view all

विदेशी जमीन पर हर टीम का रिकॉर्ड खराब, हल्ला सिर्फ टीम इंडिया को लेकर क्यों!

क्लाइव लॉयड की वेस्टइंडीज टीम के बाद कोई भी ऐसी टीम नहीं है जिसने हर विदेशी टीम पर जीत हासिल की हो

Vedam Jaishankar

कहा जाता है कि वर्ल्ड चैंपियंस का कोई होम ग्राउंड नहीं होता है. बाकी खेलों पर शायद यह बात सटीक बैठती हो, लेकिन क्रिकेट में ऐसा मुश्किल ही देखने को मिलता है. होम ग्राउंड के बाहर खेलने वाली टीम को फैंस से लेकर मौसम तक बहुत से बदलावों का सामना करना होता है.

साउथ अफ्रीका के खिलाफ पहले टेस्ट में मिली हार के बाद से भारतीय टीम लगातार फैंस के गुस्से का शिकार हुई है जिससे टीम को बहुत सी उम्मीदें थीं. लोग उन्हें घर का शेर कहने लगे हैं. मीडिया ने भी अलग-अलग तरीकों से लोगों के गुस्से को भड़काने की कोशिश की.


इंग्लैंड की टीम भी घरेलू मैदान छोड़कर एशेज की जंग लड़ने ऑस्ट्रेलिया पहुंची.इस टीम ने वो सब किया जो एक्सपर्ट भारत को साउथ अफ्रीका में करने की सलाह दे रहे थे. सही समय पर पहुंचना, ज्यादा प्रेक्टिस सेशन करवाना, वहां के मौसम के साथ तालमेल बिठाना, वार्मअप मैच खेलना. इंग्लैंड टीम ने यह सब किया, लेकिन इसके बावजूद सीरीज में टीम को 0-4 की करारी मात देखनी पड़ी. टीम एक भी मैच में जीत हासिल करने में नाकाम रही.

इसके जीत के साथ ही मेजबान टीम की एशेज जीतने की प्रथा जारी रही. इन दोनों ही टीमों को अपने हाल के भारतीय दौरे पर भी बड़ी हार का सामना करना पड़ा था. भारत ने दौरे पर आई मजबूत ऑस्ट्रेलियन टीम को 2-1 से मात दी थी. इसके बाद इंग्लैंड को भी भारत से 0-4 से टेस्ट सीरीज में हार मुंह देखना पड़ा, जिसके दो मैचों में भारत ने इंग्लैंड को पारी से मात दी थी. यहां तक की साउथ अफ्रीकी टीम भी भारत में जीत हासिल करने के लिए तरस गई थी. कुछ साल पहले भारतीय दौरे पर आई टीम को 3-0 से क्लीन स्वीप कर दिया गया था. फिर जब भारत इन देशों के दौरे पर गया तो इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलियाई ने  टीमों बड़ी आसानी से भारत को मात दे दी.

दरअसल पिछले 50 सालों में क्लाइव लॉयड की वेस्टइंडीज टीम के अलावा सही मायनों में कोई टीम चैंपियन नहीं बनी. लॉयड की शानदार तेज गेंदबाजों से भरी टीम ने हर टीम को उसके घर में हराया, चाहे इंग्लैंड हो ऑस्ट्रेलिया हो या भारत. इसके बाद काफी हद तक स्टीव वॉ की टीम ने भी विश्व भर में जीत हासिल की, लेकिन उनका विजय रथ भारत आकर थम गया. तो आखिर क्या वजह है कि घर में रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन करने वाले क्रिकेटर विदेशी जमीन पर ठंडे पड़ जाते हैं.

बाकी खेलों की बात की जाए उनमें भी टीमों को अपने देश से बाहर जाकर दूसरी टीमों से भिड़ना होता है, लेकिन मौसम को छोड़ दिया जाए लगभग हर चीज एक जैसी ही होती है. लेकिन क्रिकेट में ऐसा नहीं होता. क्रिकेट में पिच, ग्राउंड साइज, गेंद से लेकर मौसम तक का असर खेल पर पड़ता है. डीआरएस के आने से पहले अंपायर भी हार और जीत में अहम रोल निभाते थे.

भारत में आने वाले विदेशी खिलाड़ियों को स्पिन गेंदबाजी का सामना करने में मुश्किल होती थी, क्योंकि उनका फुटवर्क उस तरीके का नहीं होता था. वहीं, भारतीय बल्लेबाज ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ्रीका की उछाल भरी पिचों पर आती गेंदों का सामना करने में उलझ जाते हैं.

इसके अलावा मैच में इस्तेमाल की जाने वाली गेंद से भी बहुत फर्क पड़ता है. इंग्लैंड में जहां ड्यूक गेंद से मैच खेला जाता है तो वहीं ऑस्ट्रेलिया में कूकाबुरा का इस्तेमाल होता है. वहीं, भारत में एसजी गेंदों से खेला जाता है. हर गेंद की सीम और विशेषताएं अलग अलग होती हैं जो मैच पर असर डालती हैं.

मतलब यही है कि सिर्फ भारतीय टीम को ही नहीं, बल्कि सभी टीमों को विदेश में जाकर मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. उम्मीद है कि भारतीय टीम पहले टेस्ट की हार भूलकर शनिवार से शुरू होने वाले सेंचुरियन टेस्ट में जीत हासिल करेगी.