view all

संडे स्पेशल: क्रिकेट के मैदान के बाहर उसूलों की जंग लड़ते थे लाला अमरनाथ

तमाम साजिशें सहने के बावजूद देश के चहेते क्रिकेटर बने लाला अमरनाथ की कहानी

Rajendra Dhodapkar

खेल के मैदान में जो संघर्ष होता है वह कोई व्यापक दुनिया से कटा हुआ नहीं होता, उसमें बाहरी दुनिया की तमाम आहटें मौजूद होती हैं. इसीलिए वह खिलाड़ी तो बड़ा होता ही है जो खेल के मैदान में बडा प्रदर्शन करता है लेकिन वास्तव में महान खेल व्यक्तित्व वे होते हैं जिनके खेल में और आचरण में मैदान के बाहर की दुनिया को भी प्रभावित करने का माद्दा होता है .

कई बार चुकाई उसूलों की लड़ाई की कीमत


लाला अमरनाथ को भारतीय क्रिकेट में इतनी इज्जत के साथ याद किया जाता है वह सिर्फ उनके रन या विकेटों के लिए नहीं हैं. लाला अमरनाथ एक जुझारू क्रिकेटर और इन्सान थे जो अपने उसूलों के लिए लड़ सकते थे. और उन्हें अक्सर इसकी कीमत भी चुकाने पड़ी. ये उसूल लाला जी ने किताबों से हासिल नही किए थे, वे उनके खून में थे. हम जानते हैं कि खेल के सत्ता प्रतिष्ठान से टकराने वाले खिलाड़ियों को कितनी बड़ी कीमत चुकाना पड़ती है, लाला बार बार लड़ते रहे और यह कीमत चुकाते रहे.

खेल में लाला की लड़ाई सिर्फ एक साधारण से लगने वाले मुद्दे पर थी कि खेल में खिलाड़ी की सामाजिक, आर्थिक या राजनैतिक हैसियत नहीं, उसका हुनर और दमखम को महत्व मिलना चाहिए , और हर खिलाड़ी को उसका जायज सम्मान मिलना चाहिए . लाला अक्सर इस बात को अपने पंजाबी अंदाज में ,कुछ गालियों के साथ दम ठोक कर कहते थे और खेल चलाने वाले बड़े लोगों को यह नागवार गुजरता था कि एक औसत आर्थिक हैसियत का यह खिलाड़ी उन्हें चुनौती दे रहा है . जो लोग हेकड़ी से यह कहते थे कि उन्होंने इस खिलाड़ी को "गटर से उठा कर " यहां पहुँचाया , उन्हें लाला ने पटखनी देकर यह समझा दिया कि वे जो कुछ हैं अपनी योग्यता से हैं .

लाला अमरनाथ के बल्ले से निकला था भारत का पहला टेस्ट शतक

लाला कपूरथला में पैदा हुए थे. काफी छोटी उम्र से उन्होंने अपने खेल से लोगों का ध्यान खींचा था .सन् 1933-34 में आई अंग्रेज टीम के खिलाफ उन्होंने शतक बनाया और उन्हे टेस्ट टीम में चुन लिया गया. अपने पहले ही टेस्ट मैच में उन्होंने  शतक लगाया जो भारत की ओर से लगाया गया पहला टेस्ट शतक था . मजबूत अंग्रेजी गेंदबाजी के खिलाफ उन्होंने दूसरी इनिंग में 117 मिनट में शतक लगाया और वह देश के हीरो हो गए .

सन 1936 में इंग्लैंड के दौरे पर गई भारतीय टीम बहुत मजबूत थी , मर्चेंट, मुश्ताक़, सीके  नायडू, निसार मोहम्मद, अमरसिंह और लाला अमरनाथ जैसे खिलाड़ियों वाली यह टीम अगर बहुत कामयाब नहीं हुई और विवादों में उलझ गई तो इसकी वजह यह थी कि उस टीम के कप्तान महाराजा विजयनगरम उर्फ विज्जी थे . विज्जी खिलाड़ी के तौर पर शायद क्लब स्तर के खिलाड़ी भी नहीं थे ,लेकिन बड़े और रसूखदार आदमी होने की वजह से वे टेस्ट टीम के कप्तान थे . वे जानते थे कि खिलाड़ी और कप्तान के तौर पर उनका कोई अच्छा प्रभाव टीम पर नहीं है इसलिए वे अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए षड्यंत्र और फूट डालने की राजनीति का सहारा लेते थे जिसमें उनके मददगार टीम मैनेजर मेजर ब्रिटैन जोन्स हुआ करते थे .

जैसा उन्होंने बका जिलानी से कहा कि अगर वे सीके नायडू को जलील कर दें तो वे उन्हें टेस्ट खिला देंगे . बका जिलानी ने सुबह नाश्ते की मेज पर सबके सामने नायडू को बुरा भला कहा और टेस्ट खेल गए . उनका एक और षड्यंत्र यह था कि टीम की सलामी जोड़ी में फूट डालने के लिए उन्होंने मुश्ताक अली से कहा कि वे अगर मर्चेंट को रनआउट करवा देंगे तो वे उन्हें सोने की एक घड़ी देंगे . इसके अलावा दोनों के बीच धर्म के आधार पर भी  शक पैदा करने की उन्होंने कोशिश की . मर्चेंट और मुश्ताक ने आपस में बात की और तय किया कि कुछ भी हो रन आउट नहीं होना है और पहले विकेट के लिए ढाई घंटे में 203 रन की भागीदारी करके कप्तान के षड्यंत्र का जवाब दिया .

