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संडे स्पेशल: औसत बल्लेबाज लेकिन महान कप्तान थे माइक ब्रेयरली

खेल और रणनीति के माहिर थे ब्रेयरली जो अपने खिलाड़ियों के मनोविज्ञान को समझकर उनसे बेहतरीन प्रदर्शन करवा लेते थे

Rajendra Dhodapkar

आजकल बाजार में सफलता के सूत्र बताने वाली किताबें और गुरु जितने उपलब्ध हैं , उतनी ही नेतृत्व के गुर सिखाने वाली किताबें और गुरु मिलते हैं, बल्कि अक्सर ये दोनों एक ही पैकेज की तरह मिलते हैं. यह धंधा कितना ही फल फूल रहा हो, लेकिन वास्तविक जीवन में यही देखा जाता है कि जो लोग किसी भी क्षेत्र में नेता बनते हैं जरूरी नहीं कि वे किताबों में लिखे नेतृत्व के गुणों पर खरे उतरते हों या उनमें लिखे गुरों का पालन करते हों. बल्कि नेतृत्व करने वाले लोग अक्सर कई पैमानों पर अयोग्य साबित होते हैं. अगर इस बात पर शक हो तो दुनिया के किसी भी हिस्से में नौकरीपेशा लोगों से उनके बॉस के बारे में राय पूछ लीजिए या आम जनता से सरकार का नेतृत्व करने वाले लोगों के बारे में पूछ लीजिए. अब इतने सारे लोग तो गलत नहीं हो सकते ?

बहरहाल, क्रिकेट एक ऐसा खेल है जिसमें कप्तान का महत्व शायद किसी भी दूसरे सामूहिक खेल से ज्यादा होता है. एक तो क्रिकेट ज्यादा वक्त तक चलता है और इसमें लगभग हर क्षण मैदान पर फैसला करने और बदलाव करने की स्थिति होती है. जिंदगी के दूसरे क्षेत्रों की तरह क्रिकेट में भी जरूरी नहीं है कि सबसे काबिल आदमी ही कप्तान चुना जाए और यह भी जरूरी नहीं सफल कप्तान बहुत अच्छा कप्तान हो या कप्तानी के मानदंडों पर खरा उतरने वाला कप्तान कामयाब भी हो सके. जाहिर है अच्छा कप्तान अपनी छाप तो छोड़ जाता ही है,लेकिन कप्तानी का गणित जिंदगी के दूसरे सवालों की तरह ही जटिल होता है.


क्रिकेट में होते हैं दो तरह के कप्तान

क्रिकेट में अच्छे कप्तान दो तरह के होते हैं, एक वे जो खेल की बारीकियों की गहरी समझ रखते हैं. दूसरे वे जो खेल और उसकी रणनीति के माहिर होते हैं और अपने साथी खिलाड़ियों के मनोविज्ञान को समझकर उनसे बेहतरीन प्रदर्शन करवा लेते हैं. इंग्लैंड के माइक ब्रेयरली इसके सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं. ब्रेयरली क्रिकेट इतिहास के संभवत: अकेले व्यक्ति हैं जो अपनी बल्लेबाजी या गेंदबाजी से ज्यादा अपने नेतृत्व के लिए जाने जाते हैं. वह बहुत ही औसत किस्म के बल्लेबाज थे, जिनका बल्लेबाजी औसत 22 रन प्रति इनिंग के आसपास है. लेकिन वह महान कप्तान थे. उन्होंने कप्तानी और नेतृत्व को लेकर किताबें लिखी हैं और हम मान सकते हैं कि वह ऐसी किताबें लिखने के लिए किसी भी व्यक्ति से ज्यादा बड़े हकदार हैं.

दूसरी तरह के सफल कप्तान वे होते हैं जो अपने खेल की असाधारणता की वजह से कप्तानी में कामयाब हो जाते हैं. उनकी गेंदबाजी या बल्लेबाजी में ऐसा दम होता है कि वे टीम को जिता ले जाते हैं और उनकी इस ऊर्जा की वजह से बाकी साथियों का प्रदर्शन भी बेहतर हो जाता है.

