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भारत-वेस्टइंडीज सीरीज : धोनी-रहाणे टीम के लिए खेल रहे हैं या सिर्फ अपने लिए?

ऐसा लग रहा थी कि दोनों टीम को जिताने के बजाय अर्ध शतक बनाने को लेकर ज्यादा फिक्रमंद थे

Akshaya Mishra

यह वक्त है, जब भारत की महान क्रिकेट टीम से कुछ सवाल पूछे जाने चाहिए. क्या वे उतने ही मजबूत हैं, जितना हम बताते रहे हैं? क्या महानता का औरा दरअसल, सिर्फ एक गुब्बारे जैसा है, जिसे कभी भी पिन चुभाकर फोड़ा जा सता है. बस, विपक्षी पर निर्भर है. भले ही वो क्वालिटी में विपक्षी टीम बड़ी कमजोर हो, तो भी.

हर कोई सोच रहा था कि वेस्टइंडीज और भारत के बीच मुकाबला एकतरफा होगा. दोनों टीमों में बहुत बड़ा फर्क है. लेकिन भारत ने प्रशंसकों को हार के साथ स्तब्ध कर दिया है. इस हार ने टीम की लगातार कामयाबी की क्षमता पर सवाल उठाए हैं.


कोई वजह नहीं कि भारत को चौथा वनडे हारना चाहिए था. 190 रन का टारगेट किसी भी लिहाज से मुश्किल नहीं था. एंटीगा में बैटिंग कंडीशन भी दो दिन पहले हुए मैच के मुकाबले बेहतर थीं. तब भारत 93 रन से जीता था.

भारत की तरफ से दो अर्ध शतक बने. अजिंक्य रहाणे ने 60 और महेंद्र सिंह धोनी ने 54 रन बनाए. इन्हें दूसरे बल्लेबाजों से थोड़ा सा सपोर्ट चाहिए था. आराम से जीत जाते. वेस्टइंडीज के पास ऐसा कोई चौंकाने वाला गेंदबाजी आक्रमण नहीं है. जब तक हारना तय न कर लें, तब तक टीम इंडिया इसे नहीं हार सकती थी.

इन सबसे भारतीय बैटिंग की कमजोरी को लेकर पूरी कहानी पता नहीं चलती. चैंपियंस ट्रॉफी में पाकिस्तान के खिलाफ हार से ये कमजोरियां सबके सामने आ गई थीं. अगर टॉप ऑर्डर बड़ा स्कोर नहीं कर पाए, तो बाकी टीम धराशायी हो जाती है.

टॉप ऑर्डर के बाद लड़खड़ा जाती है टीम इंडिया

वेस्टइंडीज के कप्तान जैसन होल्डर ने पूरी बात को सही तरीके से रखा, जब उन्होंने कहा, ‘भारत का टॉप ऑर्डर अच्छा प्रदर्शन करता रहा है. यहां शिखर धवन, रहाणे और विराट कोहली को जल्दी से जल्दी आउट करना बहुत जरूरी है.’ चैंपियंस ट्रॉफी में भारतीय बल्लेबाजी धवन, रोहित शर्मा और कोहली के आउट होने के बाद धराशायी हो गई थी. भले ही रहाणे ने 60 रन बनाए, लेकिन उसके अलावा लगभग वही कहानी रविवार को दोहराई गई.

अब जरा बात हो जाए रहाणे और धोनी की पारी पर. रहाणे ने 91 गेंद में 60 और धोनी ने 114 गेंदों में 54 रन बनाए. वाकई ये समझ से बाहर है. दोनों बल्लेबाज टीम की जरूरत से ज्यादा अपने नाम के सामने बड़ा स्कोर हो, इसे लेकर फिक्रमंद दिखाई दिए हैं. पिछले मैच में दोनों ने लगभग रन प्रति गेंद स्कोरिंग की थी.

दोनों के पास काफी अनुभव है. सही समय पर वे गीयर बदल सकते हैं. सही रफ्तार से रन बना सकते हैं. हालिया पारी संकेत देती है कि उनकी प्राथमिकता पहले अर्ध शतक बनाने की थी. भले ही उसके लिए कितनी भी गेंद खेलनी पड़ें.

रहाणे और धोनी टीम के लिए खेले या अपने लिए?

क्या उन्हें टीम में अपनी जगह को लेकर संदेह है? हो सकता है. ओपनर के स्लॉट के लिए कई मजबूत दावेदार हैं. इसका पूरा चांस है कि रोहित की वापसी के बाद रहामे को टीम में जगह न मिले. उनकी तकनीक बहुत मजबूत है. लेकिन कई बार वो बहुत धीमे दिखाई देते हैं. अगर कोई बल्लेबाज शुरुआत में सेटल डाउन होने के लिए कुछ ओवर खेलता है, तो उससे उम्मीद की जाती है कि रनों का पीछा करने में कामयाब होकर लौटेगा. रहाणे के मामले में ऐसा नहीं हो रहा.

धोनी का मामला भी अजीब है. उन्हें महान फिनिशर माना जाता है. पिछले दशक में रनों का पीछा करते हुए भारत की कामयाबी में उनका योगदान शानदार रहा है. लेकिन इन दिनों वो मैच को अपनी धीमी बल्लेबाजी से आखिरी ओवर तक खींच लाते हैं. इतनी दूर तक ले जाते हैं कि आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि क्या ये वही धोनी हैं, जो विपक्षी टीम को पूरी तरह खत्म करने की काबिलियत रखते रहे हैं?

उन्होंने 114 गेंद खेलीं. करीब 20 ओवर. आप उम्मीद करते हैं कि जब धोनी इतने ओवर खेलें, तो टीम जीते. लेकिन हुआ क्या. रहाणे की तरह वो भी पहले बड़ा स्कोर बनाने के लिए खेले. उसके बाद टीम का खयाल आया. क्या ये 2019 विश्व कप के लिए दावेदारी में बने रहने की कोशिश है? हो सकता है.

जो भी हो, इस तरह की बल्लेबाजी टीम के लिए काम की नहीं. रवींद्र जडेजा और युवराज सिंह की बल्लेबाजी में कंसिस्टेंसी नहीं है, इसने भी हालात बिगाड़े हैं. बड़ा सवाल यही है कि क्या धोनी, युवराज और रहाणे को वनडे टीम मे रखा जाना चाहिए? वेस्टइंडीज के खिलाफ एक हार से टीम पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन इसने संकेत दे दिए हैं कि टीम के बारे में सोचा जाए.