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क्रिकेट की सलामी से राजनीति की सलामी के ट्विस्ट

यूपी में मंत्री बने चेतन चौहान, पंजाब में मंत्री बने हैं नवजोत सिद्धू

Shailesh Chaturvedi

एक ने कप्तान से नाराजगी की वजह से वॉक आउट किया था. दूसरे ने कप्तान के कहने की वजह से. ये वो समय था, जब देश के लिए खेलते थे. अब दोनों अपने-अपने ‘कप्तानों’ के साथ प्रदेश के लिए खेलेंगे. दो ओपनर राजनीति में मंत्री के तौर पर पारी का आगाज कर रहे हैं. पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू और उत्तर प्रदेश में चेतेंद्र प्रताप सिंह चौहान या चेतन चौहान. बल्कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल में तो दो क्रिकेटर मंत्री बने हैं. चेतन चौहान के अलावा मोहसिन रज़ा को भी मंत्री बनाया गया है.

इन चुनावों में नवजोत सिंह सिद्धू का रवैया कुछ उसी तरह का रहा है, जैसा 1996 में था. तब वो अजहरुद्दीन से नाराज होकर इंग्लैंड दौरा बीच में छोड़कर वापस आ गए थे. बीसीसीआई ने इसके खिलाफ एक कमेटी भी बनाई थी, जिसमें सिद्धू लगातार अपनी गलती बताते रहे. फिर कमेटी के सदस्य सुनील गावस्कर की जगह मोहिंदर अमरनाथ को लाया गया. ये मानते हुए कि सिद्धू और मोहिंदर पंजाबी हैं. इसलिए उन्हें सिद्धू पूरी घटना बता सकते हैं.


क्यों इंग्लैंड से वापस घर आ गए थे सिद्धू

बीसीसीआई के पूर्व सचिव जयवंत लेले ने अपनी किताब में उस घटना का जिक्र किया है. किताब के मुताबिक मोहिंदर को भी सिद्धू साफ नहीं बता रहे थे. एक ब्रेक के दौरान मोहिंदर ने सिद्धू का हाथ पकड़ा और बाहर टहलने चले गए. लौटे तो हंसते हुए कमेटी के बाकी सदस्यों से कहा कि पूरे मामले को भूल जाया जाए. दरअसल, अजहर हर बात में एक शब्द इस्तेमाल करते थे, जिसे उत्तर भारत में गाली माना जाता है. लेकिन हैदराबाद में उसे प्यार की भाषा मानते हैं. तब जाकर वॉक आउट वाला वो मामला खत्म हुआ.

दूसरे ओपनर यानी चेतन चौहान का वॉक आउट 1981 के मेलबर्न टेस्ट में था. सुनील गावस्कर कप्तान थे, जिन्हें एलबीडबल्यू दिया गया. गावस्कर नाराज थे. उन्होंने साथी ओपनर चौहान से वॉक आउट के लिए कहा. चौहान कप्तान की बात मानकर बाहर चल दिए. रास्ते में उन्हें अंपायर की आवाज आई कि अगर बाउंड्री पार कर ली, तो भारत को हारा घोषित किया जाएगा. इस बीच भारतीय मैनेजर दौड़ते हुए मैदान पर आए. चौहान ठीक बाउंड्री से पहले रुक गए. मैच उसके बाद शुरू हुआ और भारत जीता.

बीजेपी और आप से हटकर कांग्रेस से जुड़े सिद्धू

इन चुनावों में भी दोनों का रवैया ऐसा ही रहा है. एक का कप्तान से नाराजगी वाला. दूसरे का कप्तान के साथ चलने वाला. सिद्धू ने बीजेपी छोड़ी. आम आदमी पार्टी में शामिल होने की बात थी. लेकिन अरविंद केजरीवाल के साथ बात नहीं बनी. उसके बाद वो कांग्रेस गए. कहा यही गया कि कांग्रेस के जीतने पर उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाया जाएगा. वो तो नहीं बने, लेकिन जीत के बाद उन्हें कैप्टन अमरिंदर सिंह के मंत्रिमंडल में जगह दी गई.

दूसरी तरफ, चेतन चौहान हमेशा से कप्तान की बात मानने वाले खिलाड़ी जैसे रहे हैं. दो बार सांसद रहे चौहान विधायक का चुनाव लड़ने गए. वो क्रिकेट प्रशासन से भी जुड़े रहे. उनके समय में लगातार डीडीसीए यानी दिल्ली एवं जिला राज्य संघ पर आरोप लगते रहे. लेकिन चौहान खामोश रहे.

