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श्रीसंत अगर दोषी हैं तो ‘वो 13’ क्या हैं जिनके नाम लिफाफे में बंद हैं?

सवाल यही है कि दोषियों के नाम सार्वजिनक होना क्या वाकई खेल के हित में नहीं है?

Shailesh Chaturvedi

हाईकोर्ट ने शांताकुमारन श्रीसंत को आजीवन बैन किए जाने की सजा बरकरार रखी है. श्रीसंत का स्वभाव प्रतिक्रिया का रहा है. उन्होंने प्रतिक्रिया दी भी है. भले ही, अंदाज उतना आक्रामक नहीं है, जिसके लिए श्रीसंत को जाना जाता है. उन्होंने सवाल पूछा है कि मेरे लिए स्पेशल नियम क्यों हैं. उन्होंने पूछा है कि लोढ़ा कमेटी की रिपोर्ट में आए 13 नामों के बारे में क्या फैसला है, कोई उस पर बात क्यों नहीं कर रहा?

श्रीसंत का सवाल सही है. वाकई उन 13 नामों पर चर्चा नहीं हो रही. वो नाम सुप्रीम कोर्ट के पास बंद लिफाफे में मौजूद हैं. गलती से कुछ नाम अदालत में ले भी लिए गए थे. हालांकि उन्हें भी सार्वजनिक नहीं किया जा सकता, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की पाबंदी है. कोर्ट ने ‘खेल के हित’ में नाम सार्वजनिक न करने की पाबंदी लगाई है. सवाल यही है कि दोषियों के नाम सार्वजिनक होना क्या वाकई खेल के हित में नहीं है?

क्या था श्रीसंत का मामला

पहले श्रीसंत की बात, जिन्हें मई 2013 में पुलिस ने गिरफ्तार किया था. उन पर स्पॉट फिक्सिंग को सट्टेबाजों से संपर्क का आरोप है. श्रीसंत राजस्थान रॉयल्स टीम का हिस्सा थे. आरोप लगा कि उन्होंने फिक्स किया था कि किस ओवर में वो कितने रन देंगे. बीसीसीआई ने उन पर आजीवन बैन लगाया. लेकिन निचली अदालत ने इसे हटा दिया. अब हाई कोर्ट ने बीसीसीआई के बैन को बहाल किया है.

श्रीसंत से ऐसे लोगों को कोई खास सहानुभूति नहीं होनी चाहिए, जो क्रिकेट को साफ-सुथरा देखना चाहते हैं. लेकिन साफ-सुथरा खेल देखने की चाह रखने वाले वो 13 नाम भी तो जानना चाहते ही होंगे ना? अब कोर्ट में भी उन नामों पर ज्यादा चर्चा नहीं होती. हिंदी की एक कहावत ‘ठंडे बस्ते में जाना’ इस मामले में पूरी तरह सही बैठती है.

क्या है लिफाफे में बंद 13 लोगों के नाम का सच

सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस मुकुल मुद्गल की अध्यक्षता में एक कमेटी बिठाई थी, जिसने आईपीएल में भ्रष्टाचार मामले की जांच की थी. इस कमेटी में एल. नागेश्वर राव, निलॉय दत्ता और बीबी मिश्रा थे. खासतौर पर बीबी मिश्रा ने अपनी टीम के साथ कई क्रिकेटरों और अधिकारियों से उसी तरह पूछताछ की, जैसे कोई जांच एजेंसी करती है.

सूत्रों के मुताबिक बीबी मिश्रा की रिपोर्ट में ही ऐसे तमाम नाम हैं, जिनका सामने आना क्रिकेट की ख्याति को धक्का पहुंचाने वाला हो सकता है. यह बात सुप्रीम कोर्ट में भी कही गई है. इसी वजह से ये नाम अब तक सीलबंद लिफाफे में हैं.

जांच में कई क्रिकेटरों ने माना था गुनाह

उदाहरण के तौर पर एक क्रिकेटर की जांच की गई थी. एक मैच में बैटिंग के दौरान उसने अपने दोनों रजिस्टर्ड मोबाइल एंटी करप्शन यूनिट के पास जमा नहीं कराए थे. जब वह बैटिंग करने गया, तो मोबाइल ऑन थे. इस पर पूछा गया, तो क्रिकेटर ने बताया कि उसकी गर्लफ्रेंड आई थी, फोन उसके पास था.

उस क्रिकेटर को दूसरे फोन की कॉल डिटेल्स दिखाई गई, जिसकी कॉल डिटेल्स में एक सट्टेबाज का नंबर था. क्रिकेटर ने तब अपनी गलती स्वीकारी थी और रोना शुरू कर दिया था. माना जा रहा है कि लिस्ट में उसका नाम है.

इसी तरह दूसरे क्रिकेटर से पूछताछ दिल्ली के पांच सितारा होटल में हुई थी. यहां भी जब पहली बार पूछा गया, तो उसने किसी संदिग्ध व्यक्ति से जान-पहचान की बात से इनकार किया था. फिर उस क्रिकेटर को दूसरे कमरे में बैठे एक शख्स की शक्ल दिखाई गई. धीरे-धीरे शिकंजा कसने पर वह क्रिकेटर भी टूटा और दो घंटे तक रोता रहा.

इस तरह की कई घटना हैं. चेन्नई में कुछ लोगों से पूछताछ हुई थी. एक बड़े पुलिस अधिकारी से पूछताछ की जानी थी. तमाम दबावों के बीच हुई इस जांच के आधार पर रिपोर्ट बनी थी. इसमें उन 13 लोगों के नाम हैं, जिन्हें जांच कमेटी ने या तो दोषी पाया या उन पर सख्ती से जांच की बात की है.

इससे पहले भी खेल हित में नहीं हुई थी पूरी तरह जांच

याद कीजिए, सन 2000 के आसपास जब हैंसी क्रोनिए मामला सामने आया था, तब भी कुछ क्रिकेटरों के नाम आए थे. अजहरुद्दीन समेत कुछ क्रिकेटरों पर बैन लगाया गया था. तब भी कुछ क्रिकेटरों के नाम सामने आए थे. एक बहुत बड़े क्रिकेटर ने उस दौर के बड़े राजनेता के पांव पकड़ लिए थे. तब भी ‘खेल के हित’ की बात करते हुए उस जांच को बहुत आगे नहीं ले जाया गया था. तर्क ये था कि लोगों का खेल से भरोसा उठ जाएगा.

वो अलग बात है कि उसके बाद सौरव गांगुली को कप्तान बनाया गया. सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण, वीरेंद्र सहवाग, अनिल कुंबले, जहीर खान जैसे क्रिकेटरों के साथ टीम इंडिया ने तमाम कामयाबियां पाईं. धीरे-धीरे फिक्सिंग की कालिख हल्की पड़ती गई. लेकिन एक धब्बा हमेशा के लिए था. सवाल यही है कि क्या फिर से ऐसा होगा?

अगर ऐसा होता है तो क्या यही खेल का हित है?  क्या दोषियों का पता होना कभी किसी के भी हित में हो सकता है? सवाल यह भी है कि क्या क्रिकेट फले-फूले इसलिए ऐसे लोगों के नाम रोक कर रखना सही है, जो इस खेल के संभावित अपराधी हैं? इन सारे मामले के बीच अगर श्रीसंत अपनी नाराजगी जाहिर करते हैं, तो क्या ये गलत है?