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अब क्रिकेट में कोई 'मार्क बाउचर' या 'सबा करीम' नहीं होगा...

एमसीसी ने विकेटकीपरों की चोटों को कम करने के लिए नियम में संशोधन किया

Bhasha

विकेटकीपरों को मैच के दौरान लगने वाली गंभीर चोटों से बचाने के लिए मेरिलबोन क्रिकेट क्लब (एमसीसी) ने ‘टेदर वाली बेल’ के इस्तेमाल को मंजूरी दे दी है जिससे स्टंप उखड़ने के समय बेल की दूरी सीमित हो जाएगी. टेदर वाली का मतलब ये है कि एक तरह से बेल्स को स्टंप्स के साथ जोड़ा जाएगा.

मार्क बाउचर को 2012 में दक्षिण अफ्रीका के इंग्लैंड दौरे पर शुरुआती मैच के दौरान बाईं आंख में गंभीर चोट लगी थी, जब बेल उखड़कर उनकी आंख में लग गई थी. इसके बाद उन्हें सर्जरी करानी पड़ी थी और आखिर में संन्यास लेना पड़ा था.


भारत के पूर्व विकेटकीपर सबा करीम का करियर भी इसी तरह की चोट के कारण खत्म हो गया था. उन्हें 2000 में ढाका में बांग्लादेश के खिलाफ एशिया कप मुकाबले में इसी तरह की चोट लगी थी. अनिल कुंबले की गेंद से बेल उखड़कर बल्लेबाज के जूते से लगकर करीम की दाईं आंख में लग गई थी.

पूर्व भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की भी दाईं आंख में पिछले साल जिम्बाब्वे के खिलाफ अंतिम टी20 अंतरराष्ट्रीय मैच के दौरान बड़ा शाट खेलने की कोशिश में बेल लग गई थी.

इन घटनाओं का संज्ञान लेते हुए एमसीसी ने नियम 8.3 में बदलाव करने का फैसला किया. इसके लिए दक्षिण अफ्रीका और ब्रिटेन की दो कंपनियों ने अपने डिजाइन सौंपे हैं, जिसमें टेदर लीग बेल होंगी. लेकिन इससे बेल गिरने की तेजी और रफ्तार में कोई बदलाव नहीं होगा.

एमसीसी के नियम संबंधित मैनेजर फ्रेजर स्टेवार्ट ने ईएसपीएनक्रिकइंफो से कहा, ‘अगर इससे किसी खिलाड़ी की आंख की रोशनी जाने से बचती है तो इस पर विचार करना महत्वपूर्ण था.’ उन्होंने कहा, ‘कंपनियां अब भी इस पर काम कर रही हैं इसलिए काम भी चल रहा है. लेकिन एमसीसी ने नियमों में इस तरह के उपकरण (टेदर वाली बेल) को अनुमति दे दी है. इसके बाद इसके इस्तेमाल की अनुमति देना संचालन संस्था पर निर्भर करता है.’

नियम 8.3.4 के अनुसार अब, ‘खिलाड़ियों की सुरक्षा के लिए ऐसे उपकरण को रखने की अनुमति दी जाती है जिससे स्टंप से बेल गिरने के समय इसकी दूरी सीमित हो जाएगी. लेकिन मैच के लिए इसकी मंजूरी संचालन संस्था और मैदानी अधिकारियों पर निर्भर होगा.’