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लंबे बालों वाले क्रिकेटर ने कैसे किया था उस मैच में कमाल

माही की कहानी, दिल्ली में उनके कोच एमपी सिंह की जुबानी

MP Singh

माही को याद करता हूं, तो पिछली सदी में जाना पड़ता है. 1999 की बात है. हमारी टीम को एक मैच खेलने के लिए पटना जाना था. विवेक राजदान (टेस्ट क्रिकेटर) उस टीम के कप्तान थे. अचानक अभय शर्मा को चोट लग गई. अभय विकेट कीपर थे. विवेक मेरे पास आया कि अब मैं नहीं जाऊंगा. उनका कहना था कि विकेट कीपर के बिना जाकर क्या फायदा.

मैंने विवेक से पूछा कि अगर विकेट कीपर मिल गया, तो जाएगा? विवेक ने कहा- हां, लेकिन पहले विकेट कीपर का इंतजाम कर दीजिए. मेरे पास बिहार के कई लड़के नेशनल स्टेडियम (अब मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम) में प्रैक्टिस करने आते थे. मैंने तारिक (तारिकुर्रहमान) को फोन किया. उससे पूछा कि क्या तुम लोग एक विकेट कीपर को ला सकते हो? तारिक ने कहा- ला तो सकते हैं, लेकिन आपको पसंद नहीं आएगा.


मुझे समझ नहीं आया. मैंने पूछा कि तारिक, ऐसी क्या बात है कि मुझे पसंद नहीं आएगा? तारिक ने कहा कि सर, वो जरा स्टाइलिश टाइप का है. उसके लंबे-लंबे बाल हैं. आपको डिसिप्लिन पसंद है. शायद आप उसको पसंद न करें. मैंने जवाब दिया कि मुझे बालों से क्या करना. अगर वो विकेट कीपिंग अच्छी कर सकता है, तो उसे लेकर आओ.

आखिर मैच तय हुआ. हमारी टीम चली गई. 5-6 बच्चे बिहार, झारखंड के थे, जिन्हें वहीं टीम को जॉइन करना था. मैं दिल्ली में ही था. लंच टाइम पर मैंने विवेक को फोन किया. मैंने उससे पूछा- वो लड़का कैसी कीपिंग कर रहा है. फोन पर ही विवेक अपनी खुशी नहीं छुपा पा रहा था. उसने कहा- सर, कीपिंग का तो पता नहीं. हमारी अभी फील्डिंग आई नहीं है. लेकिन उसने बैटिंग में 123 रन बना दिए हैं.

कोच एमपी सिंह के साथ महेंद्र सिंह धोनी.

विवेक ने बताया- पिच ऐसी है कि बॉल एंकल हाइट से ऊपर नहीं आ रही. लेकिन इस लड़के ने तो कमाल कर दिया. जहां पर शॉट खेलना मुश्किल है, वहां उसने 6-7 तो छक्के ही मार दिए हैं. उसके बाद माही दिल्ली आया. मेरे पास प्रैक्टिस के लिए. पहले दिन मैंने उसे देखा. मुझे अब भी याद है. मेरे साथ मेरा पुराना ट्रेनी सतपाल रावत था. रावत ने पूछा- सर ये लड़का कौन है. इसका बॉल सेंस गजब का है.

मैं उन लोगों के लिए बता दूं, जिन्होंने कभी क्रिकेट नहीं सीखा है कि बॉल सेंस आपमें होता है या नहीं होता. इसे सिखाया नहीं जा सकता. बैट कैसे आना है. एल्बो कहां होगी, ये सब तो हम सिखा सकते हैं. लेकिन आपको अंदर से महसूस हो कि किस गेंद पर आगे जाना है, किसे बैक फुट पर खेलना है, कौन सी गेंद छोड़नी है.. ये सब बॉल सेंस का हिस्सा है. बड़े खिलाड़ियों में यह जन्मजात होता है.

वह दिन था, जब मुझे लगा कि यह लड़का बड़ा काम करेगा. उस दौरान कई बार मुझे कुछ टीवी चैनलों ने बुलाया. मुझसे टैलेंटेड खिलाड़ियों के बारे में पूछा गया, तो मैंने महेंद्र सिंह धोनी का नाम लिया. लेकिन तब मेरी बातों को गंभीरता से नहीं लिया गया.

वो दिल्ली आता था. रेलवे स्टेशन पर उसे लेने अरुण पांडेय जाता था. अपनी बाइक पर बिठाकर धोनी को लोधी कॉलोनी लाता था. वहां अरुण किराए पर रहता है. वह भी लेफ्ट आर्म स्पिनर था, जो बहुत आगे नहीं जा पाया. अरुण को भी नहीं पता होगा कि उस वक्त कि धोनी इतना बड़ा खिलाड़ी बनेगा. लेकिन धोनी का बड़प्पन देखिए. वो कभी रिश्तों को भूलता नहीं है. उसने अरुण को अपना मैनेजर बनाया. आज भी उसके बिजनेस अरुण देखता है. यह धोनी की सबसे बड़ी खासियत है.

मैनेजर और दोस्त अरुण पांडेय के साथ धोनी. (तस्वीर - अरुण पांडेय की फेसबुक वॉल से साभार)

वह बांग्लादेश टुअर से पहले मेरे पास आया था. ग्राउंड पर उसने कुछ वक्त बिताया. तब मैंने उससे कहा था कि नंबर चार पर खेला कर. उस दौरे में वो नंबर चार पर खेला. यह भी बड़ी बात है, क्योंकि मैं उसका पहला कोच नहीं था. लेकिन उसे रिश्ते समझना और सही-गलत समझना बहुत अच्छी तरह आता है.

आप बताइए, इस मुल्क में कितने ऐसे क्रिकेटर हैं, जिन्होंने धोनी की तरह रिटायर होने का फैसला किया होगा. चाहे टेस्ट क्रिकेट छोड़ना हो. चाहे वनडे और टी 20 की कप्तानी छोड़नी हो. एक बार फैसला कर लिया, तो कर लिया. फैसले की टाइमिंग ऐसी रही कि सबको दंग कर गई. यही महेंद्र सिंह धोनी का कैरेक्टर है.

(एमपी सिंह दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में भारतीय खेल प्राधिकरण के क्रिकेट कोच हैं. महेंद्र सिंह धोनी दिल्ली में यहीं अभ्यास किया करते थे. लेख शैलेश चतुर्वेदी के साथ बातचीत पर आधारित है.)