भारत और इंग्लैंड के बीच पहला टी 20 शुरू होने ही वाला था कि एक ट्वीट ने ध्यान खींचा. इसमें परवेज रसूल पर सवाल था. मैच से पहले राष्ट्रगान के समय रसूल च्युइंग गम चबा रहे थे. इससे बढ़िया मुद्दा क्या हो सकता है कि कश्मीर का एक मुस्लिम राष्ट्रगान के समय च्युइंग गम चबा रहा हो! ट्विटर पर मैसेज शुरू हो गए. सवाल पूछे जाने लगे.
यह सही है कि राष्ट्रगान का एक प्रोटोकॉल होता है. लेकिन क्या इतनी ही शिद्दत से यह मुद्दा उठता, अगर रसूल की जगह कोई और क्रिकेटर होता? खासतौर पर ऐसा क्रिकेटर, जो कश्मीर का न हो. साथ ही किसी और धर्म का हो?
एक सवाल और है. क्या यह जरूरी है कि हर जगह, हर मैच से पहले राष्ट्रगान हो? पहले क्रिकेट मैचों में राष्ट्रगान नहीं हुआ करता था. राष्ट्रगान तभी होता था, जब विश्व कप जैसे अहम टूर्नामेंट हों. इंग्लैंड के खिलाफ टी 20 मैचों की सीरीज ऐसी कोई अहमियत नहीं रखती. लेकिन आजकल राष्ट्रगान के लिए अहमियत की जरूरत नहीं है.
पिछले दिनों सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान को लेकर खासा विवाद हो चुका है. अदालत के आदेश के बाद हर फिल्म से पहले राष्ट्रगान होता है. इस पर खड़े न होने वाले पिटते भी हैं. चंद रोज पहले ही दंगल में राष्ट्रगान के वक्त खड़े न होने की वजह से एक बुजुर्ग की पिटाई हुई है.
अब, क्रिकेटर की बारी है. रसूल बार-बार भारतीय होने पर गर्व की बात करते रहे हैं. लेकिन याद रखिए, ये सवाल उनसे हर बार पूछा जाएगा. उनकी हर हरकत पर सख्त नजर रखी जाएगी. तब कोई यह नहीं पूछेगा कि क्या वाकई इस तरह के मैचों में राष्ट्रगान की जरूरत है?
DISAPPOINTED to see Parvez Rasool standing at ease & chewing gum during national anthem. Can wear India jersey, can't sing anthem?
— Chinmay Jawalekar