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कहानी सचिन-सहवाग जैसी, बनाया है वर्ल्ड रिकॉर्ड... फिर भी क्यों नहीं जानते लोग

क्रिकेट में हीरो कहानियां बहुत सुनी होंगी, आज सुनिए एक हीरोइन की कहानी

Manoj Chaturvedi

वीरेंद्र सहवाग की कहानी क्रिकेट के शौकीन बच्चे-बच्चे की जुबान पर है कि वो कैसे नजफगढ़ से रोज डीटीसी बस में फिरोजशाह कोटला आया करते थे. हम सचिन तेंदुलकर की कहानी जानते हैं कि वो 1987 के विश्व कप में बॉल बॉय थे. सचिन और सहवाग जैसी ही कहानी और भी है, जो ज्यादा लोगों को मालूम नहीं है. सहवाग और सचिन भी क्रिकेटर थे, हमारी कहानी का हीरो या यूं कहें हीरोइन भी क्रिकेटर हैं. लेकिन क्रिकेट में हीरो के आगे ‘इन’ शब्द जुड़ना सारे मायने बदल देता है.

पुरुष क्रिकेटर की हर कहानी जानने वाले महिला क्रिकेट के चंद खिलाड़ियों के बारे में भी नहीं बता पाते. हम आपको ऐसी ही महिला क्रिकेटर की कहानी सुना रहे हैं, जिन्होंने अपने कदमों में जहां झुकाया है. जिन्होंने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है.


रिकॉर्ड बनाना भारतीय क्रिकेटरों के लिए कोई नई बात नहीं हैं क्योंकि पहले सचिन तेंदुलकर और फिर सहवाग, द्रविड़, धोनी और विराट तमाम लोग रिकॉर्ड बना चुके हैं. अब इन नामों में झूलन गोस्वामी का नाम भी जुड़ गया है. वह महिला वनडे क्रिकेट में सबसे ज्यादा 181 विकेट लेने वाली गेंदबाज बन गई हैं. उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज केथरीन फिट्जपैट्रिक के 180 विकेट के विश्व रिकॉर्ड को तोड़ा है. उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ तीन विकेट लेकर यह उपलब्धि हासिल की है. गेंदबाज कितना किफायती है, यह उसके इकॉनमी रेट से पता चलता है. उनका इकॉनमी रेट 3.18 है. पुरुष क्रिकेट में इतने विकेट लेने वाले किसी भी गेंदबाज का ऐसा इकॉनमी रेट नहीं हो सकता है.

कड़ी मेहनत का है यह नतीजा

भारत क्या, दुनिया की प्रमुख तेज गेंदबाजों में शुमार झूलन गोस्वामी ने क्रिकेटर बनने के लिए बहुत पापड़ बेले हैं. वह नादिया में रहती थीं और उनके कोलकाता स्थित प्रशिक्षण केंद्र की घर से दूरी 80 किमी थी. इसके लिए वह प्रतिदिन सुबह 4.30 बजे उठकर ट्रेन पकड़कर कोलकाता आतीं थीं और प्रैक्टिस करके वापस जाती थीं. कई बार ट्रेन छूट भी जाया करती थी. लेकिन वह इससे कभी विचलित नहीं हुई और लगातार क्रिकेटर बनने की कोशिश करती रहीं.

उनकी कड़ी मेहनत का ही फल है कि वह आज वनडे क्रिकेट में सर्वाधिक विकेट लेने का विश्व रिकॉर्ड बनाने में सफल हो सकी हैं. झूलन ने अपने कॅरियर के दौरान ढेरों सफलताएं हासिल की हैं. पर अब उनका एकमात्र सपना इस साल होने वाले आईसीसी महिला विश्व कप को जीतना है. वह विश्व कप क्वालिफायर में कंधे की चोट के कारण भाग नहीं ले सकी थीं. वह यदि भाग लेतीं तो शायद वनडे मैचों में सर्वाधिक विकेट का रिकॉर्ड उस समय ही टूट जाता और इस समय हम 200 विकेट लेने वाली पहली गेंदबाज बनने का जश्न मना रहे होते.

विदेश में पहली सीरीज जिताने वाली

झूलन गोस्वामी ने वनडे की तरह ही टेस्ट मैचों में अच्छा प्रदर्शन किया है. यह अलग बात है कि भारतीय महिला टीम बहुत ही कम टेस्ट मैच खेलती रही है. आप इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि झूलन ने जनवरी 2002 में इंग्लैंड के खिलाफ पहला टेस्ट खेला था. वह अपने 15 साल लंबे टेस्ट कॅरियर में सिर्फ 10 टेस्ट ही खेल सकी हैं, जिसमें 40 विकेट लेने का सौभाग्य प्राप्त है.

झूलन 2006 में भारत को पहली बार विदेशी भूमि पर टेस्ट जीत का स्वाद चखाया. उन्होंने सीरीज के इकलौते टेस्ट की दोनों पारियों में 33 रन पर पांच और 45 रन पर पांच विकेट लेकर भारत को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई. झूलन 2007 में आईसीसी महिला क्रिकेटर ऑफ द ईयर चुनी गई। उन्हें यह अवार्ड पूर्व भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने प्रदान किया, इसे वह केक पर आइसिंग की तरह मानती हैं. वह इसके अलावा पद्मश्री और अर्जुन अवार्ड से भी सम्मानित हो चुकी हैं.

किससे मिली प्रेरणा

झूलन बंगाल के नादिया जिले की रहने वाली हैं. आम भारतीयों की तरह झूलन के मां-बाप चाहते थे कि वह क्रिकेटर बनने के बजाय पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान दें. लेकिन झूलन के दिमाग में कहीं न कहीं क्रिकेट का कीड़ा घुसा हुआ था. इस बीच 1997 में भारत में महिला विश्व कप का आयोजन हुआ और इसका फाइनल कोलकाता के ईडन गार्डन्स पर ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच खेला गया. झूलन को इसमें बॉल गर्ल की जिम्मेदारी मिली. इस दौरान ही उसने बेलिंडा क्लार्क, डेबी हॉके और केथरीन फिट्जपैट्रिक जैसी दिग्गजों को खेलते देखा और उनसे प्रेरणा लेकर क्रिकेट को ही कॅरियर बनाने का फैसला कर लिया.

रफ्तार में नहीं हैं कम

झूलन गोस्वामी पांच फुट 11 इंच के कद वाली हैं. उनका शारीरिक गठन पेस गेंदबाजों वाला ही है और इस कारण ही उन्होंने पेस गेंदबाज बनने का फैसला भी किया. भारतीय पुरुष गेंदबाजों की बात करें तो वह आमतौर पर 130-135 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से गेंदबाजी करते हैं. इस लिहाज से देखा जाए तो झूलन उनसे कोई बहुत पीछे नहीं हैं. वह आमतौर पर 120 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से गेंदबाजी करती हैं. महिला पेस गेंदबाजों के लिए यह रफ्तार आम नहीं है, क्योंकि झूलन के अलावा इस रफ्तार को केथरीन ही निकाल सकी हैं.