कप्तान ने परेशान किया लेकिन देश के चहेते बने लाला अमरनाथ

विज्जी कप्तान भी बहुत खराब थे और लाला की उनसे कुछ अनबन होती रहती थी, और वे भी दुष्ट बॉस की तरह लाला को परेशान करते रहते थे, लेकिन एक मैच मे जब लाला सुबह से पैड बांधकर बैठे थे तो वे अन्य खिलाड़ियों को बल्लेबाजी के लिए भेजते रहे. आखिरकार उन्होंने लाला को बल्लेबाजी के लिए तब भेजा जब दिन का खेल खत्म होने को ही था. लाला जब खेल खत्म होने के बाद पैवेलियन लौटे तो उन्होंने ठेठ पंजाबी में कप्तान और मैनेजर को सुना दिया. दोनों को बात तो समझ में नहीं आई लेकिन भाव समझ में आ गया. लाला को तुरंत भारत लौटने का फरमान सुना दिया गया .

उस जमाने में यात्रा पानी के जहाज से होती थी जिसमें कई दिन लगते थे . लाला को यह लग रहा था एक राजा और एक अंग्रेज अफसर के खिलाफ उनके विद्रोह से उनका क्रिकेट करियर खत्म हो गया .

उन्हें मालुम नहीं था कि देश  की जनता में इस फैसले के खिलाफ कितना गुस्सा है और उनके समर्थन में सारा देश है . जब उनका जहाज मुंबई पहुंचा तो हजारों लोग उनके स्वागत के लिए मौजूद थे .

तब भारतीय क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष बड़े नवाब इफ़्तिख़ार अली खान पटौदी थे . वे और बाकी पदाधिकारी यह मानते थे कि लाला के साथ अन्याय हुआ है और यह फैसला किया गया कि एक औपचारिक माफीनामा लिखवा कर लाला को फिर इंग्लैंड भेज दिया जाए . विज्जी और मेजर ब्रिटैनजोन्स ने इसे इज्जत का मामला बना दिया और वाइसरॉय तक की सिफारिश लगा दी . लाला को वापस खेलने तो नहीं भेजा जा सका लेकिन टीम के लौटने के बाद एक जांच कमेटी बनाई गई जिसने यह निष्कर्ष निकाला कि कप्तान और मैनेजर की भूमिका बहुत खराब थी .

ब्रैडमैन भी थे लाला अमरनाथ के मुरीद

इसके बाद दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट बंद ही हो गया इसलिए लाला को अगले टेस्ट खेलने के लिए ग्यारह साल इंतज़ार करना पड़ा. जब क्रिकेट शुरु हुआ तो लाला भारतीय टीम के कप्तान बने. ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर ब्रैडमैन की विश्व विजेता टीम में भारतीय टीम को बुरी तरह हराया लेकिन इस दौरे ने ब्रैडमैन को लाला का प्रशसंक बना दिया. उसके बाद वेस्टइंडीज़ की टीम भारत का दौरा करने आई तो लाला की फिर क्रिकेट के प्रशासन से झड़प हुई . लाला की शिकायत थी कि मेहमान टीम की तो अच्छी आवभगत हो रही है लेकिन घरेलू टीम को घटिया होटलों में ठहराया जा रहा है और जरूरी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं. तब बोर्ड के सचिव एंटनी डिमेलो ने लाला पर तमाम किस्म के आरोप लगाते हुए उन्हें बर्खास्त कर दिया . बाद में डिमेलो के खिलाफ जांच हुई और उन्हें पद छोड़ना पड़ा .

लाला बहुत जुझारू और आकर्षक बल्लेबाज थे जिनका कवर ड्राइव लाजवाब था. वे अच्छे स्विंग गेंदबाज थे जिनकी गेंदबाजी का लोहा उनके दौर के बड़े बल्लेबाज मानते थे . लेकिन हम लोग जिन्होंने लाला को खेलते हुए नहीं देखा वे लाला को क्रिकेट उनके  कमाल के ज्ञान और समझ के लिए जानते थे . कमेंट्री करते वक्त वे खेल का जैसा विश्लेषण करते थे वैसा शायद ही कोई कर सके. पिच को समझने की उनकी काबिलियत अनोखी थी और खेल की रणनीति का उनका ज्ञान लाजवाब. उनके रणकौशल की तमाम कहानियां मशहूर हैं. नए प्रतिभावान खिलाड़ियों की परख भी उन्हें बहुत थी और वे इन तमाम वजहों से वे अच्छे कोच, मैनेजर और चयनकर्ता साबित हुए. लेकिन अपने निष्पक्ष, मुंहफट और बेलाग मिजाज की वजह से  उनकी दुश्मनियां भी बहुत हुईं जिनका खामियाजा उन्हे और उनके बेटों को उठाना पड़ा . इस मायने में लाला ने भारतीय क्रिकेट और समाज को जो कुछ दिया वह रनों और विकेटों से बहुत ज्यादा है, वह एक जज्बा है जो जिंदगी और खेल को साहस और सच्चाई से जीने से मिलता है .