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क्यों उस खिलाड़ी की जिंदगी बचा अपनी मर रही छवि में जान डाल सकता है क्रिकेट!

बड़ौदा के युवा क्रिकेट क्रुणाल पांडया ने मार्टिन के लिए ब्लैंक चेक भेजा है. लेकिन बोर्ड से सिर्फ पांच लाख की ही मदद मिली है जो कि नाकाफी है

Jasvinder Sidhu

ज्यादा दिन पहले की बात नहीं है. भारतीय क्रिकेट बोर्ड के सीईओ पर यौनाचार के आरोप लगे. उस प्रक्रिया को निपटाने में बोर्ड के कानूनी कार्रवाई में लाखों रुपए लगे. सीईओ को साथ काम करने वाली महिलाओं के साथ कैसे पेश आना चाहिए, यह सिखाने के लिए एक एजेंसी की भी तलाश हो रही है. उसका भी बिल देना है.

हार्दिक पांड्या और केएल राहुल के एक टीवी शो में शर्मनाक बकवास के बाद भी कुछ ऐसी ही प्रक्रिया दोहराई गई. उसमें भी बोर्ड को चंद लाख बहाने पड़े. अभी उसमें और रकम जाएगी. 2013 के आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग केस में बोर्ड की कानूनी कार्रवाई पर सौ करोड़ से ऊपर का बिल को चुका है.


ये सारे ही प्रकरण उदहारण हैं कि बोर्ड अपनी जिल्लत करवाने की भी कीमत चुकाता है और यह रकम मामूली नहीं है. पिछले महीने देश के लिए 10 वनडे खेल चुके ऑलराउंडर जैकब मार्टिन का ‘स्कूटर’ से एक्सिडेंट हुआ. उनके फेफड़े और लीवर पर घातक चोट आई है और वह वेंटिलेटर पर मौत को मात देने का संघर्ष कर रहे हैं.

दस लाख से ऊपर का बिल हो जाने के बाद अस्पताल ने उनका उपचार रोक देने की धमकी दी. उसके बाद से बड़ौदा के इस क्रिकेटर के लिए उसने साथी मदद के लिए आगे आ रहे हैं. बड़ौदा के युवा क्रिकेट क्रुणाल  पांडया ने मार्टिन के लिए ब्लैंक चेक भेजा है. लेकिन बोर्ड से सिर्फ पांच लाख की ही मदद मिली है जो नाकाफी है.

बोर्ड ब्याज भर से हर साल तीन सौ करोड़ से ज्यादा कमाता है. ऐसे में मार्टिन को दी जाने वाली मदद को देख कर दुख होता है कि टीवी प्रसारण से हजारों करोड़ रुपए  कमाने वाला बोर्ड अपने पूर्व क्रिकेटर की खुल कर मदद करने में आगे क्यों नहीं आया.

यह सही है कि बोर्ड क्रिकेटरों के लिए बहुत कुछ करता है. रिटायरमेंट पर मिलने वाला फंड और फिर उसके बाद अच्छी पेंशन जैसे बेहतरीन कदम को कोई नकार नहीं सकता. लेकिन मार्टिन के मामले सिर्फ उनके पूर्व क्रिकेटर होने का ही सवाल नहीं है, बल्कि यह किसी की जिंदगी का सवाल है.

बोर्ड लगातार अपने खिलाड़ियों और अधिकारियों की कारगुजारी के कारण कोर्ट - कचहरी और मीडिया में लानत-मलामत करवाता आ रहा है. चाहे वह मैच फिक्सिंग हो, स्पॉट फिक्सिंग, ड्रग्स का मामला हो या स्टेट एसोसिशनों में फंड में जालसाजियां हो या फिर टीवी शो में लड़कियों को पार्टियों के अपने कमरे तक ले जाने की डींगें हों, यह खेल हर बार अपमानित हुआ है.

इससे शर्मनाक बात क्या हो सकती है कि ऐसे ही बोर्ड को सुप्रीम कोर्ट की कमेटी चला रही है. बोर्ड के पास इस समय सब कुछ है. बड़ी टीमों के खिलाफ मैच जीतने वाली टीम है और उसके पैसे से कई बैंकों का धंधा चल रहा है. एक चीज जो वह इन सालों में गवा बैठा है और वह है रेपुटेशन या छवि.

मार्टिन  जैसे मामले उसके लिए अपनी दागदार छवि को सुधारने के मौके हो सकते हैं लेकिन उसने यह मौका गंवा रहा है.

यह भी दुखदाई है कि मौजूदा टीम के सदस्यों की तरफ से अब तक मार्टिन के लिए किसी मदद का प्रस्ताव सार्वजनिक तौर पर नहीं आया है.  क्रुणाल के योगदान में अगर उनके भाई हार्दिक का भी हिस्सा है तो अच्छी खबर है. हालांकि किसी ने गुप्त रूप से सहयोग किया हो तो वह भी सराहनीय है.

सुखदाई यह है कि सौरव गांगुली सहित कई पूर्व क्रिकेटर मार्टिन की मदद के लिए आगे आए हैं. बड़ौदा सिर्फ एक बार 2000-01 में रणजी चैंपियन बनी थी और मार्टिन उस टीम के कप्तान थे. उनका करियर कैसा रहा, उन्होंने आगे क्या किया, ये सब अलग मुद्दे हैं. अभी मामला एक जिंदगी बचाने का है. जब मुद्दा एक क्रिकेटर की जिंदगी से जुड़ा हो, तो सब कुछ भूल कर सिर्फ मदद के लिए हाथ उठने चाहिए. खासतौर पर बोर्ड की तरफ से.