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Sunday Special: भारत से मिली एक हार ने वेस्टइंडीज और लॉयड को दी थी जीत की सबसे कामयाब रणनीति!

भारत से मिली एक बड़ी हार की वजह से लॉयड का स्पिन गेंदबाजी से भरोसा उठ गया और उनके रहते फिर टीम में कोई स्पिन गेंदबाज नहीं आया

Rajendra Dhodapkar

अभी वेस्टइंडीज की टीम भारत में है और यह टीम वेस्टइंडीज की पुरानी टीमों की छाया भी नहीं है. वेस्टइंडीज के पतन पर बहुत कुछ लिखा और बोला गया है. वेस्टइंडीज़ के पुराने दिग्गज आजकल कमेंट्री करते हुए दिख जाते हैं या कहें उनके बयान पढ़ने को मिलते हैं. स्वाभाविक है कि वे लोग साफ-साफ यह नहीं कहते कि वेस्टइंडीज क्रिकेट का पतन हो गया है और मौजूदा टीम बहुत कमजोर है , लेकिन उनकी बातों के पीछे से यह भाव झांकता जरूर है.

वेस्टइंडीज ने खो दी है अपनी पहचान


वेस्टइंडीज का क्रिकेट दो बातों के लिए जाना जाता था, धुआंधार बल्लेबाजी और उतनी ही धुआंधार तेज गेंदबाजी. बहुत शुरुआत से ही वेस्टइंडियन क्रिकेट की ये दो पहचानें रही हैं. स्पिन गेंदबाजी से वेस्टइंडीज का कोई खास रिश्ता नहीं रहा. एक दौर में सोनी रामाधीन और आल्फ वैलेंटाइन ने तहलका मचाया था लेकिन वह बहुत कम वक्त के लिए.

सोबर्स

वेस्टइंडीज से निकले एकमात्र महान स्पिनर लांस गिब्ज थे जिन्हें हम दुनिया के महानतम ऑफ स्पिनरों में जिम लेकर और इरापल्ली प्रसन्ना के साथ रख सकते हैं. दूसरे उल्लेखनीय स्पिनर गैरी सोबर्स थे जो दो तरह की स्पिन डाल सकते थे, वे बाएँ हाथ की परंपरागत स्पिन के साथ चाइनामैन और गुगली भी डाल सकते थे यानी वे रवींद्र जडेजा और कुलदीप यादव दोनों थे. बाकी बल्लेबाज और तेज गेंदबाज की तरह वे महान थे ही.

कप्तान लॉयड ने बनाई सबसे कामयाब रणनीति

भारत ने वेस्टइंडीज में एक टेस्ट मैच में जब आखिरी इनिंग्ज में चार सौ से ज्यादा रन बनाकर मैच जीत लिया तो कहते हैं कि कप्तान लॉयड का स्पिन गेंदबाजी से विश्वास उठ गया. उन्होने तय किया कि वे अब टीम में सिर्फ तेज गेंदबाजों को रखेंगे और उसके बाद उनकी टीम में हमेशा चार तेज गेंदबाज ही रहे. उनकी इस रणनीति को उनके बाद विवियन रिचर्ड्स ने भी जारी रखा.

क्लाइव लॉयड के साथ वेस्टइंडीज कप्तान कर्ल हूपर

इस रणनीति ने लगभग डेढ़ दशक से ज्यादा वक्त तक दुनिया की टीमों को रौंद दिया. उनके आतंक को उस दौर के तमाम बल्लेबाजों के प्रदर्शन से आंका जा सकता है. वेस्टइंडीज में इस टीम के खिलाफ शायद ही कुछ बल्लेबाजों ने कायदे से बल्लेबाजा की हो, बल्कि दुनिया भर के मैदानों पर उस आक्रमण का सामना कोई नहीं कर पाया. यहाँ तक कि भारतीय उपमहाद्वीप की पटरा पिचों पर भी लॉयड को रणनीति बदलने की जरूरत नहीं महसूस हुई. यहाँ भी यह चार गेंदबाजों वाला आक्रमण पूरी तरह कामयाब रहा.

