view all

अगर सचिन तेंदुलकर देशविरोधी हैं तो इस मुल्क को करोड़ों ऐसे 'एंटीनेशनल' चाहिए

देश में गरीबी है. इससे कोई इनकार नहीं कर सकता. गांव-देहात हो या ट्राइबल क्षेत्र, यहां सुविधाओं को हमेशा अभाव रहता है, सचिन का स्कोर लोगों के चेहरे पर खुशियां लाता था. सचिन का बल्ला उन्हें जश्न मनाने के मौके बनाता था.

Jasvinder Sidhu

कभी देश के हर बाशिंदे को अपने बल्ले से सुकून और हिंदुस्तानी होने के गौरव का एहसास करवाने वाले सचिन तेंदुलकर को देशविरोधी करार दिया गया है. उनके पाकिस्तान को विश्व कप में दो अंक देने के बजाय खेलने की सलाह के बयान बाद से ही टीवी एंकर लगातार गुर्रा रहे हैं.

यह भी रोचक है कि क्रिकेट का भगवान कहे जाने वाले सचिन ने जिंदगी में पहली बार किसी अहम मुद्दे पर अपनी सार्वजनिक तौर पर राय साझा की है और उसमें उन पर देशविरोधी का लेबल लगा दिया गया. साफ है कि सचिन अपने इस जोखिम को शायद ही कभी भुला पाएं.


सचिन पर आरोप लगता रहा है कि उन्होंने मैच फिक्सिंग या देश के खराब माहौल पर कभी अपनी राय नहीं दी. ऐसे में जब टीवी के एंकर और उनके मालिक पाकिस्तान के साथ जंग की बात कर रहे थे, सचिन ने क्रिकेट खेलने को सही ठहराया. हालांकि अपने ट्वीट में उन्होंने साफ भी किया कि सरकार इस बाबत जो भी फैसला लेगी, वह उसे दिल से स्वीकार करेंगे.

सचिन को देशविरोधी कहने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि सचिन होने के मायने क्या हैं. रिटारमेंट से पहले सचिन हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्र लाहली में अपना आखिरी घरेलू मैच खेल रहे थे. इस लेखक ने गांव के लोगों से मुलाकात की और पूछा कि आखिर समाज या युवाओं पर सचिन ने क्या असर डाला. एक बुजुर्ग ने कहा कि वह शरीफ हैं, मैदान पर खेलते हुए वह कभी किसी से बदतमीजी नहीं करते.

स्थानीय ट्रांसपोर्टर हरीश कौशिक से भी यह सवाल किया गया. हरीश का जवाब था कि सचिन का जबरदस्त प्रभाव है क्योंकि इस बल्लेबाज ने कभी शराब का विज्ञापन नहीं किया. बाकी कई क्रिकेटरों ने पैसे के लिए किया भी. यकीनी तौर पर सचिन युवाओं को बुरी चीजों से दूर रखना चाहते हैं.

सचिन के आखिरी टेस्ट मैच के आखिरी दिन वानखेडे स्टेडियम के बाहर 20 साल के दर्शन जैन मिल गए. उनके पास एक एलबम थी जिसमें कई तरह के भारतीय नोट फोटो की तरह चिपकाए गए थे. हर नोट का जो नंबर था, वह सचिन के खेल से किसी तरह से जुड़ा हुआ था. मसलन, एक नोट का नंबर 151189 था. सचिन पाकिस्तान के खिलाफ 15 नवंबर 1989 को अपना पहला मैच खेले थे.

इसमें कोई शक ही नहीं कि ऐसे नोट एकत्र करना पागलपन के सिवा कुछ नहीं. जब इस लेखक ने दर्शन के पूछा कि आखिर उन्होंने यह सब क्यों किया, तो जवाब मिला, ‘सचिन देश के हीरो हैं. मैं उनके लिए कुछ करना चाहता था.’

आज सभी सेना की बात कर रहे हैं. अगर सीमाओं पर गर्मी-सर्दी के बीच देश की सीमाओं की रक्षा करने वाले सैनिकों से पूछेंगे तो अधिकतर स्वीकार करेंगे कि सचिन की बल्लेबाजी उनकी थकान और परिवारों से दूर होने के दर्द पर मलहम की तरह होती थी.

देश में गरीबी है. इससे कोई इनकार नहीं कर सकता. गांव-देहात हो या ट्राइबल क्षेत्र, यहां सुविधाओं का हमेशा अभाव रहता है, सचिन का स्कोर लोगों के चेहरे पर खुशियां लाता था. सचिन का बल्ला उन्हें जश्न मनाने के मौके बनाता था.

आज सचिन को देशविरोधी कहा जा रहा है. यहां तक तो ठीक है. लेकिन जिस तरह के हालातों में उन पर इस तरह के हमले हो रहे हैं, सचिन को एक बार फिर से बयान जारी करके उन्हें देशविरोधी कहने वालों से ही माफी मांगनी पड़े तो किसी को हैरान नहीं होना चाहिए.