अपने बूते मैच जिता ले जाते थे सोबर्स

गैरी सोबर्स इस तरह की कप्तानी के सबसे बड़े उदाहरण हैं. सोबर्स कोई बड़े रणनीतिकार नहीं थे. लेकिन अक्सर वह अपने बूते मैच जिता ले जाते थे. सोबर्स का अपनी प्रतिभा पर विश्वास और अपनी जिम्मेदारी का अहसास ऐसा था कि जब उनकी टीम कम रन पर आउट हो जाती थी तो अक्सर वह खुद गेंदबाजी की शुरुआत करते थे और शुरू के विकेट निकाल लेते थे. सोबर्स महान बल्लेबाज थे, लेकिन बल्लेबाजी वह काफी नीचे के क्रम पर करते थे और टीम को संकट से उबार लेते थे. सोबर्स अपने आप में एक पूरी टीम थे और कई मैच उन्होंने अकेले अपने बूते जितवाए, लेकिन सोबर्स बहुत विनम्र और अपनी उपलब्धियों को लेकर संकोची व्यक्ति हैं और वह हमेशा अपने को टीम के एक साधारण सदस्य की तरह ही देखते रहे इसलिए भी वह अपनी टीम के प्रिय थे.

जाहिर है सोबर्स की टीम भी दिग्गज खिलाड़ियों से भरी थी. इसलिए सोबर्स जैसा बड़ा खिलाड़ी ही उसका नेतृत्व कर सकता था. आमतौर पर बड़ा खिलाड़ी ही बड़ा कप्तान इसलिए बन पाता है, क्योंकि सिपाही उसी सेनापति की इज्जत करता है जो खुद बहादुर और कुशल योद्धा हो,‘पर उपदेश कुसल’ न हो. ब्रेयरली जैसे लोग अपवाद होते हैं जो सिर्फ नेतृत्व के लिए जाने जाएं और टीम के सदस्यों से इज्जत और प्रेम हासिल करें. विवियन रिचर्ड्स भी काफी हद तक सोबर्स जैसे ही कप्तान थे, लेकिन विनम्र जरा वह कम लगते थे.

अपने प्रदर्शन से टीम का स्तर बढ़ा देते थे कपिल देव

भारत में कुछ हद तक सोबर्स जैसे कप्तान कपिल देव थे जो अपने व्यक्तिगत प्रदर्शन से टीम का स्तर बढ़ा देते थे. अगर 1983 में विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम के सदस्यों की राय ली जाए तो वे सभी सहमत होंगे कि इस जीत का सबसे ज्यादा श्रेय कपिल देव को है. पहली दो विश्व कप प्रतियोगिताओं में भारत ने कुल जमा एक मैच वह भी पूर्वी अफ्रीका नाम की टीम के खिलाफ जीता था. लेकिन कपिल की कप्तानी ने तीसरे विश्व कप में पूरी तस्वीर बदल दी.

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बाद के दिनों में कपिल बतौर खिलाड़ी और कप्तान उतने प्रभावशाली नहीं थे जितने अपने करियर के पूर्वार्द्ध में थे, लेकिन घरेलू क्रिकेट में अपना करिश्मा उन्होंने दिखाया जब वह हरियाणा के कप्तान हुए. रणजी ट्रॉफी में फिसड्डी हरियाणा की टीम को उन्होंने विजेता बना दिया. मैंने हरियाणा के एक खिलाड़ी से पूछा था कि क्यों तुम्हारी टीम का प्रदर्शन इतना बेहतर हो गया, जब कि हरियाणा के क्रिकेट में इतनी गड़बड़ियां हैं. उसने कहा, कपिल ! उनके होने से ही टीम में फर्क पड़ जाता है.

... तो ‘लकी’ होना चाहिए कप्तान

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्यादातर सफल कप्तान ब्रेयरली और सोबर्स के बीच में कहीं थे. यानी वे काफी अच्छे नेता थे और इतने बड़े खिलाड़ी थे कि टीम के सदस्यों से सम्मान पा सकें. लेकिन मेरा खयाल है कि ऐसे कप्तान भी बहुत थे जो जितने कामयाब थे उतने काबिल नहीं लगते थे. वैसे ही काफी कप्तान थे जो बहुत काबिल थे, लेकिन कामयाब नहीं हो पाए. अगर आप किसी क्रिकेटर से पूछें कि क्रिकेट कप्तान में कौन-कौन से गुण होने चाहिए तो तमाम गुण गिनवाने के साथ एक गुण का जिक्र वह जरूर करेगा कि कप्तान को ‘लकी’ होना चाहिए. क्रिकेट भी जिदगी का ही हिस्सा है और जो जिदगी में सच है वही क्रिकेट में भी सच है. अगली बार भारत के कुछ कप्तानों के बारे में.