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दुखदाई है हमारे और अपने कश्मीर के बीच क्रिकेट के इस ‘पुल’ का खराब रख-रखाव

जम्मू-कश्मीर के रणजी और अन्य आयु वर्ग के क्रिकेटरों को 2015, 2016 और 2017 में मैच फीस और दैनिक भत्ता नहीं मिला है

Jasvinder Sidhu

कश्मीर में क्या हालात हैं, हम सभी को अंदाजा है. भावनाओं को एक तरफ रख कर इन परिस्थितियों को देखने के बाद ही सही स्थिति का आकलन होता है. जम्मू कश्मीर पुलिस, अर्धसैनिक बलों और सेना के जवान हर दिन वहां की आम जनता का गुस्सा झेल रहे हैं.

आजादी की मांग वहां नई नहीं है. हालांकि पिछले कुछ सालों की इस हल्की आग में पाकिस्तान ने कामयाबी से पेट्रोल डालने का काम किया है. लेकिन वह घाटी के क्रिकेट को प्रभावित नहीं कर पाया है. या हम यूं भी कह सकते हैं कि क्रिकेट ही अकेला मजबूत पुल बचा है, जो हमारे कश्मीर को हमारे मुल्क के साथ जोड़ रहा है.


हाल ही में इस लेखक को घाटी का लंबा दौरा करने का मौका मिला. जिस समय मीडिया में सेना के जवानों को पत्थर मारने वाले छात्रों की बात हो रही है, बिजबिहारा या श्रीनगर के क्रिकेट मैदानों में टीम इंडिया के लिए सपना देखने वाले युवा क्रिकेटरों की कमी नहीं थी.

परवेज रसूल ने जगाई थी उम्मीद

2013 बिजबिहारा के युवा स्पिनर परवेज रसूल का जिम्बाब्वे को दौरे के लिए चुना जाना बड़ी खबर बना था. लेकिन उस दौरे पर रसूल को खेलने का मौका नहीं मिला. एक साल बाद ढाका में बांग्लादेश के खिलाफ वनडे में परवेज बतौर पहले कश्मीरी क्रिकेटर के तौर पर भारत के लिए खेलने उतरे.

उसके बाद से वहां के सैकड़ों क्रिकेटर जम्मू-कश्मीर की रणजी टीम या फिर किसी आईपीएल की टीम के अलावा भारत के लिए खेलने की तमन्ना रखने की बात बेखौफी से करते हैं.

अपने डेब्यू मैच के वक्त कैप लेते जम्मू-कश्मीर के पहले इंटरनेशनल क्रिकेटर परवेज रसूल

पिछले दो साल से घाटी के हालात तनावग्रस्त हैं. लेकिन इस माहौल में एक भी चुना गया कश्मीरी क्रिकेटर अपनी  टीम या आयु वर्ग की टीम को छोड़ कर नहीं गया और लगता नहीं कि वह आगे भी हटेंगे.

ऐसा भी नहीं है कि उन पर परिवार, दोस्तों और समाज का दबाव नहीं है. लेकिन बतौर पेशेवर क्रिकेटर बनने के सपने के सामने यह सारे बुरे हालात धुंधले पड़ गए हैं. यह सही है कि कश्मीर के क्रिकेटर घर से आने वाले दवाब को झेल गए हैं. लेकिन इस सब में बाहर से हो रही उनकी अनदेखी काफी परेशान कर देने वाली है.

जम्मू-कश्मीर की टीम के साथ नहीं हो रहा न्याय

बात हैरानी की है लेकिन सही है कि जम्मू-कश्मीर के रणजी और अन्य आयु वर्ग के क्रिकेटरों को 2015, 2016 और 2017 में मैच फीस और दैनिक भत्ता नहीं मिला है. हाल ही में बीसीसीआई से जम्मू-कश्मीर के कोच और दिल्ली के पूर्व बल्लेबाज मिथुन मनहास को सीधे उनकी फीस भेज दी लेकिन बाकी किसी भी खिलाड़ी को भुगतान नहीं किया गया.

कश्मीर में क्रिकेटर खेलने वाले अधिकतर क्रिकेटर काफी कमजोर परिवारों से आते हैं. नौकरियां नहीं हैं तो क्रिकेट परिवार की मदद करने का एक जरिया बना हुआ है. बीसीसीआई काफी समय से वादा कर रही है कि बकाया का भुगतान हो जाएगा लेकिन यह वादा पूरा नहीं हुआ है.

इसके कई कारण हैं. एक तो जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिशन में भ्रष्टाचार को लेकर कोर्ट में केस चल रहा है और दूसरा बीसीसीआई को सुप्रीम कोर्ट की ओर से तय क्रिकेट कमेटी चला रही है.

उसे हर फैसला लेने के लिए कानूनी किताब के पन्ने पलटने पड़ते हैं. इसमें कुछ गलत नहीं हैं. लेकिन बीसीसीआई ने इन तीन सालों में भ्रष्टाचार के आरोप झेल रही दिल्ली, झारखंड, हैदराबाद, केरल जैसी एसोसिएशन को पैसा कभी नहीं रोका.

उसके ऊपर बीसीसीआई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के वेतन में जबरदस्त इजाफे को लेकर भी विवाद चल रहा है. जब ये सब हो रहा है तो जम्मू-कश्मीर के क्रिकेटरों को क्यों लटकाया जा रहा है! साफ है कि कश्मीर हमारा है और उसके क्रिकेटर भी. तो उनके साथ भी देश की बाकी टीमों की तरह न्याय किया जाए.