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खड़ूस ‘चंदू सर’ को शादी में कोच बनने का न्योता मिला और विदर्भ लगातार दूसरी बार रणजी चैंपियन हो गया

Ranji Trophy : भारतीय क्रिकेट में कहा जाता है कि कप्तान ही टीम का बॉस होता है. लेकिन चंदू सर के ड्रेसिंगरूम में स्थिति उलटी है. वहां यह रूल है ही नहीं

Jasvinder Sidhu

बात 2017 की है. पूर्व टेस्ट बल्लेबाज दिलीप वेंगसरकर की बेटी की शादी थी. सभी पुराने दोस्त खाने की टेबल पर बैठे थे. भारत और विदर्भ के पूर्व बॉलर प्रशांत वैद्य भी वहां मौजूद थे. खाने के दौरान उन्होंने चंद्रकांत पंडित को विदर्भ के कोच की जिम्मेदारी संभालने की पेशकश की. कुछ दिनों की हिचकिचाहट के बाद क्रिकेट सर्किल में खड़ूस कोच के लेबल वाले‘चंदू’ पंडित ने इस प्रस्ताव पर हामी भर दी और 2018 में 50 के दशक से खेल रहा विदर्भ पहली बार रणजी चैंपियन बन गया.


नागपुर में सौराष्ट्र के खिलाफ 78 रन से फाइनल में जीत के बाद विदर्भ लगातार दूसरी बार रणजी चैंपियन बनी है और लगातार दो बार देश की सबसे बड़ी घरेलू प्रतियोगिता जीतने वाली वह पांचवीं टीम है.

इसमें कोई दोराय नहीं है कि टीम के सीनियर खिलाड़ियों ने टीम को इस मुकाम तक लाने में सबसे अहम भूमिका अदा की है, लेकिन इस सबके पीछे कोच और उनके काम करने का तरीका सबसे बड़ा पहलू है.

नागपुर में दूसरी बार चैंपियन बनने के बाद चंद्रकांत पंडित दौड़ कर मैदान पर पहुंते हैं और उनके चेहरे पर जीत की खुशी थी. लेकिन यह कोच ऐसा नहीं है जैसा फाइनल के बाद दिखाई दिया.

भारतीय क्रिकेट में कहा जाता है कि कप्तान ही टीम का बॉस होता है. लेकिन चंदू सर के ड्रेसिंगरूम में यह रूल है ही नहीं.

यह कोच पुलिस कप्तान की तरह है जिसके आदेश के बिना पत्ता भी नहीं हिलता और जब जरुरत होती है, उनका हाथ भी चलता है. पंडित जानते हैं कि वह क्या कर रहे हैं और वह हमेशा टीम के पक्ष में गया.

सौराष्ट्र के खिलाफ पहली पारी में पिछली बार टीम को चैंपियन बनाने वाले तेज गेंदबाज रजनीश गुरबानी को पहले ही ओवर के बाद हटा कर नई गेंद के लिए स्पिनर आदित्य सरवटे को लाने का फैसला कोच का ही था. सरवटे ने अपने पहले ही ओवर में टीम को विकेट दिया और फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा.

दूसरी पारी में भी नई गेंद सरवटे को थमाने का फैसला टीम के पक्ष में गया. चंद्रकांत पंडित कड़े फैसले लेने के लिए जाने जाते हैं. कोच ने 12 टॉप खिलाड़ियों को टीम से बाहर रखकर अगले दस साल की टीम बनाने के लिहाज से युवाओं को मौका दिया.

कोच के भरोसे का नतीजा यह रहा कि यह गेंदबाज अकेले ही सौराष्ट्र के लिए भारी साबित हुआ. इस कोच के बारे में कहा जाता है कि जब वह आसपास होते हैं तो किसी की आवाज ऊंची नहीं निकलती. चंद्रकांत पंडित का काम करने का अपना तरीका है. मसलन रणजी सीजन में मैचों के दौरान दूसरे शहरों में वह टीम के लिए होटल शहर से दूर ही लेते हैं ताकि खिलाड़ियों का ध्यान किसी भी तरह से भंग ना हो.

पिछले साल चैंपियन बनने के बाद इस लेखक से बातचीत के दौरान पंडित ने कहा कि कोई महज एक फिफ्टी या शतक बनाकर लंबे समय तक नहीं बना रह सकता. टीम में खेलना है तो लगातार एक लय में रन बनाने होंगे और गेंदबाजों को विकेट लेने होंगे. 2018 में जब यह टीम चैंपियन बनी थी तो कहा गया तुक्का लग गया है. लेकिन लगातार दो बार तुक्का नहीं लगता. पंडित और विदर्भ की कहानी लिस्टर सिटी फुटबॉल क्लब से मिलती जुलती है.

2015 में क्लोउडिया रेनेरी इटली में अपने परिवार के साथ छुट्टियां बिता रहे थे जब उनके एजेंट स्टीव कुंटर ने फोन करने बताया कि लिस्टर सिटी को उन्हें (रेनेरी) कोच बनाने के लिए मना लिया है.

जब रेनेरी ने टीम को संभाला तो सट्टा बाजार में लिस्टर सिटी का भाव एक पाउंड के बदले 5000 था. प्रीमियर लीग में इस क्लब की कोई गिनती ही नहीं थी. एक साल बाद रेनेरी की अगुआई में लिस्टर सिटी 2015-2016 के सीजन का चैंपियन बना.

चंद्रकांत पंडित एक कड़क कोच, लेकिन देश में क्रिकेट के गहन जानकारों में से एक हैं और मुंबई को उनके जाने का मलाल अब जरुर होगा. इस कोच को एक बात का श्रेय और जाता है. वह यह है कि देश के लोग अब जानते हैं कि विदर्भ भी देश का कोई हिस्सा है और यह महाराष्ट्र में है.