view all

क्या मुंबई टेस्ट में पार्थिव को बाहर करना अन्याय नहीं होगा

मोहाली टेस्ट में की अच्छी बल्लेबाजी, विकेट कीपिंग में भी ठीक रहा प्रदर्शन

Shailesh Chaturvedi

चयन समिति के अध्यक्ष एमएसके प्रसाद का बयान उस वक्त आया, जब मुंबई टेस्ट में कई दिन बाकी हैं. प्रसाद ने कहा है कि ऋद्धिमान साहा टीम के लिए पहली पसंद हैं. इसमें कोई शक भी नहीं. आखिर वो चोट की वजह से बाहर हुए, अपने खेल की वजह से नहीं. लेकिन क्या इस बयान का मतलब ये नहीं है कि पार्थिव पटेल को मुंबई टेस्ट में मौका नहीं मिलेगा. अगर यही मतलब है तो सवाल उठता है कि पार्थिव की गलती क्या है?

सबसे मुश्किल स्लॉट में किया अच्छा प्रदर्शन


मोहाली टेस्ट में उन्हें आखिरी समय पर बताया गया कि पारी शुरू करनी है, क्योंकि केएल राहुल चोटिल हैं. सुनील गावस्कर से लेकर दुनिया के किसी भी ओपनर से पूछ लीजिए कि पारी शुरू करने का क्या मतलब होता है. वे बताएंगे कि टेस्ट बल्लेबाजी में यही सबसे मुश्किल काम है. जैसे-जैसे फॉर्मेट छोटा होगा, वैसे-वैसे ओपनिंग आसान होती है.

ऐसे समय पार्थिव ने ओपन किया. पहली पारी में 42 रन बनाए. दूसरी में 67 रन बनाकर नॉट आउट रहे. यानी मैच में 109 रन. गौतम गंभीर और केएल राहुल के चार पारियों में मिलाकर 39 रन हैं. जब टीम मुश्किल मे थी, तब वो आए. उसके बाद ऐसी पारियां खेलीं. सवाल पूछे जाएंगे कि पार्थिव को तो विकेट कीपर के तौर पर शामिल किया गया था, तो चर्चा कीपिंग की ही करनी चाहिए.

कीपर के तौर पर गलतियां तो साहा ने भी की हैं

चलिए, कीपिंग की बात कर लेते हैं. मोहाली टेस्ट में विकेट कीपर के तौर पर पार्थिव के लिए कुछ अच्छे लम्हे रहे हैं और कुछ बुरे. लेकिन यही बात ऋद्धिमान साहा के लिए कही जा सकती है. कहने का मतलब यही है कि विकेट कीपिंग में वो साहा से कमजोर नहीं दिखे हैं. लेकिन बल्लेबाजी में साहा से ज्यादा आश्वस्त दिखे हैं.

जबरदस्त दबाव में आई हैं पार्थिव की पारियां

हमें ये भी देखना पड़ेगा कि किस दबाव में पार्थिव ने मोहाली टेस्ट में प्रदर्शन किया है. आठ साल बाद टेस्ट खेला. 12 साल बाद उन्होंने टेस्ट में अर्ध शतक जमाया. 16 अक्टूबर 2004 को उन्होंने चेन्नई में अर्ध शतक जमाया था. सही है कि उसके बाद एक बार वो बाहर गए, तो धोनी ने वापसी का कोई मौका नहीं दिया. लेकिन अब धोनी टेस्ट में नहीं हैं. और साहा कुछ भी हों, धोनी नहीं हैं.

मोहाली टेस्ट के लिए पसंद नहीं, मजबूरी थे

पार्थिव को मोहाली टेस्ट के लिए चुना जाना भी कइयों को भाया नहीं था. 2008 में पिछला टेस्ट खेलने के बाद से कभी वो बहुत मजबूत दावेदार नहीं रहे. उनका आना इस वजह से था कि नमन ओझा चोट से लौटे ही थे. ऐसे में चयनकर्ता चांस नहीं लेना चाहते थे. दिनेश कार्तिक तमिलनाडु के लिए कीपिंग नहीं कर रहे हैं, इसलिए उनके नाम पर उतनी गंभीरता से नहीं सोचा गया. ऋषभ पंत को मौका देना थोड़ा जल्दबाजी होती. इन सारी वजहों से पार्थिव को मौका मिला.

पार्थिव ने करियर की शुरुआत में ही जुझारू क्षमता दिखाई थी. करीब डेढ़ घंटा खेलकर उन्होंने ट्रेंट ब्रिज टेस्ट बचाने में मदद की थी. तब वो सिर्फ 17 साल के थे. अब भी सिर्फ 31 के ही हैं.

प्रसाद के बयान के बाद पार्थिव का विकेट कीपर के तौर पर खेलना मुश्किल है. तो क्या इंग्लैंड ने जिस तरह जोस बटलर को विशेषज्ञ बल्लेबाज के तौर पर खिलाया था, वैसा किया जा सकता है? लेकिन वहां भी केएल राहुल की फिटनेस काफी कुछ तय करेगी. अगर पार्थिव को विशेषज्ञ बल्लेबाज के तौर पर खिलाने की बात होती भी है, तो उसका भारतीय क्रिकेट को कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि मामला शॉर्ट टर्म अरेंजमेंट का ही होगा. ऐसे में सवाल वही है कि क्या दो अच्छी पारियां खेलने के बाद टीम से बाहर किया जाना अन्याय नहीं है?