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संडे स्पेशल: ...और ये गेंद को हुक कर दिया है...

क्रिकेट में आक्रामकता की निशानी रहा है हुक शॉट

Rajendra Dhodapkar

क्रिकेट के तमाम शॉट अपनी अपनी तरह से आकर्षक होते हैं. लेकिन उनमें हुक का अपना ही रोमांच है. तेज गेंदबाज  बाउंसर फेंक कर बल्लेबाज के कौशल और उससे भी ज्यादा साहस को चुनौती देता है. बल्लेबाज उस चुनौती को स्वीकार कर के गेंद को सीमापार पहुंचाने की कोशिश करता है. इस वजह से हुक को लेकर जितने किस्से क्रिकेट में हैं उतने शायद ही किसी और शॉट को लेकर होंगे. वीरेंद्र सहवाग, सचिन और शोएब अख़्तर का ‘बाप, बाप होता है; वाला किस्सा तो काफी मशहूर है. इसलिए दोहराने की जरूरत नहीं है.

मेरा बहुत प्रिय किस्सा वह है, जो महान पत्रकार और मेरे संपादक प्रभाष जोशी ने सुनाया था. सन 1984 की वेस्ट इंडीज-भारत सीरीज में सुनील गावस्कर बुरी तरह असफल हो रहे थे. वेस्ट इंडीज के चारों तेज गेंदबाज़ खासकर मैलकम मार्शल, सुनील गावस्कर के शरीर पर तेज गेंदें फेंकने की रणनीति अपनाए हुए थे. रणनीति कामयाब हो रही थी. कानपुर टेस्ट में तो मार्शल की गेंद झेलते हुए गावस्कर के हाथ से बल्ला छूट गया था.


कहते हैं गावस्कर का आत्मविश्वास इस हालत में पहुंच गया था कि उन्होंने कप्तान कपिलदेव से कहा कि वे मध्यक्रम में बल्लेबाजी करना चाहते हैं. तब कपिल और गावस्कर के संबंध भी ठीक नहीं थे. कपिल ने उन्हें जवाब दिया कि उन्हें सलामी बल्लेबाज की हैसियत से टीम में रखा गया है.अगर उन्हें मध्यक्रम में खेलना है तो उन्हें ऐसा लिख कर देना होगा.

दिल्ली टेस्ट की पूर्व संध्या पर प्रभाषजी गावस्कर से मिलने पहुंचे. गावस्कर मानसिक रूप से  बहुत टूटे हुए लग रहे थे. उन्होंने प्रभाष जी से कहा - मेरी स्थिति बहुत खराब है. हो सकता है कल मैं टीम में न होऊं या हो सकता है कि यह मेरा आखिरी टेस्ट मैच हो. वेस्ट इंडीज के गेंदबाज मुझे निशाना बनाए हुए हैं और मार्शल को सिर्फ एक काम सौंपा गया है कि वह मुझे आउट करे. गावस्कर उस शाम अपने करियर के निम्नतम बिंदु पर थे.

अगली सुबह गावस्कर फिरोजशाह कोटला पर ओपन करने उतरे और लंच तक उन्होंने इतिहास रच दिया. लंच पर वे 96 रन पर नाबाद थे और लंच के बाद शतक पूरा कर लिया. उस दिन लोगों ने गावस्कर का एक अलग ही रूप देखा. हुक शॉट को गावस्कर ने अपने करियर की शुरुआत में ही छोड़ दिया था।

उस दिन उन्होंने मार्शल के पहले ओवर की दूसरी ही गेंद पर हुक कर के चौका जड़ दिया. उसके बाद हुक, पुल, कट,  ड्राइव, तमाम आक्रामक शॉटों की झड़ी लगा दी. कुछ ही घंटों में वे करियर के निम्नतम बिंदु से सर्वोच्च शिखर पर पहुँच गए थे.

वह दौर था, जब आज की तरह यह नियम नहीं था कि एक ओवर में कितने बाउंसर फेंके जा सकते हैं. उस दौर में वेस्ट इंडीज के तेज गेंदबाजों ने अंग्रेज बल्लेबाजों की वह गत बनाई कि अंग्रेजों ने मुहिम चलाकर एक ओवर में सिर्फ दो बाउंसर का नियम बनवा दिया.