सिद्धू को लेकर तमाम तरह की बातें कही जाती रही हैं. एक समय टीम के कोच मदन लाल ने आरोप लगाया था कि कुछ खिलाड़ी मुश्किल पिच देखकर चोटिल होने का ड्रामा करते हैं. भारत का वो वेस्टइंडीज दौरा था. उसके अगले दिन सिद्धू ने पैंट ऊपर चढ़ाकर घुटने की फोटो खिंचवाई थी. सिर्फ ये साबित करने के लिए कि वो चोटिल हैं. उनके बारे में एक क्रिकेटर ने कहा था कि पिच पर हरियाली देखते ही जिन लोगों को बुखार चढ़ जाता था, उनमें सिद्धू भी थे. हालांकि सिद्धू ने कई जीवट भरी पारियां खेली हैं.

स्ट्रोकलेस वंडर से सिक्सर सिद्धू

सिद्धू सलामी बल्लेबाज थे. उनको स्ट्रोकलेस वंडर कहा गया था. वहां से शुरू करके वो सिक्सर सिद्धू बने. उन्हें बहुत कमजोर फील्डर माना जाता था. जब रिटायर हुए तो उन्हें फील्डिंग में कोशिशों के लिए उन्हें जोंटी सिद्धू कहा जाने लगा. उन्हें कभी न बोलने वाला माना जाता था. यहां तक कि वो कहते हैं कि मैं शतक से पहले आउट होने की सोचता था, क्योंकि शतक बनाने के बाद मीडिया से बात करनी पड़ी. वहां से वो क्रिकेट जगत के सबसे वाचाल यानी ज्यादा बोलने वाले लोगों में माने जाते हैं.

सिद्धू कहते रहे हैं कि उनकी जिंदगी बदलने का काम स्वामी विवेकानंद ने किया है. विवेकानंद को पढ़ने के बाद उन्होंने जीवन जीने का तरीका ही बदल दिया. सुबह हमेशा वो सूर्योदय से पहले उठते हैं और पूजा-पाठ उनकी जिंदगी का हिस्सा है. लेकिन अपनी बातों से मुकर जाना भी उनकी जिंदगी का हिस्सा बना हुआ है.

सलामी बल्लेबाज और फिर प्रशासक रहे चौहान

दूसरी तरफ, चेतन चौहान उस दौर में टीम के सलामी बल्लेबाज बने थे, जब भारतीय टीम कमजोर कही जाती थी. उत्तर प्रदेश में जन्म लेकर महाराष्ट्र में क्रिकेट सीखी थी. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सुनील गावस्कर के साथ उन्होंने मजबूत सलामी जोड़ी बनाई. 40 टेस्ट में उनके नाम 16 अर्ध शतक हैं. लेकिन शतक कोई नहीं. लेकिन टीम के लिए उन्हें हमेशा बेहद जरूरी माना जाता रहा.

चौहान दिल्ली में बस गए. वो क्रिकेट प्रशासन से जुड़ गए. चौहान उस वक्त भारतीय टीम के मैनेजर थे, जब टीम 2008 में ऑस्ट्रेलिया गई थी. पिछले कुछ समय भारत का वो सबसे मुश्किल दौरा था. मंकीगेट से लेकर तमाम विवादों को सुलझाने में उनके शांत दिमाग का अहम रोल माना गया. ऑस्ट्रेलिया का वैसे भी चौहान के साथ ऐसा रिश्ता है, जिसे वो कभी नहीं भूल सकते. उनके बेटे की मौत ऑस्ट्रेलिया के शहर एडिलेड में हुई थी. सड़क दुर्घटना में युवा बेटे की मौत हुई थी.

उनके आलोचक हमेशा उन पर आरोप लगाते हैं कि भ्रष्टाचार को देखकर चुप रह जाना उनकी खासियत है. अगर चेतन चौहान उसके सामने खड़े होने की हिम्मत दिखाते, तो शायद दिल्ली क्रिकेट सुधर सकती थी. लेकिन वो हमेशा सत्ता के साथ खड़े रहे. अब भी वो सत्ता के साथ हैं. देखना पड़ेगा कि वो हमेशा कप्तान की बात मानते दिखेंगे या कोई अलग पहचान बनाएंगे. दूसरी तरफ, सिद्धू के लिए भी ये देखना रोचक होगा कि वो कप्तान की बात मानेंगे या फिर कुछ और ऐसा करेंगे, जिससे सुर्खियां मिलती रहें.