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मेकन के धूल भरे मैदानों से क्रिकेट की ऊंचाई तक

धोनी ने वनडे और टी 20 की कप्तानी से भी रिटायरमेंट की घोषणा की

Manish Kumar

टीम इंडिया को कामयाबी की बुलंदियों पर पहुंचाने वाले महेंद्र सिंह धोनी माही की नसों में क्रिकेट रचा बसा है. ये कहना किसी भी तरह गलत न होगा. झारखंड की राजधानी रांची की मिट्टी में पले-बढ़े धोनी यहां के मेकन के धूल भरे मैदानों में खेल कर सबसे ऊंचाई पर पहुंचे.

आम मिडिल क्लास फैमिली से नाता रखने वाले धोनी का पहला प्यार क्रिकेट नहीं था. बचपन में वो फुटबॉल को लेकर क्रेजी थे लेकिन फिर जोर दिए जाने पर उन्होंने क्रिकेट को अपना लिया.


आम तौर पर क्रिकेट खेलने वाले ज्यादातर युवाओं के बैट्समैन या बॉलर बनने के सपने से अलग रांची के इस राजकुमार ने विकेटों के पीछे अपना ठिकाना चुना.

घरवालों से बच-बचाकर और पढ़ाई का प्रेशर झेलकर धोनी ने क्रिकेट में अपना पांव जमाया. आगे चलकर मैदान पर अपनी और भारत की कामयाबी के झंडे गाड़े.

रांची में धोनी का गजब का क्रेज है. यहां के युवा धोनी को लेकर दीवाने हैं. उन्होंने धोनी के कूल लुक और उनके लंबे लहराते बालों को अपने पर ढाल लिया.

गाड़ियों और बाइक का गजब क्रेज

धोनी से जुड़ी कोई भी खबर आने पर रांची के मशहूर फिरायालाल चौक पर उनके फैन्स मिनटों में जमा हो जाते हैं और जश्न का दौर शुरू हो जाता है.

कूल लुक वाले धोनी को गाड़ियों और बाइक का गजब का क्रेज है. क्रिकेट से फुर्सत पाकर जब वो अपने होमटाउन में होते हैं तो उन्हें अक्सर रांची की खुली सड़कों पर बेफिक्री से बाइक दौड़ाते देखा जा सकता है.

वक्त निकालकर माही फुटबॉल के मैदान में भी किक जमाते दिख जाते हैं. माही फुटबॉल खेलना भी खूब इन्जवॉय करते हैं.

फरवरी 2007 में वेस्टइंडीज में भारत के निराशाजनक प्रदर्शन से जब पूरे देश में टीम इंडिया के खिलाफ फैन्स में जबरदस्त गुस्सा था. तब भी उनके अपने शहर के लोगों को माही पर पूरा भरोसा था.

टीम इंडिया की नाकामी पर मेकन कॉलोनी के उसी मैदान में मैंने उनके शर्मीले पिता पान सिंह से इस बारे में बात की. मुझे याद आता है कि, चेहरे पर मुस्कुराहट लेकर वो सबको धीरज रखने का भरोसा दे रहे थे.

उन्होंने फैन्स से कहा कि, खेल है उसमें जीत और हार लगी रहती है. लेकिन हमें किसी हालत में अपने खिलाड़ियों का हौसला बनाए रखना चाहिए.