बीसीसीआई ने गुरुवार शाम को भारत के पूर्व बल्लेबाज डब्ल्यू वी रमन को भारतीय महिला टीम का नया कोच तो नियुक्त कर दिया लेकिन सवाल है कि क्या भारत ने गैरी कर्सटन का ना चुनकर कर एक बड़ा मौका गवां दिया है? दरअसल कपिल देव की अगुआई वाले पैनल की पहली पसंद तो कर्स्टन ही थे लेकिन हितों के टकराव के चलते उन्हें यह पद नहीं दिया जा सका है.
अब सवाल यह है कि क्या बीसीसआई को यह पता नहीं था कि आईपीएल में कर्सटन ने दो महीने पहले ही आरसीबी की टीम के कोच की जिम्मदारी संभाली है. इसकी जानकारी होने के बावजूद क्यों उनका इंटरव्यू लिया गया. टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक बोर्ड के एक अधिकारी का कहना है कि भारतीय महिला क्रिकेट ने एक बहुत बड़ा मौका गंवा दिया है. उनके मुताबिक साल 2011 में टीम इंडिया के कोच का पद छोड़ने के बाद पहली बार कर्स्टन ने भारत में किसी फुल टाइम कोचिंग पद के लिए दिलचस्पी दिखाई थी. और खासतौर से इस बार वह पैडी अप्टॉन और इरिक सिमंस जैसे अपने सपोर्ट स्टाफ के बिना कोचिंग देन पर राजी हो गए थे.
यह भी पढ़ें: अदालत से मिले जमानती वारंट पर क्या है गौतम गंभीर का 'पूरा सच'!
यानी भारतीय महिला टीम को एक एसा कोच देने का मौका था जिसने मेंस टीम को टेस्ट रैंकिंग में नंबर वन के पायदान पर पहुंचाया और वर्ल्ड चैंपियन भी बनाया लेकिन हितों के टकराव का मसला बीच में आ गया.
एक सवाल यह भी है कि क्या बीसीसीआई ने इस मसले के लिए होमवर्क नहीं किया था? जब कर्स्टन ने इस पोस्ट के लिए दिलचस्पी दिखाई थी तो क्या यह बीसीसीआई की जिम्मेदारी नहीं थी कि उन्हें हितों के टकराव के मसले की जानकारी दी जाती और फिर वह अपना आवेदन ही नहीं भेजते.
दूसरी और सबसे अहम बात यह कि आरसीबी के साथ कर्स्टन के करार में संभवत: ‘बाय आउट’ का प्रावधान भी है जिसके तहत कर्सटन को इस टीम से खरीदा जा सकता है. तो स्वाल है कि क्या बीसीसीआई ने इस ऑप्शन पर विचार किया? और अगर किया तो क्या कर्सटन की कीमत उसे बहुत ज्यादा लगी? और अगर लगी तो सवाल तो उठेगा ही कि दुनिया के सबसे रईस क्रिकेट बोर्ड ने पैसों की कंजूसी करते हुए महिला टीम को एक ऐसा कोच देने का मौका गंवा दिया जिसकी काबिलियत जग जाहिर है.