पहाड़ियों से घिरा धर्मशाला. यहां जाने पर हमेशा अनुराग ठाकुर बड़े गर्व के साथ स्टेडियम दिखाते रहे हैं. उनके लिए यह सपनों का स्टेडियम रहा है. उनके सपनों के स्टेडियम में साल का अंत टीम इंडिया के लिए बुरी हार के साथ हुआ है. टीम इंडिया, जिसे एक बार बीसीसीआई की तरफ से कोर्ट में टीम बीसीसीआई भी कहा गया था. उसके लिए धर्मशाला और अनुराग ठाकुर के इस स्टेडियम के साथ समन्वय ठीक नहीं रहा.
2017 की शुरुआत अनुराग ठाकुर के लिए बेहद खराब रही थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उन्हें बीसीसीआई अध्यक्ष पद से हटना पड़ा था. उसके सिर्फ दो महीने बाद भारत को धर्मशाला में टेस्ट खेलना था. लेकिन तब हालात अलग थे. मैदान के अंदर भी और बाहर भी. तब अनुराग ठाकुर ने नहीं सोचा होगा कि हालात उनकी तरफ नहीं होंगे. उसी दौरान भारत को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट खेलना था.
क्या जानबूझकर पिच बनाई गई, जहां गेंदबाजों के लिए मदद थी?
तो क्या इस बार जानबूझकर ऐसी पिच दी गई, जो गेंदबाजों के लिए मददगार है? आखिर यहीं पर पहले तीन और वनडे खेले गए. उनमें कभी स्कोर इतना कम नहीं रहा. यहां तक कि वेस्ट इंडीज के खिलाफ मैच में तो भारत ने 330 रन बनाए थे. इससे पहले भारत ने सिर्फ एक बार पहले बल्लेबाजी की थी. वो मैच हारा जरूर था, लेकिन रन बने थे 226. इसी तरह यहां टी 20 मैच में भी भारत ने 199 रन बना दिए थे. एकमात्र टेस्ट की दोनों पारियों में भी स्कोर 300 या ज्यादा था.
लेकिन हम सब जानते हैं कि टेस्ट के दौरान सीजन का अंत था. हम सब यह भी जानते हैं कि सीजन का अंत होता है, तो पिच तेज गेंदबाजों के मुकाबले स्पिनर्स को ज्यादा मदद करने लगती है. तब हुआ भी वही था. मार्च में मैच हुआ था. भारत के लिए स्पिनर्स ने 20 में से 12 विकेट झटके थे. ऑस्ट्रेलिया के लिए भी स्पिनर नैथन लायन ने भारत की पहली पारी में पांच विकेट लिए.
सीजन की शुरुआत में मिलती है गेंदबाजों को मदद
अब हालात अलग हैं. सीजन की शुरुआत है. पहाड़ों में सर्दियों अपने शबाब की तरफ जा रही हैं. पिच ताजा है. यह अलग बात है कि लोग तर्क दे सकते हैं कि वेस्ट इंडीज के खिलाफ 330 रन बने थे, तब भी सीजन की शुरुआत थी. वो अक्टूबर का महीना था. लेकिन तब पिच का रंग इतना हरा नहीं था. यह भी सच है कि तब अनुराग ठाकुर बीसीसीआई का चेहरा बनते जा रहे थे. इस बार जैसे ही चेहरा बदला और पिच का हरा रंग दिखा, टीम इंडिया का चेहरा भी सुर्ख हो गया.
टीम इंडिया की ऐसी हालत तब हुई, जब श्रीलंकाई टीम में कोई भी ऐसा कोई भी गेंदबाज नहीं था, जो लिली, थॉमसन से लेकर वकार, वसीम अकरम जैसा हो. मेहमान टीम लगातार साल में 12 वनडे हारकर धर्मशाला आई थी. टेस्ट सीरीज में हालत यह थी कि श्रीलंका को लग रहा होगा कि दिन जितनी जल्दी बीत जाएं, अच्छा है. लेकिन जैसे ही पिच का रंग बदला, सब बदल गया. श्रीलंकाई टीम जैसी थी, वैसी ही है. लेकिन भारतीय टीम का मिज़ाज पूरी तरह बदल गया.
गांगुली के कोलकाता में भी पहली पारी में ढेर हुई थी टीम इंडिया
याद कीजिए, चंद रोज पहले सौरव गांगुली के कोलकाता में भी भारत को ऐसी ही पिच मिली थी. वहां भी गेंदबाजों के लिए थोड़ी मदद थी. वहां अगर श्रीलंका की जगह कोई बेहतर टीम होती, तो भारत के लिए वापसी का रास्ता नहीं छोड़ती. लेकिन अभी मुद्दा यह नहीं है कि श्रीलंका कैसी टीम है. अभी मुद्दा यह है कि दक्षिण अफ्रीका दौरे से ठीक पहले दो बार गेंदबाजों के लिए मददगार पिच मिली हैं. दोनों बार भारतीय टीम फेल रही है.
पहले सौरव गांगुली के शहर में एक वॉर्निंग मिली थी. अब अनुराग ठाकुर के शहर में ऐसा हुआ है. सही है कि पिच में काफी मूवमेंट था. लेकिन उस मूवमेंट के सामने टिकना ही तो असली क्रिकेटर की पहचान होता है. जैसे महेंद्र सिंह धोनी ने किया. फ्लैट पिच पर खेल-खेल कर टीम साउथ अफ्रीका जाने वाली है. ठाकुर के शहर ने जो झटका दिया है, उम्मीद है कि उससे कुछ सीखकर टीम दौरे के लिए रवाना होगी. वरना हाल वही होगा, जो धर्मशाला में हुआ. वहां तो सामने वाली टीम श्रीलंका जैसी कमजोर भी नहीं है.