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क्यों गहरा असर जमाएगी इस 'रूट' की जड़

क्या उम्मीद कर सकते हैं इंग्लैंड के नए कप्तान से?

Peter Miller

2016 हैरत करने वाली खबरों का साल था. ट्रंप, ब्रेक्सिट से लेकर बहुत कुछ हुआ. तमाम लोग उम्मीद कर रहे होंगे कि 2017 थोड़ा शांत साल साबित हो. इसी बीच इंग्लैंड क्रिकेट से खबर आई हैं, जो कतई चौंकाने वाली नहीं हैं. पहला, एलिस्टर कुक ने इंग्लैंड के टेस्ट कप्तानी छोड़ने का फैसला किया. उनके लिए जाने का वक्त आ गया था.

दूसरी खबर कि जो रूट को उनकी जगह कप्तानी सौंप दी गई है. जब एंड्रयू स्ट्रॉस ने उन्हें 2015 में उप कप्तान बनाया था, तभी से तय था कि वही अगले कप्तान होंगे. इंग्लैंड के डायरेक्टर, क्रिकेट का पद संभालने के बाद स्ट्रॉस के शुरुआती फैसलों में से एक था.


इस बार जब कुक ने पद छोड़ा, तो योजना साफ थी. स्ट्रॉस ने स्टुअर्ट ब्रॉट और बेन स्टोक्स से बात की. रूट से तो बात की ही थी. इनसे कप्तानी के विकल्पों पर बात की. लेकिन ये सिर्फ औपचारिकता थी. रूट का ही नाम था और वही सही फैसला था. टीम में उनकी जगह पक्की है, टीम साथियों और विपक्षियों से उन्हें सम्मान मिलता है. दुनिया के वो बेस्ट बल्लेबाजों में हैं. सही मायनों में वही अकेले विकल्प थे. ब्रॉड पुरानी जमात के हैं. बेन स्टोक्स आक्रामक और जरूरत से ज्यादा भावुक हैं. टेस्ट कप्तानी के लिए ऐसे लोग मुश्किल पसंद हैं. हालांकि उन्हें रूट का उप कप्तान बनाया गया है.

रूट के पास कप्तानी का ज्यादा अनुभव नही है. उनकी कप्तानी पर तब बहुत बात हुई थी, जब यॉर्कशर 2014 में मिडिलसेक्स के खिलाफ 472 रन बचाने में नाकाम रही थी. पहली पारी में दोनों टीमें 200 रन भी नहीं बना पाई थी. लेकिन इसके बाद पिच चमत्कारिक तरीके से निर्जीव होती गई. क्रिस रोजर्स ने 241 रन बनाकर मिडिलसेक्स को सात विकेट से जीत दिला दी.

उस मैच पर बात करते हुए उनसे  पूछा गया कि वह किस तरह के कप्तान बनेंगे. उन्होंने जवाब में कहा था कि मुझे नहीं पता. उन्होंने कहा, ‘मुझे यह पता करने के लिए कप्तान बनना होगा. शायद मैं आक्रामक और रिलैक्स रहूंगा.’

उन्होंने सही कहा. जब तक कप्तानी न मिले, वह नहीं बता सकते कि क्या कर पाएंगे. लेकिन यकीनन वो कुक के मुकाबले ज्यादा रिलैक्स दिखते हैं. रूट को देखकर ऐसा लगता है कि वो क्रिकेट खेलने में ज्यादा मजा ले रहे हैं. हालिया समय में उन्होंने कप्तान के तौर पर ज्यादा सक्रिय रोल अदा किया है. कुक जब भी मैदान से बाहर होते थे, कुक चार्ज संभालते थे. वह ज्यादा भरोसेमंद दिखाई देते थे.

भारत के हालिया दौरे पर जब कुक मैदान पर नहीं थे, तब रूट ने खुद को गेंदबाजी पर लगा लिया. उन्होंने दो विकेट भी लिए. वह कुछ अलग आजमाने के लिए तैयार दिखाई देते हैं. यह बात चलती रही है कि रूट को सभी फॉरमेट की कप्तानी दे देनी चाहिए. वह तीनों फॉरमेट में खेलते हैं. ऐसे में एक ही आदमी के पास पूरा काम होगा.

ऐसा होना संभव नही दिख रहा था. ऑइन मॉर्गन ने टी 20 और 50 ओवर क्रिकेट में अच्छी कप्तानी की है. ऐसे में अच्छी तरह चल रहे किसी काम को बदलने का कोई खास मतलब नहीं है.

रूट के लिए कप्तानी के असली टेस्ट से पहले हनीमून पीरियड होगा. उन्हें जुलाई में पहली बार कप्तानी के लिए उतरना है. दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट होंगे. अगर इससे पहले उन्हें अपनी क्रिकेट में कुछ बदलाव की जरूरत महसूस हुई, तो वो कर सकते हैं. इंग्लिफ फुटबॉल को बार-बार बदलाव के लिए जाना जाता है. क्रिकेट में ऐसी परंपरा नहीं है. 21वीं सदी की शुरुआत से सिर्फ परमानेंट टेस्ट कप्तान रहे हैं. सिर्फ पीटरसन को अपने पद से हटाया गया है. बाकी सभी अपना समय खत्म होने पर हटे हैं.

रूट अगर दक्षिण अफ्रीका और वेस्ट इंडीज के खिलाफ संघर्ष करते हैं, तो भी प्रशंसकों और मीडिया का सहयोग मिलेगा. उनका असली टेस्ट तब शुरू होगा, जब इंग्लैंड की टीम ऑस्ट्रेलिया जाएगी. वहां पर नाकामी अपने साथ तमाम सवाल लाएगी. लेकिन अभी नाकामी की बात क्यों. कप्तान के तौर पर रूट के लिए नाकामी दूर की कौड़ी लगती है. अंतरराष्ट्रीय करियर में जब भी रूट को आजमाया गया है, वो कामयाब रहे हैं. यह सोचना मूर्खता होगी कि वो इस चुनौती पर खरे नहीं उतर पाएंगे.