बिना स्पिनर के भारत आई थी लॉयड की टीम

सवाल यह है कि अगर यह इतनी कामयाब रणनीति थी तो किसी और टीम ने इसे आजमाने की जरूरत महसूस क्यों नहीं की? दूसरा सवाल यह है कि ऐसा आतंक फिर किसी गेंदबाजी आक्रमण का क्यों नहीं हुआ? अच्छे तेज गेंदबाज तो हर देश में हुए. चार नहीं तो तीन तेज गेंदबाजों के साथ तो अमूमन टीमें खेलती ही रही हैं, लेकिन ऐसा आतंक भारतीय उपमहाद्वीप तो क्या, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में भी देखने में नहीं आया. वह आक्रमण तो ऐसा था कि भारत की धीमी पिचों पर खेले गए टेस्ट मैचों में अक्सर फील्डिंग की जमावट ऐसी होती थी कि विकेटकीपर समेत नौ खिलाड़ी बल्लेबाज के पीछे होते थे. सिर्फ एक फील्डर बल्लेबाज के सामने मिडविकेट या कवर पर होता था, क्योंकि उन्हें विश्वास होता था कि बल्लेबाज सामने की ओर शॉट खेल ही नहीं सकता. इस टीम के अलावा दुनिया की कोई भी टीम क्रिकेट के समूचे इतिहास में बिना एक भी स्पिनर के भारतीय उपमहाद्वीप के दौरे पर आई हो, ऐसा याद नही पड़ता.

घातक था लॉयकड के तेज गेंदबाजों का रिकॉर्ड

शायद लॉयड ऐसी रणनीति इसलिए बना पाए क्योंकि उन्हें एक साथ इतने सारे प्रतिभा शाली गेंदबाज मिल गए. ये गेंदबाज सिर्फ सुपरफास्ट ही नहीं थे, ये हर तरह से शानदार गेंदबाज थे. माइकल होल्डिंग्स बाद के दिनों में बहुत तेज नहीं रह गए थे लेकिन तब भी वे कम प्रभावशाली नहीं रहे थे. सन 1984 के भारत दौरे पर न कॉलिन क्राफ़्ट थे न जोएल गार्नर , बल्कि कायदे से तीन ही गेंदबाज थे जो असाधारण थे , एंडी रॉबर्ट्स , मैल्कम मार्शल और माइकल होल्डिंग्स. चौथे गेंदबाज को लॉयड बदलते रहे थे लेकिन फिर भी इस आक्रमण की धार पर कोई असर नहीं पड़ा.

कॉलिन क्रॉफ्टऔर जोएल गार्नर

उस दौर के असाधारण गेंदबाज थे एंडी रॉबर्ट्स , मार्शल , होल्डिंग्स , गार्नर ,क्राफ़्ट, बाद में कर्टली एंब्रोस और कॉलिन क्राफ्ट. इयान बिशप में असाधारण प्रतिभा थी लेकिन वे चोटों की वजह से उतना नहीं खेल पाए. सिल्वेस्टर क्लार्क , वैन डैनियल्स , पैट्रिक पीटरसन उस स्तर के नहीं थे लेकिन उस टीम में खेलने लायक थे इससे यह तो पता चलता है कि वे भी कमजोर गेंदबाज नहीं थे.

फिर कभी नहीं दिखा वेस्टइंडीज जैसा गेंदबाजी अटैक

अक्सर यह देखने में आता है कि तेज गेंदबाज अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए कुछ लटकों झटकों का इस्तेमाल करते हैं. गुस्सैल दिखना, बल्लेबाज को घूरना, आक्रामक तेवर दिखान, ये सारे तौर तरीके ज़्यादातर तेज गेंदबाज इस्तेमाल करते हैं. वेस्टइंडीज़ के ये महान गेंदबाज कभी इन लटकों का इस्तेमाल नहीं करते थे. उनका पूरा व्यवहार इतना सामान्य और संयत रहता था जैसे कोई रोज़मर्रा का काम कर रहे हों.

इस किस्म का तेज आक्रमण न किसी टीम के पास पहले कभी हुआ, न इसके बाद ही कभी देखने में आया. इसलिए कभी किसी कप्तान का साहस नहीं हुआ कि सिर्फ चार तेज गेंदबाज लेकर लगातार मैदान में आए, भले ही विकेट कैसी भी हो. वेस्टइंडीज में भी उस दौर के बाद उस स्तर का कोई गेंदबाज देखने में नहीं आया. यह सिर्फ संयोग था या कुछ और कि एक साथ ही ऐसा प्रतिभा का विस्फोट वेस्टइंडीज में हुआ. और यह भी क्या संयोग ही है कि उसके बाद उस स्तर की प्रतिभा देखने में नहीं आई. वेस्टइंडीज की टीम भारत में है तो वे दिन याद आ रहे हैं, बल्कि शायद हर क्रिकेटप्रेमी को याद आ रहे होंगे.

फोटो साभार- यूट्यूब कैप्चर (इसपीएन डॉक्यूमेंट्री- हाउ वी वॉन द वर्ळ्ड कप)