वेस्टइंडीज और अंग्रेजों की दुश्मनी एक अलग अध्याय का विषय है. जब अंग्रेज यह मुहिम चला रहे थे, तब महान गैरी सोबर्स ने कहा था कि अंग्रेज बल्लेबाज बाउंसर के क्यों खिलाफ हैं, समझ में नहीं आता, क्योंकि यह तो ऐसी गेंद होती है, जिस पर चौका या छक्का जड़ा जा सकता है. अपना-अपना नजरिया है.

ऐसा नहीं कि सारे अंग्रेज बल्लेबाज ही बाउंसर से डरते थे. पचास के दशक के अंग्रेज तेज गेंदबाज आल्फ गोवर ने एक किस्सा लिखा है. गोवर को प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलते हुए कुछ ही दिन हुए थे. उनका एक मैच उस काउंटी से था, जिससे तब के नामी बल्लेबाज पैट्सी हैंड्रेन खेलते थे. हैंड्रेन की उम्र तब बयालिस साल थी और वे टेस्ट क्रिकेट से बाहर हो चुके थे.

मैच के शुरू  होने के पहले हैंड्रेन, गोवर से मिले और पूछा - तो तुम वह नए तेज गेंदबाज हो. गोवर ने हामी भरी. हैंड्रेन ने कहा - देखो भाई, मेरी उम्र हो गई है और मेरा खेल वैसा नहीं रह गया है. इसलिए मेहरबानी कर के मुझे शॉर्ट पिच गेंद मत फेंकना. मन ही मन खुश होते हुए गोवर लौटे. जैसे ही हैंड्रेन बल्लेबाजी करने आए, पहली ही गेंद पटक कर शॉर्ट पिच फेंकी।

हैंड्रेन ने उस पर चौका जड़ दिया. गोवर ने सोचा कि उन्होंने घबरा कर हड़बड़ी में बल्ला चलाया और गेंद गलती से सीमापार हुई है. उन्होंने अगली दो-तीन गेंदें भी शॉर्ट फेंकी और उनका भी वही हश्र हुआ. तब गोवर के कप्तान उनके पास आकर चिल्लाए- यह क्या कर रहे हो. वह इंग्लैंड में शॉर्ट गेंदबाजी का सबसे अच्छा बल्लेबाज है.

उसी दौर के अंग्रेज बल्लेबाज बिल एड्रिच की ख्याति भी हुक करने के लिए थी. किसी ने एड्रिच से पूछा कि अच्छा हुक करने का तरीका क्या है? एड्रिच ने जवाब दिया कि अच्छी तरह हुक करने के लिए जरूरी है कि ऐसी स्थिति में आया जाए कि गेंद ठीक दोनों आंखों के बीच आए. इसके दो फायदे हैं. एक यह कि गेंद सही नजर आती है. दूसरा यह कि आपको उसे मारना ही पड़ता है.  वरना वह आपका सिर तोड़ देगी. वह हेल्मेट वाला जमाना नहीं था और कहते हैं कि एड्रिच के सिर पर कई बार गेंद लगी थी.

बिल एड्रिच और लेन हटन.

मेरी व्यक्तिगत स्मृति एक रणजी ट्रॉफी मैच की है, जो दिल्ली और मुंबई के बीच फिरोजशाह कोटला पर शायद 25-26 साल पहले खेला गया था. मैं आखिरी दिन का खेल देखने पहुंचा. तब युवा सचिन तेंदुलकर शायद साठ के आसपास स्कोर पर बल्लेबाजी कर रहे थे. कुछ देर बाद नई गेंद ली गई. तभी तेज गेंदबाज अतुल वासन की दूसरे बल्लेबाज चंद्रकांत पंडित से कुछ कहा-सुनी हो गई.

मनिंदर सिंह ने बार-बार वासन को समझाने की कोशिश की कि राष्ट्रीय चयनकर्ता मैच देख रहे हैं, इसलिए वे खुद पर काबू रखें. लेकिन वासन नहीं माने. पंडित ने तेंदुलकर को भी बताया कि क्या झगड़ा है. गुस्से में वासन ने नई गेंद से तेंदुलकर पर बाउंसर की बौछार कर दी. तेंदुलकर ने उतने ही आक्रामक अंदाज में जवाब दिया. कुछ जबरदस्त हुक शॉट थे. इससे तेंदुलकर का शतक जल्दी से पूरा हो गया. जहां तक याद पड़ता है वासन को भारतीय टीम के लिए नहीं चुना गया.