हम तीन टेस्ट हारे. अक्सर इस सीरीज में प्रति ओवर लगभग दो रन के हिसाब से बल्कि कभी-कभी इससे भी काफी कम गति से रन बने. दोनों टीमें दिन भर में अमूमन डेढ़ सौ से दो सौ रन तक घिसटती रही, हालांकि भारतीय दर्शक पूरे जोशोखरोश के साथ स्टेडियम में हाजिरी देते रहे.

भारत के कप्तान बिशन सिंह बेदी और इंग्लैंड के कप्तान टोनी ग्रेग थे. भारत की बल्लेबाजी इस सीरीज मे बुरी तरह फ्लॉप रही, भारतीय बल्लेबाजी के आधार स्तंभ सुनील गावस्कर और जीआर विश्वनाथ दोनों ही आउट ऑफ फॉर्म थे. गावस्कर सिर्फ आखिरी ड्रॉ टेस्ट में एक शतक लगा सके. लेकिन विश्वनाथ दस इनिंग्ज में सिर्फ एक बार पचास का आंकड़ा ही पार कर सके. ओपनर अंशुमान गायकवाड भी पांचों टेस्ट खेले लेकिन उनका बल्लेबाजी औसत उन्नीस रन था.

बृजेश पटेल पांचों टेस्ट खेले और एक बार ही पचास के पार पहुंचे, बल्कि सबसे आकर्षक और प्रभावशाली प्रदर्शन आखिर के दो टेस्ट के लिए आए सुरिंदर अमरनाथ का था. बाकी  दिलीप वेंगसरकर, मोहिंदर अमरनाथ, पार्थसारथी शर्मा, यजुवेंद्र सिंह, अशोक मांकड आते जाते रहे. इतने सारे बल्लेबाजों को आजमाया गया. इसी से पता चलता है कि भारतीय बल्लेबाजी की क्या हालत थी. यह भी दिलचस्प है कि सीरीज के सबसे सफल गेंदबाज अंग्रेज स्पिनर डैरेक अंडरवुड थे, जिनके बारे में मशहूर था कि वे सिर्फ इंग्लैंड में चलते हैं.

वेसलीन प्रकरण इसी सीरीज की देन थी

इस सीरीज में सबसे रोमांचक और दिलचस्प प्रसंग यह था कि कप्तान बेदी ने अंग्रेज तेज गेंदबाज पीटर लीवर पर गेंद को चमकाने के लिए वेसलीन लगाने का आरोप लगाया. पीटर लीवर माथे पर जो पट्टी बांधते थे, उस पर वेसलीन लगा रखते थे. उस जमाने में ऐसा आरोप लगाना बडा साहस का काम था क्योंकि यह माना जाता था कि गोरे खिलाड़ी या अंपायर बेईमानी नहीं कर सकते.

उस दौर के टेस्ट क्रिकेट का यही हाल था इसलिए आप समझ सकते हैं कि आजकल एक दिन में 399 रन बनते देख पाना कितनी बड़ी नियामत है.