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आखिर क्यों हो रहा है धोनी और युवराज के रिटायरमेंट का इंतजार!

रिटायरमेंट का फैसला बोर्ड करे या खिलाड़ी, इस बात पर छिड़ी है बहस

Neeraj Jha

अगर आपने एम एस धोनी - "द अनटोल्ड स्टोरी" देखी होगी तो आपको शायद याद होगा की सेलेक्टर्स के सामने धोनी का वो सीन जब धोनी सेलेक्टर्स के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की मदद से मीटिंग कर रहे थे तो उन्होंने कहा की ये तीनो खिलाडी अब इस वन डे में फिट नहीं बैठते है. इस पर किसी सेलेक्टर ने कहा की जिन्होंने धोनी को प्रमोट किया, धोनी आज उसी को बाहर करना चाहते है.

इस पर धोनी का दो टूक जबाब था की हम सब सेवक है और हम सब देश सेवा कर रहे है. इसी डॉयलोग पर सिनेमा हॉल में सबसे अधिक तालियां बजी थी.


समय ने फिर से एक बार करवट ली है, धोनी आज भी टीम का हिस्सा है लेकिन फर्क यह है की वो अब दीवार के दूसरी तरफ खड़े है - जहाँ कप्तानी किसी और के हाथ में है.

सीनियर खिलाडियों के रिटायरमेंट को लेकर छिड़ी बहस

युवा टीम कही जाने वाली भारतीय टीम में फिर से एक बार फिर कुछ सीनियर खिलाडियों की रिटायरमेंट को लेकर बहस छिड़ी हुई है. क्रिकेट जगत के कई जानकारों का मानना है की अब युवराज सिंह और महेंद्र सिंह धोनी का संन्यास लेने का समय आ गया है. इसका बिगुल तो सबसे पहले पूर्व कप्तान राहुल द्रविड़ ने बजा दिया जब उन्होंने टीम प्रबंधन से आग्रह करते हुए कहा की टीम मैनेजमेंट को ये फैसला करना होगा की युवराज और धोनी उनके 2019 वर्ल्ड कप रोडमैप में फिट बैठते है या नहीं.

भले ही द्रविड़ ने साफ़ तौर पर यह नहीं कहा की ये दोनों 2019 के लिए टीम में फिट नहीं बैठते है, लेकिन एक बात तो साफ़ है की टीम मैनेजमेंट के लिए द्रविड़ सरीखे खिलाडी का ये इशारा ही काफी है.

कुछ महीने पहले ही पूर्व भारतीय कप्तान धोनी ने अपनी रिटायरमेंट के बारे में सारे अटकलों को ख़ारिज करते हुए कहा था की वह अगले विश्व कप का हिस्सा जरूर होंगे क्योंकि वो पूरी तरह से फिट है. अफवाहें थी कि टेस्ट क्रिकेट से पहले ही रिटायरमेंट लेने वाले धोनी इस साल आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी के बाद लिमिटेड ओवर फॉरमेट को भी अलविदा कह देंगे. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और धोनी ने बार बार प्रेस कांफ्रेंस के जरिये लोगो को बताया है की वो 2019 वर्ल्ड कप के लिए तैयार है.

फिटनेस अच्छी रहने तक खेलना चाहते हैं युवराज

उधर युवराज सिंह पर भी काफी दबाब है. इस साल जनवरी में  पूछे गए सवाल पर 35 वर्षीय इस खिलाडी ने कहा की उन्होंने खेल को अलविदा कहने का प्लान बहुत पहले ही बना लिया था लेकिन उनके ऊपर कोहली के भरोसे ने उन्हें सन्यास लेने से रोक दिया और यही वजह है की वो अभी भी टीम का हिस्सा है. युवराज ने कहा है कि जब तक वो फॉर्म में हैं तथा उनकी फिटनेस अच्छी है तब तक वो क्रिकेट खेलना जारी रखेंगे.

हालांकि राष्ट्रीय चयनकर्ता पैनल के मौजूदा चेयरमैन एमएसके प्रसाद ने कहा है कि युवराज और धोनी के भविष्य पर जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लिया जाएगा. भारत के दोनों पूर्व चैंपियन क्रिकेटरों की टीम में जगह को लेकर सवाल खड़े होने लगे है इसके पीछे जो वजह है वो है इनका हालिया प्रदर्शन - आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी 2017 और उसके बाद वेस्टइंडीज दौरे पर दोनों का प्रदर्शन औसत रहा था.

भारत को कई यादगार जीत दिला चुके हैं धोनी-युवराज

ये वही दो लीजेंड है जिन्होंने अपने बलबूते भारत को कई जीत दिलाई है. अगर आपको याद होगा तो 2006 में पाकिस्तान को उनके घर पर मात देने में इन दोनों खिलाडियों का बहुत बड़ा रोल था.  एक साल बाद ही पहली टी20 वर्ल्ड कप में युवराज के 6 गेंदों पर 6 छक्कों को कौन भूल सकता है. उसी वर्ल्ड कप में धोनी एक सफल कप्तान के तौर पर उभरे थे. टीम को टेस्ट में नंबर एक बनाने से लेकर 2011 वर्ल्ड कप तक के जीत का सफर की यादें लोगों के दिलों में है. धोनी ने अपनी कप्तानी में टीम को 28 साल बाद 2011 वर्ल्ड कप में जीत दिलाई और फाइनल में धोनी का वो छक्का तो शायद ही कोई इस जनम में भूल पायेगा.  इसी छक्के को लेकर सुनील गावस्कर ने कहा था - जब मेरी आखिरी साँसे चल रही होंगी और कोई एक चीज जिसे मैं देखना चाहूंगा वो होगा फाइनल में धोनी का मैच विनिंग छक्का. इसी वर्ल्ड कप में कैंसर से जूझ रहे युवराज ने अपनी पूरी ताक़त झोंक दी थी. उन्हें प्लेयर ऑफ़ द टूर्नामेंट से नवाज़ा गया.

कब तक चलेगा दोनों का बल्ला?

लेकिन घूम फिर कर बात वही आती है जो युवराज ने ही किसी विज्ञापन में कहा था - जब तक बल्ला चल रहा है तब तक ठाठ है, जब बल्ला नहीं चलेगा तो...

बिलकुल यही कहानी हर क्रिकेटर की है, परफॉरमेंस ख़राब हुई नहीं की सवाल उठने शुरू. और ये एक कालचक्र है. सबके साथ ये होती आ रही है. चाहे वो  बैटिंग लेजेंड सुनील गावस्कर हो या फिर सौरव गांगुली. एक समय के बाद खिलाडियों को ये अनुभव होना चाहिए की अब बहुत हो गया, नए खिलाडियों को मौका मिलना चाहिए. हालांकि ऐसा होता नहीं है - हर कोई अपनी करियर को खींचने में कोई कसर नहीं छोड़ता.

चाहे वो कपिल देव हो, या फिर सचिन तेंदुलकर. सबको पता है की ये दोनों खिलाडी 2 साल पहले रिटायर हो सकते थे, लेकिन इन लेजेंड्स को ये बताने की ताक़त न तो बीसीसीआई में थी और ना ही सेलेक्टर्स के पास

लेकिन कुछ ऐसे भी खिलाडी रहे जो थे तो  क्रिकेट के  "वन ऑफ द ग्रेट्स" लेकिन जिन्हे फेयरवेल भी नहीं मिल पाया. वो सचिन और सौरव की तरह किस्मतवाले नहीं थे.

राहुल-लक्ष्मण को नहीं मिला था सचिन-गांगुली जैसा फेयरवेल

द वॉल के नाम से मशहूर राहुल द्रविड़ ने कई मैच में भारत की लाज बचायी होगी. सब कुछ किया - बैटिंग, बोलिंग, कप्तानी और यहाँ तक की विकेटकीपिंग भी. लेकिन 2012 में खेले गए एडिलेड टेस्ट के बाद उन्हें मौका ही नहीं मिल पाया. ऐसा ही कुछ हाल उनके खास पार्टनर वीवीएस लक्ष्मण का रहा. द्रविड़ के रिटायरमेंट के कुछ दिन बाद ही उन्होंने भी एक झटके में ही संन्यास लेने का मन बना लिया.  दुःख की बात ये रही की दोनों को ही अपना फेयरवेल मैच खेलने का मौका नहीं मिला.

और तो और टेस्ट क्रिकेट में रन गति बढ़ाने और इसे दिलचस्प बनाने का श्रेय वीरेंदर सहवाग को ही जाता है लेकिन उनकी भी कहानी कुछ ऐसी ही रही.  भारत के इस दिग्गज को जिस तरह से बाहर किया गया उसे कई लोग तौहीन के तौर पर भी देख सकते  है. उन्होंने तो फेयरवेल मैच के लिए बीसीसीआई से आग्रह भी किया था, लेकिन बोर्ड ने मना कर दिया था.

तो आखिर कब लेना चाहिए खिलाड़ियों को रिटायरमेंट

अब वापस उसी विषय पर आते है की रिटायरमेंट कब लेना चाहिए. मेरे हिसाब से वर्ल्ड क्रिकेट में रिटायरमेंट का सबसे सही उदाहरण है ऑस्ट्रलियाई टीम.

आपको याद होगा 2007 का वर्ल्ड कप - जब फाइनल जीतने के बाद ग्लेन मैकग्रा ने रिटायरमेंट की घोषणा कर दी थी और खास बात ये थी की उन्हें प्लेयर ऑफ़ थे टूर्नामेंट का ख़िताब भी मिला था. वो चाहते तो दो तीन साल आराम से खींच सकते थे.

ऐसा माना जाता रहा है की टीम के कप्तान के तौर पर धोनी की 2008 में ऑस्ट्रेलिया में त्रिकोणीय सीरीज से सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ को बाहर करने में अहम् भूमिका रही. उन्होंने एक बड़ा निर्णय लिया - फ़ील्ड में दिग्गजों की जगह युवाओं को जगह देने का. करीब दस साल बाद नए कप्तान विराट कोहली के सामने भी यही प्रश्न आ खड़ा हुआ है.

 धोनी नहीं है करियर खींचने वाले खिलाड़ी

जितना धोनी को लोग जानते है उससे तो एक बात साफ़ है की वो किसी भी दिन अपने करियर को लेकर एक अहम् फैसला ले सकते है, और पहले भी उन्होंने ऐसे कई फैसले लेकर सभी को चौकाया भी है. वो खींचने वाले खिलाडी होते तो शायद टेस्ट क्रिकेट में कुछ और दिन टिक गए होते और लिमिटेड ओवर फॉरमेट में भी कुछ दिन और कप्तानी कर सकते थे. शायद एक आध सीरीज के बाद धोनी और युवराज शायद उस मुकाम पर होंगे की रिटायरमेंट के बारे में अहम् फैसला ले सके. इसका इंतज़ार जितना उनके आलोचकों को है उतनी प्रतीक्षा उनके चाहने वालों को भी है.